क़रीब दो साल पहले इटली के मशहूर शहर मिलान के एक बड़े अस्पताल में एक महिला ट्रामा सर्जन डॉ. मारिया ग्रेजिया ने महिलाओं की अस्त-व्यस्त हड्डियाँ दिखाने वाले ब्लैक ऐंड व्हाइट एक्स-रे की प्रदर्शनी लगाकर जनता को महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के प्रति जागरूक करने की कोशिश की। डॉ. मारिया कहती हैं कि मानव की हड्डियाँ एक जैसी होती हैं; लेकिन इन एक्स-रे में हड्डियों की हालत साफ़ कहती है कि ये महिलाओं की हैं। उनके साथ होने वाली हिंसा इसकी प्रमुख वजह है।
भारत में श्रद्धा हत्याकांड मामले ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा वाले मुददे को एक बार फिर मुख्यधारा में लाकर खड़ा कर दिया है। तुर्की में भी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले को लेकर वहाँ एक तबक़ा फ़िक्रमंद नज़र आता है। कोरोना महामारी के दौरान भी कई देशों में महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि दर्ज की गयी है। दरअसल महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा एक वैश्विक मुद्दा है। महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा चाहे शारीरिक हो या मानसिक, आर्थिक हो या सामाजिक या चाहे भावात्मक हो, उसके तात्कालिक व दूरगामी नकारात्मक प्रभाव होते हैं। इसकी क़ीमत न केवल पीडि़त महिलाएँ ही चुकाती हैं, बल्कि उनके बहुत क़रीबी परिजन व बच्चे भी चुकाते हैं।
महिलाएँ हिंसा मुक्त ज़िन्दगी जीएँ, यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। विश्व भर में महिलाओं के प्रति हिंसा, शोषण एवं उत्पीडऩ की बढ़ती घटनाओं के उन्मूलन हेतु संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रति वर्ष 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के तौर पर मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा के प्रति विभिन्न देशों की सरकारों को आगाह करता है कि आधी आबादी यानी महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा उनकी प्राथमिकताओं में ऊपर होना चाहिए। सरकारों को इस दिशा में निवेश को बढ़ाकर उनको हिंसा मुक्त ज़िन्दगी जीने के लिए मज़बूत संस्थागत व संगठानात्मक सुधार की ओर क़दम उठाने चाहिए। महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को नियंत्रित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। 25 नवंबर को यह दिवस क्यों मनाया जाता है? यह जाने के लिए पीछे लौटना होगा।
दरअसल 25 नवंबर, 1960 को डोमिनिकन शासक राफेल ट्रुजिलो के आदेश पर तीन बहनों- पैट्रिया, मारिया तथा एंटोनिया मिराबैल की क्रूरता से हत्या कर दी गयी थी। इन तीनों बहनों ने तत्कालीन ट्रुजिलों की तानाशाही का कड़ा विरोध करने की हिम्मत दिखायी थी। उन्होंने स्त्री विरोधी कट्टर नज़रिया रखने वाले इस तानाशाह के ख़िलाफ़ विद्रोह में हिस्सा लिया और इस विरोध की सज़ा उन्हें मौत के रूप में मिली। लेटिन अमेरिका और केरिबियन महिलाओं ने सन् 1981 से ही 25 नवंबर को स्मृति दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। सन् 1999 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एकमत से प्रस्ताव पारित कर हर वर्ष 25 नवंबर को महिलाओं के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने का फ़ैसला लिया। इस दिवस को मनाने का मक़सद महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकना व उसका उन्मूलन करना है। इस दिन का एक लक्ष्य यह भी है कि इस दिशा की ओर उठाये जाने वाले क़दमों के लिए जितने फंड की ज़रूरत है।
सवाल यह है कि सरकारें इस पर जितना ख़र्च करती हैं, उसमें और ज़रूरी फंड में जो $फासला है, उसे कैसे दूर किया जाए? हिंसा पीडि़तों को ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराना सुनिश्चित किया जाए। यह दिवस इस पर भी ध्यान केंद्रित कराता है कि ऐसे आँकड़े एकत्र किये जाएँ, जिनके आधार पर महिलाओं व लड़कियों के लिए जीवन-रक्षक सेवाओं को बेहतर बनाया जा सके। इस वर्ष को मनाने की शुरुआत 2000 में हुई और इस साल 22वाँ अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस का थीम ‘यूनाइट : एक्टिजम टू एंड वायलेंस अगेंस्ट वीमेन ऐंड गल्र्स’ है। वहीं सन् 2021 का थीम ‘ऑरेंज : द वल्र्ड एंड वॉयलेंस अगेंस्ट वीमेन नाउ’ थी, यानी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा फ़ौरन ख़त्म हो। दरअसल ऑरेंज रंग रोशनी, उज्ज्वलता का प्रतीक माना जाता है। महिलाओं की ज़िन्दगी में रोशनी फैलानी होगी।
ग़ौरतलब है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा की ओर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस जागरूकता कार्यक्रम की शुरुआत 25 नवंबर से होती है और यह 10 दिसंबर तक चलता है। 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। 16 दिन लोगों को लिंग आधारित हिंसा का विरोध करने के लिए एकजुट होने का सन्देश दिया जाता है। विश्व भर में महिला अधिकारों को लेकर काम करने वाले संगठनों ने अब तक इस अवधि का इस्तेमाल शारीरिक व यौन हिंसा, भावात्मक उत्पीडऩ और मानव तस्करी जैसे घरेलू मामलों व बाहरी मामलों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए किया है। सरकारों व नीति निर्धारकों पर भी इसका असर देखा गया है। महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा को ख़त्म करने के लिए सन् 2008 में यू.एन. वीमेन एवं तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बॉन मून की अगुवाई में उद्यमिता कार्यक्रम की शुरुआत की गयी, जिसका मक़सद हिंसा के उन्मूलन के लिए पूरी दुनिया को एकजुट करने की कोशिश था। उसके बाद से हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस की जो भी थीम तय होती है, उसके आगे यूनाइट (एकजुट) लगा होता है।
विश्व में महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा बहुत व्यापक व भयानक स्तर पर है; लेकिन अभी भी इस मुद्दे को लेकर ज़्यादातर ख़ामोशी दिखती है। पीडि़त व उसके परिवारजन इसकी रिपोर्ट दर्ज कराने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं और इसे कंलक के तौर पर देखते हैं। यह नज़रिया सही नहीं है। इससे सही आँकड़े सामने नहीं आते, ज़मीनी हक़ीक़त का पता नहीं चलता। बहरहाल विश्व नेताओं को यह चिन्ता सता रही है कि स्थायी विकास लक्ष्य को वर्ष 2030 तक हासिल करने की जो समय सीमा है, उस अवधि तक लैंगिक समानता वाला लक्ष्य हासिल हो सकेगा। क्योंकि बिना लैंगिक समानता हासिल किये बिना महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन वाला टारगेट कैसे पूरा होगा? हाल ही में जारी रिपोर्ट ‘प्रोग्रेस ऑन द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स : द जेंडर स्नेपशॉट 2022’ बताती है कि वर्ष 2030 तक विश्व लैंगिक बराबरी को हासिल करने वाले ट्रैक पर नहीं है।
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की ऊँची दर बनी हुई है, वैश्विक स्वास्थ्य, पर्यावरण और मानवीय संकटों ने हिंसा के ख़तरे को और बढ़ा दिया है, विशेषतौर पर सबसे संवेदनशील महिलाओं व लड़कियों के लिए और महिलाएँ अब कोरोना महामारी के बाद ख़ुद को अधिक असुरक्षित महसूस करने लगी हैं, जितनी वे इस महामारी से पहले महसूस नहीं करती थीं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर 11वें मिनट में एक महिला या लडक़ी अपने अंतरंग साथी या परिजनों के द्वारा मार दी जाती है। यह रिपोर्ट इस पर भी रोशनी डालती है कि बीते साल विश्व में 15-49 आयु वर्ग की हर 10वीं महिला या लडक़ी अंतरंग साथी की यौन हिंसा अथवा शारीरिक हिंसा की शिकार हुई। हर चौथी महिला ने बताया कि जबसे महामारी शुरू हुई, तबसे घरेलू झगड़े बार-बार होने लगे हैं। यह रिपोर्ट इस सच्चाई को भी सामने रखती है कि बेशक महिलाओं व महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकने के लिए जो क़ानून बने हैं, उनमें प्रगति हुई है। लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि इस सन्दर्भ में जो प्रगति की दर है, उसके मद्देनज़र ये क़ानून हर जगह स्थापित हों, इसके लिए 21 साल और लगेंगे। जहाँ तक भारत का सवाल है, इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-2021) के अनुसार, 18-49 आयुवर्ग की लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी हैं, जिन्हें 15 साल की उम्र के बाद से शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। लेकिन केवल 14 प्रतिशत महिलाओं ने ही अपने साथ हुई इस हिंसा के बारे में बताया।
अक्सर शराब पीने वाले 70 प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं, जो पत्नियों के साथ शारीरिक व यौन हिंसा करते हैं। शारीरिक हिंसा के 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में पति ही ज़िम्मेदार देखा गया है। अक्सर महिलाएँ घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौन हिंसा की शिकार होती हैं। मानव तस्करी के जाल में भी उन्हें आसानी से फँसा लिया जाता है। कम उम्र की लड़कियों को नौकरी का झाँसा देकर उनका कई तरह से शोषण करने वाली ख़बरें अक्सर सामने आती रहती हैं। अब सवाल यह है कि महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा को प्रभावी तरी$के से रोकने व उन्मूलन के लिए विश्व नेताओं को अधिक प्रभावशाली रणनीतियाँ बनाने व उनके आशानुरूप नतीजों पर फोकस करने की दरकार है।