इन दिनों ईरान और हिजाब ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा हुआ है। 13 सितंबर को इस्लामिक देश ईरान की राजधानी तेहरान में वहाँ की मोरल पुलिस ने एक 22 साल की युवती महसा अमीनी को इसलिए हिरासत में ले लिया, क्योंकि उसने हिजाब नहीं पहना हुआ था। पुलिस हिरासत में लिये जाने के तीन दिन बाद यानी 16 सितंबर को महसा की मौत हो गयी। इस मौत से आक्रोशित ईरानी लोग विरोध-प्रदर्शन करने लगे, जो कि अभी भी जारी हैं। अब हिजाब की अनिवार्यता के विरोध में ईरान में विरोध-प्रदर्शनों ने उग्र रूप ले लिया है। महिलाएँ इस विरोध को लेकर फ्रंट पर हैं; लेकिन पुरुष भी उनका साथ दे रहे हैं। प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की माँग है कि हिजाब की अनिवार्यता ख़त्म कर देनी चाहिए। उन्हें इस बात की आज़ादी होनी चाहिए कि वे हिजाब पहनें या नहीं।
हिजाब की अनिवार्यता का क़ानून उनके लिए बेडिय़ों जैसा है। ईरान के विभिन्न शहरों में महिलाओं द्वारा चौराहे पर अपने हिजाब जलाने व अपने बाल काटने वाली तस्वीरें बहुत वायरल हो रही हैं। वहाँ की महिलाओं का मानना है कि हिजाब उनके व्यक्तित्व को कमज़ोर करता है। हिजाब उनसे उनकी पहचान छीनता है। महिलाएँ हिजाब क़ानून, मॉरल पुलिस के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रही हैं। वे आज़ादी के अधिकार की माँग कर रही हैं। उनका कहना है कि महिलाओं को क्या पहनना है, और क्या नहीं पहनना है, इसका चयन करने का अधिकार उनके ही पास होना चाहिए, न कि सरकार यह फ़ैसला करे। वैसे किसी भी देश के पास यह अधिकार नहीं होना चाहिए।
ग़ौरतलब है कि ईरान में शरिया क़ानून लागू है। ईरान में सन् 1930 के दशक में शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी का शासन था। रज़ा पहलवी का महिलाओं के प्रति कट्टरवादी नज़रिया नहीं था। उन्होंने महिलाओं के हिजाब पहनने पर रोक लगा दी थी। 70 के दशक तक ईरान में महिलाएँ पश्चिमी सभ्यता वाले कपड़े भी आराम से पहनती थीं। हालाँकि कई महिलाएँ हिजाब भी पहनती थीं, पर स्वेच्छा से; उन पर कोई दबाव नहीं था और न ही नक़ाब आज की तरह ड्रेस कोड का अनिवार्य हिस्सा था।
दरअसल सन् 1979 में वहाँ इस्लामिक क्रान्ति हुई, और पहलवी राजवंश सत्ता से बाहर कर दिया गया। फिर वहाँ के कट्टरपंथी नेता अयातुल्ला ख़ोमैनी के अधीन एक धार्मिक गणतंत्र की स्थापना हुई। क्रान्ति का विरोध करने वालों को सख़्त सज़ाएँ दी गयीं। यहाँ तक कि राजा पहलवी को ईरान छोडक़र भागना पड़ा। अयातुल्ला ख़ोमैनी ने कड़ा शरिया क़ानून लागू कर दिया और महिलाओं की आज़ादी पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये गये। इस तरह ईरान ने सन् 1981 में एक अनिवार्य हिजाब क़ानून पारित किया। इस्लामी दण्ड संहिता के अनुच्छेद-638 में कहा गया है कि महिलाओं के लिए सार्वजनिक रूप से या सडक़ पर हिजाब के बिना दिखायी देना अपराध है। इस्लामिक क्रान्ति के बाद लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 13 वर्ष कर दी गयी। ईरान में विवाहित महिलाएँ अकेले देश नहीं छोड़ सकती हैं। नौ साल से अधिक आयु वाली लड़कियों और महिलाओं के लिए ड्रेस कोड का पालन अनिवार्य है। इसके तहत उन्हें हिजाब से सिर, चेहरा, गर्दन और बालों को ढकना अनिवार्य है।
इसके साथ ही घर से बाहर निकलने पर उनके बदन पर ढीले कपड़े होने चाहिए। इसका उल्लघंन करने पर महिलाओं को सज़ा देने व आर्थिक ज़ुर्माने का भी प्रावधान है। सज़ा के तौर पर उन्हें कोड़े भी मारे जा सकते हैं। लड़कियाँ और महिलाएँ इसका पालन सख़्ती से कर रही हैं या नहीं, यह देखने के लिए या यह कहें कि महिलाओं के मन में इस क़ानून का ख़ौफ़ पैदा करने के लिए ईरान की सरकारत ने नैतिक (मोरल) पुलिस की स्थापना की और उसे काफ़ी अधिकार भी दे दिये। ऐसी पुलिस का स्टॉफ पुलिस वैन में सार्वजनिक सथलों पर गश्त लगाकर महिलाओं की निगरानी करता है। उसका काम यह देखना है कि लड़कियों व महिलाओं का पहनावा क़ानून का उल्लघंन करने वाला तो नहीं है। पुलिस पर यह भी सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी डाली गयी है कि हर लडक़ी, महिला उचित कपड़ों में ही बाहर निकले। वह लड़कियों और महिलाओं से सवाल कर सकती है कि उनके बाल हिजाब से बाहर क्यों दिखायी दे रहे हैं? उन्होंने चमकीले / भडक़ीले / तंग / बदन दिखाने वाले कपड़े क्यों पहने हुए हैं? इस पुलिस के जवान इस प्रकार की कमी या आरोप में किसी भी महिला या युवती को हिरासत में ले सकते हैं। महसा अमीनी को भी तेहरान में मॉरल पुलिस ने 13 सितंबर को ड्रेस कोड का उल्लघंन करने के आरोप में ही हिरासत में लिया था। पुलिस का कहना है कि उसका हिजाब ड्रेस कोड के अनुरूप नहीं था, जबकि उसकी माँ ने पत्रकारों को बताया कि उनकी बेटी के कपड़े हमेशा नियमों के अनुरूप थे।
ईरान के सुरक्षा बलों ने एक बयान जारी कर कहा कि हिजाब नियमों पर सरकारी शैक्षिक प्रशिक्षण प्राप्त करते समय महसा अचानक गिर गयी, उसे दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गयी। ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी भी ड्रेस कोड को लेकर बहुत सख़्त हैं। रायसी को देश के रूढि़वादी अभिजात वर्ग का समर्थन हासिल है। राष्ट्रपति रायसी ने इसी साल जुलाई में हिजाब और शुद्धता क़ानून को नये प्रतिबंधों के साथ लागू करने के लिए एक आदेश पारित किया था। सरकार ने अनुचित हिजाब पर सख़्ती करने के साथ ही हील्स पहनने के ख़िलाफ़ एक आदेश भी जारी किया था। ईरान में महिलाएँ पिछले कुछ समय से अनिवार्य हिजाब नीति का विरोध कर रही हैं। और राष्ट्रपति रयासी हिजाब विरोधी आन्दोलन को इस्लामी समाज में नैतिक भ्रष्टाचार का एक संगठित प्रचार मानते हैं।
मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, 12 जुलाई, 2022 को ईरान की अभिनेत्री रोश्नो को हिजाब नहीं पहनने पर गिरफ़्तार किया गया। कई दिनों तक उसे यातनाएँ दी गयीं और फिर नेशनल टीवी पर उनसे माफ़ी मँगवायी गयी। ख़बर यह भी है कि पिछले कुछ महीनों से ईरान में कड़े ड्रेस कोड को अमल कराने के लिए महिलाओं की गिरफ़्तारी के मामले बढ़े हैं। कई महिलाओं ने इस बात को सरकारी टीवी चैनल के कैमरे पर स्वीकार किया है। वैसे ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ विरोध का मुद्दा नया नहीं है। वर्ष 2014 में हिजाब के ख़िलाफ़ माय स्टील्थ फ्रीडम नामक फेसबुक पेज बनाया गया। इस पेज के ज़रिये एकत्रित हुई महिलाओं ने सोशल मीडिया पर मेरी गुम आवाज़, मेरा कैमरा, मेरा हथियार जैसी कई पहल कीं।
मई, 2017 में व्हाइट वेडनेस-डे यानी सफ़ेद बुधवार अभियान चलाया गया। इस अभियान से जुड़ी महिलाएँ सफ़ेद पोशाक में हिजाब के विरोध में प्रदर्शन करती हैं। वर्तमान में इस अभियान से दुनिया भर के क़ेरीब 70 लाख लोग जुड़े हुए हैं और इनमें से 80 फ़ीसदी ईरानी हैं। ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ जारी वर्तमान विरोध-प्रदर्शन सन् 2019 के बाद से सबसे बड़ा बताया जा रहा है। सन् 2019 का विरोध-प्रदर्शन ईंधन की क़ीमतों की वृद्धि को लेकर था। दुनिया के 195 देशों में से 57 देश मुस्लिम बहुल हैं। इन 57 देशों में से आठ में शरिया का कड़ाई से पालन होता है। केवल ईरान व अफ़ग़ानिस्तान ऐसे दो देश हैं, जहाँ हिजाब पहनना अनिवार्य है। इसका उल्लंघन करने पर सख़्त सज़ा दी जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिजाब के ख़िलाफ़ मुहिम राजनीतिक और धार्मिक तानाशाही पर चोट है, न कि धर्म के ख़िलाफ़। ईरान में हिजाब पहनने की अनिवार्यता के विरोध में प्रदर्शन जारी है, तो भारत के कर्नाटक सूबे में हिजाब को जबरन हटाने का विरोध मुद्दा बना हुआ है।
ग़ौरतलब है कि सितंबर माह में कर्नाटक हिजाब विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने 10 दिन तक चली लम्बी सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। सर्वोच्च न्यायालय तय करेगा कि कर्नाटक में स्कूलों में हिजाब पर पाबंदी का फ़ैसला सही है, या नहीं। कर्नाटक सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश हेमंत गुप्ता की पीठ से कहा कि कक्षा में हिजाब पहनना मौलिक अधिकार नहीं है। स्कूल के बाहर, स्कूल बस में और स्कूल परिसर में हिजाब पहनने पर रोक नहीं है। यह रोक सिर्फ़ कक्षाओं में ही है। अब सब की निगाहें सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले पर टिकी हैं और उम्मीद की जा रही है कि यह फ़ैसला 16 अक्टूबर या उससे पहले आ सकता है।
उधर ईरान में महिलाओं ने हिजाब की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ अपने कड़े तेवरों से ईरान की कट्टरपंथी सरकार के समक्ष मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। यही नहीं, महिला प्रतिनिधियों की हिजाब के साथ राजनयिक बैठकों में शिरकत करने पर ईरानी महिलाएँ पश्चिमी देशों को फटकार लगा रही हैं। उनका मानना है कि हिजाब अनिवार्यता को ख़त्म करने के लिए ईरान की सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की भी ज़रूरत है।