उत्तर प्रदेश के हाथरस में अनुसूचित जाति की युवती के साथ हैवानियत के तीन हफ्ते बीत चुके हैं, पर न्याय की उम्मीद की किरण अब भी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है। युवती की न सिर्फ रीढ़ की हड्डी तोड़ी गई, बल्कि वो बोल न सके इसलिए ज़ुबान काट दी गई। अब जो उसके हक़ में जुबान खोल रहे हैं उन पर डंडे और सत्ता का रौब दिखाकर दबाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है।
चूंकि मामला एक आम दलित परिवार से जुड़ा है और इसमें भीम आर्मी के चंद्रशेखर शुरू से आंदोलनरत हैं; इसलिए मामले को तूल तो पकड़ना ही था। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर लखनऊ और असम से लेकर बंगाल तक हाथरस कांड की गूंज सुनाई दी।
दरअसल, मामले में प्रशासन की शुरुआत से ही घोर लापरवाही सामने आई। मामले को रफा-दफा करने के तमाम प्रयत्न नाकाम साबित हुए। इन सबके बावजूद प्रशासन अपनी हरकतों से निरंतर बाज नहीं आया।
सफदरजंग अस्पताल में 29 सितंबर को पीड़िता की मौत के बाद से हंगामा शुरू हो गया। 29 की ही रात को पुलिस ने हाथरस में युवती के परिवार को घर में बंधक बना दिया। योगी सरकार के खाकीधारियों ने बिना परिवार की सहमति के ही शव पर पेट्रोल डालकर रात 2.30 बजे अंतिम संस्कार कर डाला। इसके बाद मुद्दा और गरम हो गया। यानी ज़्यादती पे ज़्यादती। धर्म पर लगातार अधर्म हावी नज़र आया।
अगले दो दिन पीड़िता के गाँव को छावनी में तब्दील कर दिया गया। किसी के भी गांव में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। मीडिया तक को जाने नहीं दिया। इसी बीच, 1 अक्टूबर को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रियंका गांधी के साथ हाथरस के लिए निकले। उनको ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे पर पुलिस ने जबरन रोक लिया। उनकी पुलिस वालों से बहस भी हुई। फिर जबरन हिरासत में लेकर पुलिस की गाड़ी में ले गए। इसके बाद कांग्रेसियों पर लाठियां भांजीं, जिसमे कुछ कार्यकर्ता घायल भी हुए। पुलिस से झड़प में राहुल गांधी गिर गए, इसपर भी किसी सत्ताधारी का साथ देने के बजाय फ़ोटो सेशन बताना उनके मंसूबों को बता गया। अगले दिन 2 अक्टूबर को बंगाल के टीएमसी सांसदों का दल हाथरस जाना चाह रहा था, तब टीएमसी की दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन को पुलिस ने धक्के मारकर गिरा दिया और महिला सांसदों के साथ पुलिस ने बदसलूकी की गई।
3 अक्टूबर को राहुल गांधी ने ऐलान किया कि दुनिया की कोई ताकत उन्हें हाथरस में पीड़ित परिवार से मिलने से नहीं रोक सकती। इसके बाद दिग्गज कांग्रेस नेताओं के साथ दिल्ली से हाथरस के लिए निकल पड़े। चंद किलोमीयर के बाद यूपी में एंटर होते ही डीएनडी पुल पर उनके काफिले को रोक लिया गया। इस फौरन भारी तादाद में पुलिस फोर्स तैनात किया गया। बाद में पुलिस ने झुककर सिर्फ 5 लोगों को जाने की इजाजत दे दी। इसके साथ ही लाठीचार्ज कर दिया। इसने कुछ कांग्रेसी गिर पड़े, तभी अपने कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय को रोकने के लिए प्रियंका और राहुल गांधी गाड़ी से उतरकर उनको बचाने गए। इसी बीच, एक पुरुष पुलिस वाले ने प्रियंका का कुर्ता पकड़ कर खींचा। राहुल भी बैरिकेड फांदकर कार्यकर्ताओं के साथ नाइंसाफी को दबाने के लिए फ्रंट पर पहुंचे। और रात में परिजनों से मिलकर उनका दुखदर्द साझा किया। वहीं, कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी हाथरस कांड पर रैली की।
भारी दबाव के बीच, यूपी की योगी सरकार को सीबीआई से जांच कराने का ऐलान करना पड़ा।
इसी दौरान रोज़ाना सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में न्याय के नाम पर पुलिसिया लाठी खाते रहे। ध्यान देने वाली बात ये है पीड़ित के पक्ष वालों के लिए नियम कानून का हवाला दिया जाता रहा। और इसी दरमियान आरोपियों को पक्ष में दो बार महापंचायत भी बैठ चुकी जिसमें दर्जनों लोग जमा हुए। लाठियों के बल पर नेताओं को तो रोक सकते हैं, लेकिन इंसाफ और सच को नहीं। उसे जितना दबाने की कोशिश करोगे वो उतना उतना ही अधिक उछाल मारेगा और अच्छे अच्छों को बेनकाब कर देगा।