जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फ़ैसले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरक़रार रखने के बाद वर्तमान पखवाड़े में मीडिया में काफ़ी बहस देखी गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ में विभाजित करने के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए कहा कि अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति को इसे रद्द करने का अधिकार था। न्यायालय ने सरकार को अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फ़ैसले को ‘आशा, प्रगति और एकता की शानदार घोषणा’ क़रार दिया। लेकिन क़रीब पाँच महीने पहले अस्तित्व में आये इंडिया (ढ्ढ.हृ.ष्ठ.ढ्ढ.्र.) गठबंधन के लिए चुनौतियाँ दोहरी हो गयी हैं। पहली चुनौती अपनी प्रतिक्रिया तैयार करना है; क्योंकि कई नेताओं का मानना है कि लोकप्रिय भावना हमेशा अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के पक्ष में रही है। दूसरी चुनौती लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव में मिली हार के रूप में सामने आये झटके को सहना है। ये नतीजे न केवल कांग्रेस के लिए, बल्कि इंडिया गठबंधन के सभी 28 दलों वाले समूह के लिए भी झटका हैं; जिन्होंने निकट भविष्य में आती दिख रही समस्याओं पर मंधन के लिए 19 दिसंबर को एक बैठक बुलायी है।
ऐसे परिदृश्य में जब मीडिया का ध्यान केवल राजनीति पर था, ‘तहलका’ ने यह पता लगाने के लिए अपने विशेष जाँच दल (एसआईटी) को भेजा कि क्या उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग की घटना से कोई सबक़ सीखा गया है? और क्या पारिस्थितिकीय चिन्ताओं का निवारण किया गया है? विडंबना यह है कि ‘तहलका’ एसआईटी ने पाया कि उत्तरकाशी में इस सुरंग में 41 श्रमिकों के 17 दिन तक तक फँसे रहने के बावजूद पर्यावरण की दृष्टि से नाज़ुक इस पहाड़ी क्षेत्र में सब कुछ (निर्माण कार्य) सामान्य रूप से चल रहा है; क्योंकि भवन निर्माण नियमों का उल्लंघन करने वालों की भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलीभगत होती है। जोशीमठ और नैनीताल के मकानों में दरारें, केदारनाथ में 2013 की त्रासदी या हाल ही में सिल्क्यारा सुरंग ढहने जैसी घटनाएँ इस बात पर ज़ोर देती हैं कि हिमालय के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण के ख़तरों को उजागर किया जाए।
‘तहलका’ की आवरण कथा ‘अवैध निर्माण से त्रस्त उत्तराखण्ड’ में एसआईटी ने अपने कैमरे में अवैध निर्माण कराने वाले दलालों को रिकॉर्ड किया है, जो भवन निर्माण के नियमों का उल्लंघन करते हुए उत्तराखण्ड में हमारे रिपोर्टर को (एक काल्पनिक) भवन निर्माण कराने की पेशकश करता है। ‘तहलका’ ने इससे पहले ‘रिश्वत दो, नक़्शा पास’ और ‘क्या इतिहास बन जाएगा जोशीमठ?’ जैसी ख़बरें प्रकाशित की थीं, ताकि यह रेखांकित किया जा सके कि कैसे दलाल और कुछ अधिकारी मिलीभगत से भवन उपनियमों का उल्लंघन करके निर्माण करा रहे हैं। इससे पता चलता है कि हाल की घटनाएँ पर्यावरणीय मानदंडों को लागू कर ख़ामियों को दूर करने के बजाय ख़तरे की घंटी के रूप में काम कर रही हैं और किसी भी फुलप्रूफ रोडमैप को लाने में विफल रही हैं। दलालों द्वारा पहाड़ों पर चलायी जा रही गतिविधियाँ आपदाओं को निमंत्रण देने के अलावा कुछ भी नहीं हैं। ऐसी घटनाओं को उजागर करने के ‘तहलका’ के प्रयास का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है, जब सुनियोजित सुरंग बचाव अभियान को लेकर राष्ट्रव्यापी उत्साह के बीच यह सवाल उठाये जाने चाहिए कि क्या सिल्क्यारा अग्निपरीक्षा से सबक़ लिया गया है? और क्या अवैध निर्माण रोकने के लिए कारगर उपाय शुरू किये गये हैं?