बेगूसराय पूरे देश में एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां आप यदि पहुंचे तो पाएंगे कि यहां पूरा हिंदुस्तान इक_ा है। हर प्रदेश, हर भाषा, हर धर्म के लोगों को बिहार के इस संसदीय क्षेत्र में आप देखेंगे और चकित होंगे। अद्भूत मिलन स्थली हैं बेगूसराय।
जहां तीखी गर्मी में भी लोग देस-विदेस से एकजुट हुए हैं। ये सभी यहां सच को जीत दिलाने और देश को बचाने की कोशिश में न जाने कहां-कहां से पहुंच गए हैं। ये वह देस बनाना चाहते हैं जहां प्यार हो, संतोष हो, लोग दो जून की रोटी संतोष से खा सकें। जाति, धर्म और भाषाई संकीर्णता से अलग एक ऐसा देश बने जहां किसी पर भी किसी तरह का कोई दबाव न हो।
स्टेशन से जैसे ही आप कन्हैया कुमार के बारे में पूछते हैं। सुबह आठ बजे ही आप को हंसते-खिलखिलाते – भागते-कूदते छोटे-छोटे बच्चे गाते दिखेंगे। ‘हाथी, घोड़ा, पालकी , जय कन्हैया लाल की।’ बस, आप इस बाल टोली के साथ-साथ चलते रहिए। बच्चे आपको पीछे आते देखते रहेंगे। आपस में गुपचुप कुछ कहेंगे। ढेरों बाल निगाहें आपको देखेंगी फिर टोली के बच्चे मुस्कारते , हंसती-गाती उस रैली में जा मिलेंगे जहंा बड़े पेड़ की छांव में एक लाल गाड़ी में माला पहले कन्हैया खड़े होकर अपनी बात कह रहे हैं। इक_ा ग्रामीण जन समुदाय कन्हैया की बातों पर हंसता है, खिलखिलाता है। नारे लगाता है, कन्हैया तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। झांसे में न आओ तुम, कान्हा को हम जिताएंगे।
कन्हैया प्रतीक है उस छात्र आंदोलन का जिसे देशभक्ति के नाम पर कुचला गया। झूठे आरोप लगाए गए, युवाओं को जेल में बंद रखा गया। दूसरों के साथ ऐसा न हो इसलिए कन्हैया ने आंदोलन की राह ली। उन्होंने निडरता से जाति, धर्म, के नाम पर भेद करने का विरोध किया। शिक्षा को लगातार मंहगा किए जाने के खिलाफ आवाज़ उठाई। सही, सरल सच्ची भाषा से देश की जनता में अपनी जगह बनाई। बेगूसराय के अपने बच्चे और नौजवान हैं कन्हैया। उनके समर्थन में पूरे देश से विभिन्न आंदोलनों के नेता और समर्थक भी आ जुटे हैं। यह जुड़ाव संकेत देता है बिहार की धरती से एक बदलाव का।
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में कन्हैया कुमार उम्मीदवार तो हैं सीपीआई के। लेकिन विभिन्न वामदलों ने उन्हें समर्थन दिया है। यहां उनके मुकाबले में भाजपा के हिंदुत्व समर्थक गिरिराज सिंह हैं। यह लड़ाई खासी तीखी है। हर तबके की यहां की जनता आज बेरोजग़ारी, नोटबंदी और मंदिर – मस्जिद की राजनीति से उकता गई है। वह फसलों की सही कीमत, बच्चों को रोजग़ार और इलाके में स्कूल, अस्पताल चाहती है। जिसका भरोसा कन्हैया देते हैं।
एक ज़माना था जब बेगूसराय वामपंथी गतिविधियों का बड़ा केंद्र था। आज़ादी की लड़ाई के दौरान ही स्वामी सहजानंद सरस्वती ने यहां किसान आंदोलन को एक ऊँचाई दी थी। स्वामी सरस्वती खुद भूमिहर ब्राहमण थे। लेकिन उन्होंने बेगूसराय में किसानों को ज़मींदरों के खिलाफ एकजुट किया।
सीपीआई बेगूसराय में 1996 तक जीतती रही। सात विधानसभा क्षेत्रों में तीन तो बेगूसराय लोकसभा सीट के तहत है।। जो 2004 तक बलिया सीट का हिस्सा थे। सीपीआई 1996 तक यहां जीतती रहीं। इसके बाद आरजीडी,जनता दल (यू), और एलजपी (लोक जनता पार्टी) एक-एक बार जीती। फिर बलिया लोकसभा सीट और इसकी विधानसभा सीटें दूसरी निर्वाचन क्षेत्रों में जोड़ दी गई। फिर 2014 में चुनाव हुआ। पहली बार बेगूसराय से भाजपा जीती। यह सीट खाली हुई जब अक्तूबर में ?? सिंह का निधन हुआ।
बेगूसराय 30 लाख लोगों का संसदीय क्षेत्र है। यहां से चुनावी मुकाबले में खड़े युवा नेता कन्हैया कुमार इस बार पांच लाख वोटों से जीत कर एक नया रिकॉर्ड बना सकते हैं। यह दावा है अमन समिति के संयोजक और आम आदमी पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी धनंजय कुमार सिनहा का। बिहार के इस जि़ले के लोग धर्म, जाति और पार्टी से ऊपर उठ कर कन्हैया कुमार का समर्थन कर रहे हैं।
भाजपा के बेगूसराय से उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने हरे रंग पर ही पाबंदी लगाने की मंाग की है। भाजपा के हिंदुत्व के प्रबल समर्थक गिरिराज सिंह हैं। उनके इस बयान पर भाजपा की ही सहयोगी पार्टी जद(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने चुनाव आयोग से कहा है कि सिंह के चुनाव लडऩे पर पाबंदी लगनी चाहिए। लेकिन आयोग के दिखावे के दांत अलग हैं और खाने के अलग। इसलिए आयोग इस मुद्दे पर खामोश रहेगा।
बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल की नेता राबड़ी देवी ने पिछले दिनों गिरिराज सिंह को कलिया नाग कहा था। धनंजय सिनहा का कहना है कि इसे विषमुक्त अब कन्हैया कुमार ही करेंगे।
उग्र हिंदुत्व की पहचान बने गिरिराज सिंह की कतई इच्छा नहीं थी कि बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से वेे लड़ें। वे अपनेे नवादा से लडऩा चाहते थे। लेकिन उनकी चली नहीं। बेगूसराय में अब वे अपना भाग्य आजमा रहे हैं। उनकी शोभायात्रा जब बेगूसराय पहुंचती है तो उनकी मंडली नारा लगाती है,’देखो, देखो कौन आया, हिंदुओं का शेर आया।’ यह बात और है कि शेर को देखने भी लोग नहीं जुटते। फिर भी अपनी जहरीली बातों से कुछ बुजुर्ग रसिया उनकी सभा में पहुंच जाते हैं। और ताली बजा कर खिलखिलाते हैं।
एक समय था जब गिरिराज की बात सुनने के जिए भीड़ जुट जाती थी। लेकिन पिछले पांच साल में ही बेगूसराय विकास की दौड़ में काफी पिछड़ गया । यहां एक सरकारी कारखाना है लेकिन वह भी बंदी की कगार पर है।
कन्हैया के मुकाबले यहां आरजेडी के तनवीर अहमद और भाजपा के गिािरराज सिंह लगभग हाशिए पर हैं। यहां दंगा न हो इस कोशिश में तनवीर और उनके समर्थक पूरा प्रयास कर रहे हैं।
पूरा इलाका भूमिहारों का है इसलिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार भी भूमिहर रखा है। इस पूरे इलाके में महादलितों की भी अच्छी तादाद है। उनके बीच चंद्रशेखर सिंह ने काफी काम किया है। खुद कन्हैया जिस गांव में जन्मे वह भी पिछड़ा गांव ही कहा जाता है।
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र गऱीबी, भुखमरी, बेरोजग़ारी और अशिक्षा से अब आज़ादी चाहता हे। कन्हैया को देख कर यहां के लोगों की आखों में आज़ादी की चमक दिखती है।