जब किसी मामले में न्यायालय, पुलिस या किसी जाँच एजेंसी से न्याय होता है, तो लोगों का भरोसा मज़बूत होता है। बीते साल 14 सितंबर, 2020 को हाथरस के चर्चित गैंगरेप और हत्या मामले में केंद्रीय जाँच एजेंसी (सीबीआई) की जाँच रिपोर्ट आने के बाद लोगों ने उसकी जिस तरह तारीफ करनी शुरू की है, उससे यह बात और भी साबित होती है। सीबीआई ने अपनी जाँच में चारों आरोपियों को गैंगरेप और हत्या का दोषी पाया है और अदालत में अपराधियों के खिलाफ केस डायरी सहित आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। सीबीआई ने अपनी जाँच में किसी को बाहर नहीं किया है। पीडि़त परिवार और पीडि़तों को न्याय दिलाने की माँग करने वालों ने सीबीआई की जाँच रिपोर्ट आने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस से सवाल पूछने शुरू कर दिये हैं। आशा है कि इस मामले में न्यायालय भी जो करेगा, वह न्यायोचित ही होगा।
मेरा मानना यह है कि हाथरस मामले में पुलिस की जो भूमिका रही, उससे पुलिस की छवि एक बार फिर धूमिल हुई है। उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार लगातार अपराध बढ़ रहे हैं, उससे प्रदेश पुलिस प्रशासन की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। हाथरस मामले में पुलिस तंत्र ने कई काम ऐसे किये जो शुरू से ही संदेह और सवालों के घेरे में थे, अब सीबीआई की जाँच रिपोर्ट ने उन संदेहों को विश्वास में बदल दिया है और सवालों को और भी तीक्ष्ण व मज़बूत कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में घटी इस वीभत्स घटना ने दिल्ली के निर्भयाकांड की यादों को ताज़ा कर दिया था। हालाँकि निर्भया मामले में न्याय मिलने में काफी समय लगा; उम्मीद है हाथरस मामले में पीडि़त परिवार को जल्दी न्याय मिलेगा। सीबीआई ने इन चारों आरोपियों का गुजरात में ब्रेन मैपिंग और पॉलिग्राफिक टेस्ट भी कराया था। हर स्तर से जाँच के बाद सीबीआई ने चार्जशीट में बलात्कार, हत्या और सामूहिक बलात्कार के मामले में आईपीसी की जिन धाराओं का ज़िक्र किया है, अगर वो साबित हो गयींं, तो इन दोषियों को फाँसी तक की सज़ा हो सकती है। चार्जशीट में कई ऐसे तथ्यों का भी ज़िक्र है, जिससे प्रदेश पुलिस के दावों की पोल खुलती है और उसकी भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं। करीब चार महीने गहन जाँच करने के बाद सीबीआई ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट में यह कहा है कि चारों आरोपियों- संदीप, लवकुश, रवि और रामू ने युवती से उस वक्त कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार करके उसकी हत्या करने के इरादे से मारा-पीटा था और उसकी जीभ काटी थी, जब वह चारा एकत्र करने के लिए खेतों में गयी थी। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (प्रताडऩा रोकथाम) अधिनियम के तहत रिपोर्ट तैयार की है।
इस वीभत्स घटना के बारे में सुनकर या सोचकर आज भी कलेजा काँप जाता है, तो हम सोच सकते हैं कि उस निरीह परिवार पर क्या बीतती होगी, जिसकी बेटी के साथ यह दुर्दांत घटना हुई है। इससे बड़ी बात यह है कि हाथरस के उस गाँव को घटना के बाद से पुलिस ने घेर लिया था और पीडि़त परिवार को नज़रबन्द-सा कर दिया था। वहीं अभी भी इस गाँव बूलगढ़ी में गुप्तचर विभाग (एलआईयू) के लोग लगातार ड्यूटी पर हैं। इसके अलावा केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के जवानों ने गाँव को छावनी बनाया हुआ है। गाँव आने वाले आसपास के रास्तों पर भी कंटीले तार लगा दिये हैं। केवल मुख्यद्वार से ही प्रवेश दिया जा रहा है। गाँव में भी जवान 24 घंटे गश्त दे रहे हैं। गाँव का कोई भी आदमी बिना फोर्स की इजाज़त के न बाहर जा सकता है और न अन्दर आ सकता है। इतना ही नहीं, पीडि़त परिवार की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतज़ाम कर दिये गये हैं। घर के बाहर बने एक कमरे के आसपास तार लगा दिये हैं, ताकि कोई भी व्यक्ति प्रवेश न कर पाये। घर में आने-जाने वाले हर व्यक्ति की तलाशी ली जा रही है। उसके नाम, पता और मोबाइल नंबर रजिस्टर में दर्ज किया जा रहा है। यानी अगर इस सुरक्षा को दूसरे नज़रिये से देखें, तो पीडि़त परिवार को एक तरह से कैद कर लिया गया है। पीडि़त परिवार से पहले भी किसी को नहीं मिलने दिया जा रहा था, अब भी लगभग वैसा ही हाल है। लेकिन फर्क अब इतना है कि आरोपियों के परिजनों पर भी अब कड़ी निगरानी रखी जा रही है। वहीं अब आरोपियों के घरों में मातम जैसा माहौल है। सीबीआई की चार्जशीट दाखिल करने के बाद अलीगढ़ जेल में बन्द चारो आरोपी न तो चैन की नींद सो रहे हैं और न ही ठीक से खा-पी रहे हैं। अब तक एक ही बैरक में बन्द रहे चारो आरोपियों को जेल प्रशासन ने अब अलग-अलग बैरकों में रखने का फैसला लिया है। जेल प्रशासन ने चारो आरोपियों की निगरानी भी कड़ी कर दी गयी है।
खबरों के मुताबिक, इस मामले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद चारो आरोपी काफी परेशान दिख रहे हैं। चारो के चेहरों पर तनाव रहने लगा है। आपको याद होगा कि इस घटना और बाद में चर्चाओं में यह बात तेज़ी से फैली थी कि युवती के साथ इन आरोपियों ने कुछ नहीं किया है। गाँव का उच्चवर्ग भी यही मानता था कि सीबीआई की जाँच में दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाएगा। ऐसे में सीबीआई की चार्जशीट के बाद से आरोपियों, उनके परिवारों और उनके समर्थकों को गहरा धक्का लगा है।
राज्य में आये दिन हो रहे अपराध
उत्तर प्रदेश में अपराधियों पर रोक नहीं लग पा रही है। दु:खद यह है कि कहीं-कहीं पुलिस भी जाने-अनजाने ऐसे काम करती नज़र आ जाती है, जिससे शर्म से सिर झुक जाता है। अभी हाल ही में कुशीनगर की पुलिस पर ऐसे ही आरोप लगे हैं। एक वीडियो में एक परिवार यहाँ की पुलिस पर युवतियों से छेड़छाड़ और परिवार को प्रताडि़त करने का आरोप लगाता नज़र आ रहा है। इस वीडियो और कुछ खबरों के मुताबिक, यहाँ मुम्बई से एक परिवार शादी में आया था। ये लोग जब कुशीनगर घूम रहे थे, तब दो-तीन पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर परिवार में मौज़ूद युवतियों से छेड़छाड़ की। परिजनों का आरोप है कि बाद में पुलिस ने रेस्टोरेंट में लगे सीसीटीवी कैमरे का रिकॉर्डिंग बॉक्स हटा दिया, ताकि उनके खिलाफ कोई सुबूत न मिल सके और उन्हें थाने ले जाकर भी उनके साथ बदसुलूकी की। पीडि़तों ने मोबाइल में वीडियो बनायी थी, वह भी पुलिस ने जबरन डिलीट की और पीडि़तों की गाड़ी तोड़ दी। हालाँकि बाद में पीडि़त परिवार वहाँ के पुलिस अधिकारी से मिला और अधिकारी ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दोष सिद्ध होने पर सख्त-से-सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। पीडि़त परिवार का कहना है कि अगर उन्हें इंसाफ नहीं मिलता है, तो वे लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर न्याय की माँग करेंगे।
एक दूसरी आपराधिक घटना हापुड़ ज़िले में घटी। यहाँ गढ़मुक्तेश्वर थाना क्षेत्र के एक गाँव की एक 12 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप के मामले ने लोगों को अन्दर तक झकझोर दिया है। सोचने की बात है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों, दरिंदों की इतनी हिम्मत कैसे बढ़ रही है कि एक बच्ची अपनी दादी के साथ जा रही होती है और अपराधी उसे खींचकर ले जाते हैं और गैंगरेप कर देते हैं। इतना ही नहीं, पीडि़त के भाई को बन्धक बनाकर फैसले का दबाव भी बनाया जाता है। आखिर पुलिस क्यों ऐसे लोगों पर शिकंजा नहीं कस पा रही है? जो प्रदेश में खौफ का माहौल पैदा किये हुए हैं। हद तो यह है कि अब अपराधी डरते नहीं हैं। इस बच्ची के भाई ने जब अपराधियों का उनके गाँव तक पीछा करके यह जान लिया ये लोग कौन हैं? तो अपराधियों और उनके परिवार वालों ने पीडि़त के भाई को तीन घंटे तक बन्धक बनाये रखा और फैसले का दबाव बनाया। हालाँकि पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है और मामले की जाँच कर रही है। हापुड़ के एसपी नीरज जादौन ने बताया कि थाना गढ़मुक्तेश्वर में एक व्यक्ति ने शिकायत दी थी कि उसकी बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है। बच्ची का मेडिकल कराने के बाद मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, कार्रवाई जारी है और पीडि़त को न्याय दिलाया जाएगा।
इधर पीडि़त बच्ची घटना के बाद से सदमे में है। परिजनों के अनुसार, बच्ची के साथ हुई हैवानियत ने उसे अन्दर से मार दिया है। गाँव वालों ने बताया कि बच्ची अपनी दादी के साथ जंगल में लकड़ी काटने जा रही थी, उसी दौरान दूसरे गाँव के कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों ने उसका अपहरण कर लिया और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। इत्तेफाक से इसी दौरान बच्ची का भाई जंगल में पहुँच गया और उसे अपनी बहन के अपहरण की बात पता चली, तो वह उसे खोजने लगा। उसने देखा कि कुछ युवक तेज़ी से भाग रहे हैं और मासूम बहन बेहोश पड़ी है। इस बच्चे ने होशियारी से काम लिया और अपराधियों का पीछा करने लगा। लेकिन जैसे ही वह पीछा करते हुए उनके गाँव पहुँचा उसे ही बन्दी बनाकर प्रताडि़त किया जाने लगा और पंचायत लगाकर उस पर फैसले का दबाव बनाने की कोशिश की जाने लगी। क्या इस मामले में आरोपियों समेत फैसले का दबाव बनाने वाले सभी लोगों के खिलाफ सख्त-से-सख्त कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? ताकि अपराध करने वालों के साथ-साथ उनका साथ देने वालों के मन में भी कानून का खौफ पैदा हो सके। इसी तरह हाथरस मामले में भी आरोपियों का पक्ष लेने वाले लोगों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि अपराध करने वालों को बढ़ावा देने वाले भी अपराध के लिए उतने ही ज़िम्मेदार होते हैं।
इससे लोगों को पुलिस प्रशासन पर भी यह भरोसा बनेगा कि वह उनकी सुरक्षा के लिए है और पुलिस भी सही मायने में अपना फर्ज़ अदा कर पाएगी।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक सम्पादक हैं।)