हिंदूओं का राज और बदनाम कौन? हिंदू! हां, पांच साल पहले हर दिन इस्लाम, मुसलमान इस वैश्विक हल्ले में घिरा हुआ था कि ये कैसे हैं और आज दुनिया में चर्चा है कि ये हिंदू कैसे हंै! कैसा देश है जहां भीड़ पीट-पीट कर लोगों को मारती है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी केन्या, दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर हंै। और जान ले वहां के विदेश मंत्रालयों ने मोदी से मुलाकात की तैयारी में अपने नेताओं के लिए जो ब्रीफ बनाई होगी उसमें खबरों-घटनाओं के हवाले से लिखा होगा कि नरेंद्र मोदी उस देश, सरकार के मुखिया हंै जहां भीड़ लोगों को मारती है। गौरक्षा के नाम पर गौरक्षक पीट-पीट कर हत्या करते हंै। संभव है हिंदूवादी इस सबकों दुनिया का पक्षपाती नजरिया, सेकुलरों का, हिंदू विरोधियों का नजरिया माने। कई हिंदू यह मूर्ख सोच भी लिए हुए होंगे कि इससे हिंदुओं की मर्दानगी जाहिर हो रही है और इससे नरेंद्र मोदी का डंका बजा हुआ है! वे वैश्विक हीरो हैं। सो गौरक्षा और मॉब लिंचिंग पर दुनिया में हिंदू बदनाम नहीं है बल्कि बतौर कौम हिंदुओं की 56 इंची छाती में यह श्रीवृद्धि है!
क्या सचमुच? सवाल इसलिए है क्योंकि संघ परिवार, भाजपा, मोदी सरकार यानि हिंदू जनजागरण की आकांक्षी जमात में किसी में भी शर्म से डुबने जैसा यह बोध नहीं दिखलाई दिया है कि जो हुआ है या हो रहा है वह हिंदुओं की बदनामी वाली बात है। कभी कठुआ जैसी शर्म तो कभी मॉब लिचिंग। बावजूद इसके संघ के इंद्रेशकुमार, भाजपा के विनय कटियार, मंत्री गिरिराज किशोर, अर्जुन मेघवाल से ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मौन या मुखर प्रतिक्रिया में शर्म, ग्लानि की वह भाव-भंगिमा नहीं दिखी कि जो हो रहा है उससे हम हिंदू कलंकित हो रहे हंै। इससे संघ, भाजपा के राजनैतिक दर्शन, हिंदू हित की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ रही है बल्कि दुनिया भर में मैसेज बन रहा है कि ये हिंदू कैसे जाहिल, काहिल, मूर्ख है जो अपने ही देश में, अपनी ही सरकार में कानून के राज को जंगल राज में बदल डाल रहे हैं।
हां, 2014 और उससे पहले अपना मानना था, अपने को उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का अर्थ होगा कानून के राज का बहुसंख्यक हिंदुओं की आंकाक्षाओं के अनुसार बदलना और बनना। यदि हिंदू की धर्म भावना, आस्था गौहत्या पर पाबंदी चाहती है तो गौहत्या पाबंदी का अखिल भारतीय कानून बनेगा। यदि समाज की समरसता के लिए समान नागरिक संहिता की ज़रूरत है तो उसका कानून बनेगा। यदि एक देश, एक जन, एक संविधान की भारत की तासीर है तो जम्मू-कश्मीर की धारा 370 पर फैसला होगा! ऐसी दस तरह की बातें थी जो देश, विदेश व आज़ाद भारत के 70 साल के अनुभव पर संविधान और कानून में सुधार, संशोधनों की ज़रूरत को बनाए हुए थी। तभी मोदी को अभूतपूर्व हिंदू जनादेश मिला। कोई माने या न माने अपना मानना है कि इसमें सर्वाधिक आसान गौहत्या पाबंदी पर केंद्र सरकार का कानून बनवा सकना था। खुद नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार में दस बार पिंक क्रांति के हवाले गौहत्या और बीफ के मुद्दे पर बोल-बोल कर भरोसा बनवाया था कि उनकी सरकार आई तो गौहत्या रूकवाने का अखिल भारतीय कानून बनाएगी।
मगर क्या हुआ? गौहत्या रोकने के लिए उन्होंने अपनी सरकार से संसद में कानून नहीं बनवाया लेकिन भक्तों और समर्थकों में यह माहौल बनवा डाला कि सरकार को नहीं बल्कि हिंदू भीड़ को गौरक्षक बन कर उन्हे ठोकना है, उन्हे मारना है जिन पर शक हो कि ये बीफ खाते है या गायों की तस्करी कर रहे हैं।
जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राज का यह इतिहास बनवाया है कि गौरक्षा के लिए कानून स्थापित नहीं किया मगर गाय के नाम पर जंगल राज ज़रूर बनवा दिया! मोदी राज ने हिंदू को वह बना डाला जो खैबर के दर्र में कट्टर जि़हादी मुसलमान करता मिलेगा। देश के संविधान के तहत हुए चुनाव से जनता ने जनादेश दिया, हिंदू भावना व आस्था को मान्यता मिली, उसकी राजनैतिक ताकत बनी और उससे कानून बनना था मगर उल्टे हिंदू को चार सालों में गंवार, मूर्ख व मॉब लिंचिंग वाला बनवा दिया!
यह हिंदू के साथ मोदी-शाह का नंबर एक विश्वासघात है। यह मोदी राज का वह धत्कर्म, पाप है जिसमें हिंदू दुनिया में मॉब लिंचिंग करता दिख रहा है। हम भी इस्लाम और कट्टरपंथी मुस्लिम जिहादियों जैसे गए-गुजरे माने जाने लगे है। श्रीनगर में मस्जिद के बाहर पंडित लेबल पर पुलिस अफसर की मुस्लिम लिंचिग और अलवर में पहलू खान या रकबर ख़ान को पीट-पीट कर मार देने की हिंदू लिंचिग में क्या फर्क है!
क्या इसे कथित हिंदु राज की गौरवगाथा व हिंदुओं का जागना माना जाए या जाहिल, मूर्ख और शैतान बनना? जो हुआ है, जो हो रहा है वह हिंदूओं की दुनिया में बदनामी है। मैं यहां अप्रासगिंक मिसाल दे रहा हूं, मगर हकीकत बतलाने वाली है इसलिए जाने कि डोनाल्ड ट्रंप ने राज संभालते ही कानून बना कर आंतकी देशों के मुसलमानों का अमेरिका में आना रोका। उन्होंने इस्लाम से नफरत करने वाले कट्टरवादी गौरो में यह हवा नहीं बनवाई कि यमन का मुसलमान दिखे तो शक करो। मारो। फ्रांस में महिलाओं के बुर्के पर कानून बना कर प्रतिबंध लगा। डेनमार्क ने कानून से मस्जिद निर्माण पर पाबंदी लगाई। यूरोप में मुस्लिम विद्वेष और घृणा की कई तरह की बाते हुई हंै मगर किसी नेता, मंत्री ने लोगों को उकसाते हुए ऐसे डॉयल़ॉग नहीं मारे कि यदि लोग बीफ खाना छोड़ दें तो रुक जाएंगी मॉब लिंचिंग की घटनाएं। या यह कि जैसे-जैसे पीएम मोदी की लोकप्रियता बढ़ेगी, वैसे वैसे मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती जाएंगी। या यह कि मुसलमान हिंदूओं की भावना समझे!
लाख टके का सवाल है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने क्यों नहीं हिंदू की भावना समझी? यदि समझी होती तो केंद्र सरकार गौवध को जुर्म करार देने का क्या अखिल भारतीय कानून नहीं बना डालती? जिस भावना पर सरकार बनी उसके लिए सरकार और उसके मंत्रियों ने कानून नहीं बनाया और हिंदूओं को उकसा रहे है, कि अपनी भावना में चाहे जिस पर शक करों। उसे ठोकों और मारों!
इसलिए क्योंकि ठोकने, मारने से भावनाओं की सुनामी आती है, बर्बादी होती है जबकि कानून में सब कुछ बंधा होता है, सुधरा होता है, समझा होता है! ध्यान रहे यहां बात दंगे, धर्मयुद्व, हिंसा-प्रतिहिंसा की नहीं है बल्कि शक और बेवजह के फितूर पर भावना के भडकाने की है।
और जान लिया जाए नरेंद्र मोदी व अमित शाह का अब अस्तित्व तभी है जब भावनाओं के ऐसे भभके बने रहे। 2019 का लोकसभा चुनाव ज्यों-ज्यों नजदीक आएगा त्यों-त्यों भावनाओं के इन भभकों पर सुनामी बनाने के दस तरह के जुगाड़ होंगे। तभी आने वाले दिन हम हिंदुओं के लिए बहुत विकट है। हमें दुनिया में अभी बहुत बदनाम होना है। न मॉब लिंचिग रुकेगी और न दुनिया में यह घिन बनती रुकनी है कि उफ! हिंदू ऐसे भी होते हैं!
सोचे, ऐसी घिन हिंदूओं को ले कर कब बनी थी? और क्यों न इसे मोदी सरकार का हिंदुओं को बदनाम बनाने वाला पाप माना जाए?