आज हमें गर्व होना चाहिए कि भारत में बोली जाने वाली अनेक भाषाओं में से निकलकर हिन्दी आज पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रही है। हालाँकि इसे पहला स्थान भले ही नहीं मिला है, लेकिन यह भी कम नहीं कि हिन्दी पूरे विश्व में एक गौरवपूर्ण स्थान पा चुकी है और गूगल पर पढ़ी जाने वाली दुनिया की पाँच सबसे खास भाषाओं में गिनी जाती है। इतना ही नहीं आज पूरे विश्व में हिन्दी पढऩे-सीखने वालों की एक बड़ी संख्या है। 14 सितंबर, 1949 को संवैधानिक रूप से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान के अनुच्छेद-343 में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। यही वजह है कि 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मान्यता मिली है। दुनिया भर के हिन्दी प्रेमी 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं। लेकिन दुख इस बात का होता है कि कुछ भारतीय लोगों ने ही इसे आज तक राजभाषा के रूप में भी स्वीकार नहीं किया है। यहाँ तक कि अनेक सरकारी कामकाजों में आज भी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी ही मातृभाषा की उपेक्षा करता है।
खुशी इस बात की है कि इसके बावजूद हिन्दी लगातार समृद्ध हो रही है। इंटरनेट पर भी लगातार हिन्दी का विस्तार हो रहा है। हाल ही में किये गये एक सर्वे में पाया गया है कि भारत की 10 प्रमुख भाषाओं में केवल हिन्दी बोलने वालों की संख्या बढ़ी है और बीते चार दशक में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में करीब 46 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलने, लिखने-पढऩे या समझने में सक्षम हैं। 2011 की जनगणना में पाया गया था कि उस समय की भारत के 120 करोड़ में से करीब 41.03 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिन्दी थी। हाल के कुछ सर्वे बताते हैं कि इसमें पहले से काफी इज़ाफा हुआ है। हाल ही एक सर्वे में सामने आया है कि पिछले 10 साल में 10 करोड़ हिन्दी भाषी बढ़े हैं। वहीं इन वर्षों में बाकी भारतीय भाषाओं के बोलने वालों की संख्या कम होती दिखी है। इसके अतिरिक्त पिछले 20 वर्षों में हिन्दी निदेशालय के सरकारी हिन्दी शब्दकोष में हिन्दी के शब्दों की संख्या साढ़े सात गुना बढ़ गये हैं, जिससे इस शब्दकोष में 1.5 लाख शब्द हो गये हैं, जो पहले 20000 थे। इसी अगस्त महीने में वेबसाइट वेबदुनिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा का गौरव प्राप्त कर चुकी है। यह इसलिए भी गौरव की बात है कि हिन्दी भारत की अनेक भाषाओं में बोली जाने वाली भाषा है और अपने शुद्ध व्याकरण के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए, तो देश के लगभग 75 फीसदी लोग हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 फीसदी हिन्दी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो इसे बोल या समझ सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार बढ़ते वैश्वीकरण और विश्व में भारत की बढ़ती पहचान और बढ़ते व्यापारिक रिश्तों के कारण पिछले कुछ वर्षों में विश्व के लोगों में हिन्दी के प्रति काफी रुचि बढ़ी है।
दक्षिण भारत में बढ़े हिन्दी भाषी
दक्षिण भारतीयों के बारे में कहा जाता रहा है कि वे हिन्दी और हिन्दी भाषियों से नफरत करते हैं। वहाँ कुछ साल पहले तक हिन्दी भाषियों से अभद्र व्यवहार करने की कई घटनाएँ भी सामने आयीं। लेकिन हिन्दी की व्याकरण क्षमता और हिन्दी की आवश्यकता ने अधिकतर दक्षिण भारतीयों को हिन्दी सीखने की ओर अग्रसर किया। आज दक्षिण भारत में हिन्दी सीखने वालों की ही नहीं, हिन्दी बोलने वालों की, यहाँ तक कि हिन्दी की परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। 2019 में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा आयोजित हिन्दी परीक्षा में बैठने वाले लोगों की संख्या करीब छ: लाख थी। पिछले पाँच वर्षों में दक्षिण भारत में हिन्दी परीक्षा में शामिल होने वालों की संख्या करीब 22 फीसदी बढ़ी है।
विदेशियों का बढ़ता हिन्दी प्रेम
एक समय था जब भारत के ही अहिन्दी भाषी राज्यों में ही हिन्दी का जमकर विरोध हो रहा था। लेकिन अब हिन्दी भारत के अधिकतर राज्यों में बोली जाती है। जहाँ के लोग अभी भी हिन्दी नहीं बोल पाते, वे इसे समझने लगे हैं और उनमें काफी लोग हिन्दी सीखने में रुचि दिखाने लगे हैं। इससे भी अच्छी बात यह है कि हिन्दी को अब न केवल भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, मॉरिशस, श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन में काफी संख्या में लोग बोलते हैं, बल्कि इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, फीजी, यूगांडा, रूस, जर्मनी, जापान, मध्य एशिया, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और दुबई आदि में बोलने वालों की संख्या अच्छी-खासी है। एक और गौरव की बात यह है कि यूनेस्को की सात भाषाओं में हिन्दी भी शामिल है। हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन अभी भारत सरकार को इस ओर और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। दुनिया भर के लोगों में हिन्दी के प्रति बढ़ती रुचि का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में दुनिया के 176 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ायी जा रही है और विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में हिन्दी चेयर हैं।
कुछ साल पहले किये गये एक सर्वे के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077 लोग, दक्षिण अफ्रीका में 8,90,292 लोग, यमन में 2,32,760 लोग, युगांडा में 1,47,000 लोग, जर्मनी में 30,000 लोग, सिंगापुर में 5,000 लोग हिन्दी बोल-समझ सकते हैं। वहीं भारत के पड़ोसी देशों- मॉरीशस में 6,85,170 और नेपाल में 8,00000 लोगों को हिन्दी आती है। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, बर्मा, म्यांमार, श्रीलंका में भी हिन्दी बोलने वालों की काफी संख्या है।
दुनिया भर में बोली और पढ़ी जाने वाली भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित होने वाले एथनोलॉग के 2017 के संस्करण में पाँच करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली-पढ़ी जाने वाली 28 भाषाओं पर सर्वे किया गया था। इस सर्वे में पाया गया कि 2017 में विश्व में हिन्दी भाषी 70 करोड़ से अधिक थे। तब यह दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा थी, लेकिन अब दूसरे स्थान की ओर बढ़ रही है। वहीं उस समय अंग्रेजी 112 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने के कारण पहले स्थान पर थी, जो अब भी पहले ही स्थान पर है। इसके अलावा चीन की भाषा मेंडरिन करीब 110 करोड़ लोगों के बीच बोली-पढ़ी जाने वाली दूसरे नम्बर की भाषा थी। अब हिन्दी इसका मुकाबला कर रही है। इस सर्वे के अनुसार उस समय स्पैनिश को 51.29 करोड़ और अरबी को 42.2 करोड़ लोगों द्वारा बोला-पढ़ा जा रहा था। हिन्दी बोलने, पढऩे, जानने और समझने में रुचि रखने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दुनिया भर की वेबसाइट्स भी हिन्दी को प्राथमिकता दे रही हैं। इन साइट्स में गूगल पहले स्थान पर है। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल व आईबीएम जैसी कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाज़ार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं। इसके अलावा फेसबुक, ट्विटर और इंटरटेनमेंट वाली साइट्स पर हिन्दी को जमकर बढ़ावा मिल रहा है। इन दिनों विदेशों में हिन्दी में प्रकाशित होने वाले 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ हैं, जिनमें बीबीसी लंदन, जर्मनी के डायचे वेले, जापान के एनएचके वल्र्ड हैं। यही नहीं पूरी दुनिया में अनेक हिन्दी के टीवी-रेडियो चैनल भी हैं। यूएई के हम एफ-एम और चीन के चाइना इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष इनमें उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा अमेरिका के 32 विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में आज हिन्दी पढ़ायी जाती है। ब्रिटेन की लंदन यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और यॉर्क यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ायी जाती है। पिछले समय में ही जर्मनी के 15 शिक्षण संस्थानों ने हिन्दी भाषा और साहित्य के अध्ययन अपनाया है। यहाँ के कई संगठन हिन्दी का प्रचार भी करते हैं। चीन में 1942 में हिन्दी अध्ययन शुरू हुआ और 1957 में हिन्दी रचनाओं का चीन की भाषा में अनुवाद शुरू हुआ। इतना ही नहीं, दुनिया की अन्य भाषाओं के शब्दकोषों में हिन्दी भाषा के शब्दों को शामिल किया जा रहा है, जिसमें ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हिन्दी के हज़ारों शब्दों को शामिल किया जाना गौरव की बात है। बड़ी बात यह है कि दक्षिण प्रशान्त फिजी में हिन्दी को आधाकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं, जिसमें अवधी, भोजपुरी व अन्य भारतीय भाषाओं के समावेश वाली हिन्दी है।
तकनीकी प्रयोग में बढ़ी हिन्दी
एक सर्वे के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी की अध्ययन सामग्री की माँग लगभग 94 फीसदी बढ़ गयी है। आज हर पाँचवें व्यक्ति में से एक हिन्दी में इंटरनेट का उपयोग करता है। यह तकनीक के कारण संभव हो पाया है। यहाँ तक कि दुनिया के अधिकतर एप हिन्दी में लिखने-पढऩे की सुविधा दे रहे हैं, जिनमें फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर और अन्य कई लोकप्रिय एप शामिल हैं। इसके अलावा आज गूगल हिन्दी इनपुट, लिपिक डॉट इन जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लीकेशन्स मौजूद हैं। हिन्दी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद ने भी हिन्दी सीखने में रुचि रखने वालों की काफी मदद की है। इसके अलावा यू-ट्यूब ने हिन्दी सीखने वालों को काफी फायदा पहुँचाया है।
इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होगी हिन्दी
हाल फिहलाल में किये गये एक सर्वे में पाया गया कि इंटरनेट में हिन्दी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे तेज़ गति (94 फीसदी की दर) से बढ़ रही है। वहीं अंग्रेजी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या केवल 19 फीसदी की गति से बढ़ रही है। इंटरनेट पर पाया गया है कि हर पाँचवां व्यक्ति हिन्दी में सर्च करता है या हिन्दी सामग्र ढूंढता है। इससे माना जा रहा है कि 2021 तक इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा (करीब 35 करोड़) लोग हिन्दी सामग्री सर्च करने वाले लोग होंगे, जबकि अंग्रेजी सामग्री सर्च करने वाले केवल 21 करोड़ लोग ही होंगे। इस हिसाब से अगले साल तक हिन्दी इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा बन जाएगी।
बॉलीवुड और हिन्दी साहित्य का बड़ा योगदान
दुनिया भर के लोगों की रुचि हिन्दी में बढ़ाने में बॉलीवुड का बड़ा योगदान है। आज पूरी दुनिया में बॉलीवुड फिल्मों का अपना एक विशेष स्थान है। एक सर्वे में पाया गया है कि हिन्दी फिल्मों के अलावा हिन्दी गानों के शौकीनों की दुनिया में बहुत बड़ी संख्या है। वर्षों से विदेशों में हिन्दी गानों की महफिलें खूब सजती रही हैं, जिनमें पुराने गानों की बेहद माँग रहती है। इसके अलावा हिन्दी साहित्य का भी विदेशियों की हिन्दी में रुचि बढ़ाने में विशेष योगदान रहा है। कई पुराने लेखकों की लिखी कृतियों का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हो चुका है।
कुछ भारतीयों ने ही किया हिन्दी का नुकसान
आज के आज़ाद भारत में भी बहुत से भारतीय अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं। जिस समय भारत को अंग्रेजी शासन से आज़ादी मिली थी, उस समय सभी सरकारी कार्य अंग्रेजी में होते थे। अदालतों, थानों आदि में कुछ हद तक अरबी, फारसी और उर्दू का इस्तेमाल होता था, लेकिन मुख्य रूप से अंग्रेजी ही हावी थी। हिन्दी को राष्ट्रभाषा दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे राजेन्द्र सिंहा के 50वें जन्मदिन पर इसे राजभाषा का दर्जा देने पर सहमित बनी। जब संविधान लागू हुआ, तो उसके अनुच्छेद-343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। वहीं अनुच्छेद-343 (2) में यह व्यवस्था की गयी कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि मतलब 1965 तक हर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही होगा और उसके बाद हिन्दी भाषा का इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यों के लिए किया जा सकेगा। अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान लागू होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्षों के बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जिसमें संघ आयोग सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाये जाने के बारे में राष्ट्रपति से सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड-4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गयी। संविधान के अनुच्छेद 120 में कहा गया है कि संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है।
लेकिन 1965 के बाद जब सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग की बात छिड़ी, तो कुछ अंग्रेजीदाँ लोग अड़ गये और उन्होंने हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा नहीं बनने दिया। इसकी वजह यह भी रही कि अनुच्छेद-334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। फिलहाल अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भारत में सरकारी कामकाज में इस्तेमाल होती हैं, लेकिन अंग्रेजी के पक्षधर हिन्दी को पूर्णत: लागू नहीं होने देते। हालाँकि 26 जनवरी 1965 को संसद में जब सभी सरकारी कार्यों में हिन्दी का उपयोग किये जाने का जब विरोध हुआ, तो अंग्रेजी का भी पुरज़ोर विरोध हुआ। लेकिन कुछ राज्यों में हिन्दी न जानने वालों की असमर्थता का बहाना बनाकर अंग्रेजी को लागू रहने दिया गया, जो आज भी जारी है। फिर 1967 में संसद में भाषा संशोधन विधेयक लाया गया, जिसमें अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया गया। दु:खद यह रहा कि इस विधेयक में धारा-3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गयी।
हिन्दी में बिगाड़
कुछ भारतीय ही अब हिन्दी में बिगाड़ करने पर आमादा हैं। ऐसे लोगों में या तो वे हैं, जिन्हें हिन्दी ठीक से नहीं आती, या वे जो आधुनिक हिन्दी के पक्षधर हैं या फिर वे जो रोमन लिपि को हिन्दी की लेखनी में शामिल करने के पक्षधर हैं और हिंग्लिश को प्राथमिकता देने पर तुले हैं। पर यह लोग यह नहीं जानते कि किसी भी भाषा का अपना एक व्याकरण होता है, उससे तनिक भी इधर-उधर होने से भाषा में सुधार नहीं, बल्कि बिगाड़ ही पैदा होता है। एक सर्वे में पाया गया है कि हिन्दी भाषी भारतीयों में 80 फीसदी की हिन्दी ठीक नहीं है। इतना ही नहीं, हिन्दी भाषी राज्यों के अधिकतर विद्यार्थी हिन्दी को रुचि से नहीं पढ़ते, उन्हें लगता है कि यह तो आसान भाषा है, इसे क्या पढऩा, जबकि हिन्दी दुनिया की सबसे कठिन 23 भाषाओं में से एक है। वहीं, अधिकतर भारतीय यह सोचकर हिन्दी को व्याकरण के आधार पर नहीं सीखते, क्योंकि वे इसे आसानी से बोल, पढ़ और लिख लेते हैं। इससे उनकी भाषा हमेशा अशुद्ध रहती है।
क्या कहते हैं विद्वान
हिन्दी के विद्वानों का कहना है कि हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से बहुत शुद्ध है। इसके अक्षरों को भी उच्चारण के हिसाब से स्थान दिया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर श्रीराम शर्मा कहते हैं कि हिन्दी को जितना सरल मानकर लोग इसकी अवहेलना करते हैं, यह उतनी सरल है नहीं। इस भाषा के पास अपने शब्दों का बड़ा भण्डार है और अपनी एक विशुद्ध पहचान। आज हिन्दी अपने दम पर दुनिया भर में परचम लहरा रही है। महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में नियुक्त हिन्दी प्राध्यापक डॉ. उपाध्याय कहते हैं कि हिन्दी एक भाषा ही नहीं, एक संस्कृति है, जिसमें प्रवेश करने के बाद रुचिकर ज्ञान का पूरा का पूरा समुद्र है। हिन्दी को जितना अधिक पढ़ा जाए, इसमें उतनी ही अधिक रुचि पैदा होती जाती है। हिन्दी के शोध छात्र लवकुश कहते हैं कि हिन्दी में गणित और विज्ञान से कम मेहनत नहीं है। यहाँ के लोगों को हिन्दी इसलिए सरल लगती है, क्योंकि वे इसे पढऩा और बोलना जानते हैं। जो इसका अध्ययन करना शुरू करता है, उसे इसके कठिन होने का अनुमान सहज ही हो जाता है।
कुल मिलाकर व्याकरण की शुद्धि से परिपूर्ण हिन्दी अपने में तमाम सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्त्व को समेटे हुए है, जिसके चलते अब विश्व में लगातार हिन्दी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। देश-विदेश में इसे जानने-समझने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इंटरनेट के इस आधुनिक युग में हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने में नयी ऊँचाइयाँ प्रदान की हैं और दूसरी भाषाओं के लोगों तक इसे आसानी से पहुँचाया है। इसके आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले 50 वर्षों में हिन्दी विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषाओं में अधिकतर लोगों की प्रिय भाषा हो सकती है।