भारतीय पुरुष हाकी के लिए ऐन मौके पर हार को गले लगा लेना कोई नई बात नहीं। चाहे 2000 के सिडनी ओलंपिक का पोलैंड के खिलाफ खेला सबसे महत्वपूर्ण लीग मैच हो या जकार्ता के एशियाड में मलेशिया के खिलाफ खेला सेमीफाइनल हर बार भारत अंतिम क्षणों में अपने ऊपर गोल करवाता ही रहा है। इसी वजह से वह 2000 ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचने से महरूम रहा। उस मैच में भारत अंतिम मिनट तक 1-0 की बढ़त पर था और पोलैंड केवल गोल बराबरी की कोशिश कर रहा था। अंतिम क्षणों में पोलैंड के फारवर्ड ने उस समय के कप्तान रमणदीप को छक्का कर दांए छोर से भारत की ‘डी’ में प्रवेश कर पहली ही हिट से गोल का तख्ता खड़का दिया। जकार्ता में भी ऐसा ही कुछ हुआ। जब भारत का सेमीफाइनल में प्रवेश तय लग रहा था और 58.13 मिनट का खेल हो चुका था यानी मात्र एक मिनट 47 सेकैंड उसे काटने थे। जो वे कर ही नहीं पाए। मलेशिया के हमले को रोकने के लिए आगे जाने की बजाए हमारे रक्षक अपनी ‘डी’ में घुसते गए और पेनाल्टी कार्नर दे बैठे। यह पेनाल्टी कार्नर भी रुकना चाहिए था पर श्रीजेश बहुत कमज़ोर साबित हुए।
भारत की इस हार पर सबसे पहली और बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया टीम के कोच हरेंद्र सिंह ने दी। ”हमने बेतहाशा गलतियां की। यह इसलिए नहीं हुई की विरोधी टीम का हम पर कोई दवाब था पर ये ‘अनफोर्सड’ ग़लतियां थीं। ये क्षमा योग्य नहीं हैं, यह आत्महत्या थी’’। यदि साधारण भाषा में कहें तो विजय को इतना करीब देख भारतीय खिलाड़ी बौखला से जाते हैं। यहां भी 2-1 की बढ़त और मात्र एक मिनट 47 सेकेंड का समय था। मलेशिया को पेनाल्टी कार्नर मिला। हरेंद्र ने कहा पहले तो बराबरी का गोल खाना ही नहीं चाहिए था और यह पेनाल्टी कार्नर को भी मलेशियाई टीम को मिलने से रोक सकते थे। गेंद ‘डी’ से बाहर थी। किसी न किसी को आगे बढ़ कर उसे टैकल करना चाहिए था। पर किसी ने यह नहीं किया। फिर जब गेंद ‘डी’ में आ गई तो वहां जैसे भगदड़ मच गई। हम टैकल करते हुए अपनी हाकी ‘स्टिक्स’ इधर-उधर फंसाने की कोशिश में लग गए। हम पीछे हटते गए, हटते गए जबकि गेंद की ‘डी’ से बाहर रोकना चाहिए था।
चंडीगढ़ खेल विभाग के पूर्व सहनिदेशक केएस भारती का कहना था कि भारतीय टीम में विश्वास की कमी साफ झलकती है। हल्की टीमों के साथ वे पूरे आत्मविश्वास से खेलते हैं पर जैसे ही कोई बड़ी टीम आती है तो वे सारी कला भूल जाते हैं। हालांकि मलेशिया तो कोई ऐसी टीम भी नहीं है।
इस हार से भारत को 2020 के टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाइंग मुकाबले खेलने होंगे। इस तरह का उनका पहला टूर्नामेंट तो मात्र तीन महीने दूर है। अब एशियाड के सेमीफाइनल में हारा भारत कितनी चुनौती पेश कर सकेगा यह तो समय पर ही पता चलेगा, पर पिछले कई दशकों से भारतीय टीम की अंतिम क्षणों में गोल खाने की प्रवृति से कैसे छुटकारा मिले यह एक यक्ष प्रश्न है।