भाजपा थिंक टैंक का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में 68 सदस्यीय विधानसभा के लिए अगले साल के आख़िर में होने वाले चुनावों से पहले वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। यह क़दम पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हाल में हुए उपचुनावों में पार्टी की शर्मनाक हार के कारणों का आत्मनिरीक्षण करने के बाद उठाया गया है। हिमाचल भाजपा के लिए काफ़ी महत्त्व इसलिए भी रखता है; क्योंकि यह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का गृहराज्य है। अनिल मनोचा की एक रिपोर्ट :-
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पहले ही भाजपा की 75 वर्ष की अनौपचारिक कट ऑफ आयु पार कर चुके हैं; जिसके मायने हैं कि यह पार्टी नियम के हिसाब से उनके सेवानिवृत्त होने की उम्र है। हालाँकि धूमल इन वर्षों में बहुत सक्रिय रहे हैं। जनता के साथ उनका जुड़ाव ही राजनीति में उनकी सम्पत्ति है और जब हमने हमीरपुर में उनसे मुलाक़ात की, तो उन्होंने स्वीकार किया कि उपचुनावों में हार का एक बड़ा कारण ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं के साथ सम्बन्धों की कमी थी।
चार साल से सत्ता में पार्टी के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर, कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के निधन से उत्पन्न सहानुभूति और भाजपा में अतिविश्वास जैसे अन्य प्रबल कारण हो सकते हैं। लेकिन इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पार्टी चुनाव जीतने के लिए धूमल का पूरी तरह से उपयोग करने में विफल रही। बड़ी बात है कि 30 अक्टूबर को हुए उपचुनावों में भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश से आया था, जहाँ सत्ताधारी पार्टी सभी तीन विधानसभा सीटों और एकमात्र लोकसभा सीट हार गयी थी।
विधानसभा की एक सीट पर तो भाजपा प्रत्याशी की जमानत तक ज़ब्त हो गयी। दरअसल भाजपा के लिए सबसे चिन्ताजनक सन्देश जुब्बल-कोटखाई निर्वाचन क्षेत्र से आया, जहाँ उसके उम्मीदवार को महज़ 2644 मत मिले और उसकी जमानत ज़ब्त हो गयी। यह विपक्षी कांग्रेस के लिहाज़ से एक बड़ा बदलाव है, जो सन् 2017 में भाजपा के प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद पहाड़ी राज्य में चुनावी मुक़ाबलों में अन्त में रही है।
आयोग के आँकड़ों के मुताबिक, तीनों सीटों पर कांग्रेस का कुल वोट शेयर भाजपा से क़रीब 20 फ़ीसदी ज़्यादा रहा। जहाँ कांग्रेस उम्मीदवारों को 48.9 फ़ीसदी वोट मिले हैं। वहीं भाजपा तीन विधानसभा सीटों पर केवल 28.1 फ़ीसदी वोट शेयर ही ले पायी।
परिणामों ने मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की अगले साल के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता पर सवालिया निशान लगा दिया है। यह भाजपा नेताओं, संजय टंडन और अविनाश राय खन्ना द्वारा की गयी कड़ी मेहनत के बावजूद है। यह भाजपा के लिए चेतावनी मानी जा रही है। पार्टी अब इस मुश्किल सवाल की ओर देख रही है कि क्या वह अगले साल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ सकती है?
जगत प्रकाश नड्डा न केवल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, बल्कि केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, जो केंद्र सरकार में अहम मंत्रालय सँभाल रहे हैं; भी इसी पहाड़ी राज्य से हैं। कम उम्र का $फायदा अनुराग ठाकुर को मिल सकता है। भाजपा ने पहले पड़ोसी राज्य उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन नियम लागू किया था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हिमाचल में निराशाजनक प्रदर्शन के साथ पार्टी को हिमाचल प्रदेश पर भी कुछ कठोर सोच-विचार करना होगा; क्योंकि उपचुनावों को जनता के मूड का बैरोमीटर माना जाता है।
परिणामों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अगले साल के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता पर सवालिया निशान लगा दिया है। यह भाजपा नेताओं, संजय टंडन और अविनाश राय खन्ना द्वारा की गयी कड़ी मेहनत के बावजूद है। यह नतीजे भाजपा के लिए चेतावनी है। पार्टी अब इस मुश्किल सवाल की ओर देख रही है कि क्या वह अगले साल मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के नेतृत्व में चुनाव लड़ सकती है?
प्रेम कुमार धूमल भाजपा में एक लोकप्रिय चेहरा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2017 के हिमाचल चुनाव से पहले ख़ुद ट्वीट किया था कि धूमल जी हमारे वरिष्ठतम नेताओं में से हैं, जिनके पास हिमाचल में समृद्ध प्रशासनिक अनुभव है। वह एक बार फिर शानदार मुख्यमंत्री बनेंगे।
धूमल ने लगातार पाँचवीं बार चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया था और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने धूमल के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की घोषणा एक चुनावी रैली में की थी। उस समय भाजपा के फ़ैसले को जे.पी. नड्डा के लिए एक झटका माना जाता था, जो उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए एक प्रमुख आकांक्षी थे।
यह कहा जाता है कि धूमल ने ही पार्टी को जीत की ओर अग्रसर किया। हालाँकि ख़ुद सुजानपुर क्षेत्र से हार गये थे। भगवा पार्टी स्पष्ट थी कि शीर्ष पद के लिए सिर्फ़ निर्वाचित विधायक के नाम पर ही विचार किया जाएगा और इस तरह वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हार गये।
धूमल की साफ़-सुथरी छवि है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही भाजपा के हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर, उनके पिता, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और अन्य के ख़िलाफ़ एक प्राथमिकी को रद्द कर चुका है। यह मामला धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम से जुड़ा था। ठाकुर, धूमल और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) ने उच्च न्यायालय के 25 अप्रैल, 2014 को प्राथमिकी रद्द करने और विशेष न्यायाधीश, धर्मशाला के समक्ष आपराधिक मुक़दमे पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती दी थी। उनके ख़िलाफ़ कथित धोखाधड़ी, आपराधिक साज़िश और भ्रष्टाचार के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।
तत्कालीन एचपीसीए अध्यक्ष ठाकुर ने तर्क दिया था कि मामला वास्तव में एक दीवानी विवाद था; लेकिन तत्कालीन वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक कारणों से इसे एक आपराधिक मामला बना दिया। दिसंबर, 2012 में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के महीनों बाद 1 अगस्त, 2013 को सतर्कता ब्यूरो के धर्मशाला कार्यालय द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। हिमाचल में 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले धूमल को और अधिक ज़िम्मेदारी कैसे सौंपी जाएगी? यह अभी देखा जाना बाक़ी है। लेकिन पार्टी ज़मीनी स्तर पर उनकी वफ़ादारी और जुड़ाव को समझती है और उन्हें हिमाचल प्रदेश के लिए अभियान समिति का नेतृत्व करने के लिए कहा जा सकता है। पहले से ही मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर धूमल के साथ मिल रहे हैं। वे समीरपुर में अपने आवास पर मुख्यमंत्री की हमीरपुर यात्रा के दौरान एक अनिर्धारित बैठक के दौरान मिले भी थे।
यह इस बात का संकेत है कि धूमल की राज्य की राजनीति में कुछ सक्रिय भूमिका हो सकती है। वास्तव में पूर्व मुख्यमंत्री हमीरपुर में कुछ महीने पहले राज्य भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना के साथ बैठक के बाद सक्रिय हो गये थे। राष्ट्रीय नेतृत्व को धूमल जैसे जन नेता की आवश्यकता महसूस होती है और यह स्पष्ट है कि दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री को विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में एक बड़ी भूमिका सौंपी जा सकती है।