यह सच है कि हाईवे और एक्सप्रेस-वे से लोगों की आवाजाही आसान हुई है और कई छोटे शहरों का मेट्रो शहरों से कनेक्टिविटी बढ़ी है। एक तरफ जहाँ लोगों को इससे सुविधा हुई है, तो दूसरी ओर इसमें खामियों व लापरवाही के चलते इससे कई जि़दगियाँ बर्बाद भी हुई हैं। तमाम परिवार के बच्चे अनाथ हो गये या महिलाएँ विधवा हो गयीं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं देश में बढ़े सडक़ हादसों से। सरकारी आंकड़ों मं ही देश में सडक़ हादसों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। खास बात यह है कि दुनिया में सबसे अधिक हादसे भी भारत में ही होते हैं और इन हादसों में जान गंवाने वालों की तादाद भी सर्वाधिक है। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी की गयी भारत में सडक़ दुर्घटनाएँ-2018 की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। जानें रिपोर्ट की अहम बातें-
रिपोर्ट में बताया गया कि 2017 के मुकाबले 2018 में सडक़ दुर्घटनाएं में करीब आधा फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी। देश के अन्दर अगर सडक़ हादसों की संख्या की बात करें, तो तमिलनाडु में सबसे अधिक हुए, जबकि इन मौतों में तादाद देखें, तो इसमें यूपी सबसे ऊपर है।
2017 के मुकाबले 2018 में देश में 0.46 फीसदी अधिक सडक़ दुर्घटनाएँ हुईं। 2017 में जहाँ सडक़ हादसे के 4,64,910 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2018 में बढक़र 4,67,044 हुए। एक साल में सडक़ दुर्घटनाओं में जान गँवाने वालों की संख्या भी 2.37 फीसदी बढ़ी है। 2017 में जहाँ सडक़ हादसों में 1,47,913 मौतें हुई थीं, वहीं 2018 में यह संख्या 1,51,417 हो गयी। हालाँकि, सडक़ हादसों में घायलों की संख्या 2018 में कम हुई है।
2010 के बाद से सडक़ हादसों में होने वाली मौतें व घायलों की संख्या में निरंतर तेज़ वृद्धि दर्ज की गयी; लेकिन उसके बाद से इनमें स्थिरता आयी है। साल-दर-साल इनमें मामूली फर्क देखने को मिला है। इतना ही नहीं, पिछले दशकों की तुलना में 2010-2018 में दुर्घटना और मौतों का आँकड़ा सबसे कम रहा है। खास बात यह रही कि इस दौरा सबसे अधिक गाडिय़ाँ बिकीं।
देश के सडक़ नेटवर्क में करीब 2 फीसदी हिस्सा नेशनल हाईवे का है; लेकिन 2018 में 30.2 प्रतिशत सडक़ दुर्घटनाएँ और 35.7 फीसदी मौतें इन्हीं नेशनल हाईवे पर ही हुईं। सडक़ नेटवर्क में स्टेट हाईवे का हिस्सा करीब 3 फीसदी है जबकि सडक़ दुर्घटनाओं में 25.2 फीसदी और इसके चलते होने वाली मौतों में 26.8 प्रतिशत भागीदारी रही। शेष 95 प्रतिशत अन्य सडक़ें हैं जिन पर 2018 में 45 फीसदी दुर्घटनाएं और 38 फीसदी मौतें हुईं।
हादसों में जान गँवाने वालेां में 15 प्रतिशत पैदल यात्री, 2.4 प्रतिशत साइकिल वाले और 36.5 फीसदी दोपहिया वाहन चालक थे। यानी सडक़ हादसों में होने वाली मौतों का सबसे ज्यादा हिस्सा 53.9 प्रतिशत इन्हीं का है। पूरी दुनिया में सडक़ पर चलने वालों में सबसे ज्यादा हादसे के शिकार होने वाले इसी श्रेणी में आते हैं।
2018 में सडक़ दुर्घटना के पीडि़तों में सबसे ज्यादा 69.6 प्रतिशत 18-45 आयु वर्ग के थे। हादसों में होने वाली मौतों में 84.7 हिस्सा 18-60 वर्ष की उम्र के लोगों का था, यानी ये कमाने वाले श स थे।
हिट एंड रन के मामलों में 2018 में करीब १९ फीसदी मौतें हुईं जो 2017 में 17.5 प्रतिशत थीं। आमने-सामने की टक्कर,, हिट एंड रन और पीछे से ठोकर मारने के चलते हुए हादसों में 56 फीसदी मौतें हुईं। 2018 में खड़े वाहनों में टक्कर के चलते होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गयी।
हादसों में जान गँवाने वालों में 86 फीसदी पुरुष और 14 फीसदी महिलाएँ रहीं।
हादसों के कारण
वैसे तो सडक़ हादसों के कई कारण होते हैं, जैसे कि मानवीय गलती, सडक़ की बनावट और स्थिति, वाहन की हालत आदि। रिपोर्ट में मिले आँकड़ों के मुताबिक, हादसों की बड़ी वजह ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन भी है।
यातायात उल्लंघन मामले में ओवर स्पीडिंग के चलते 64.4 प्रतिशत और गलत साइड में वाहन चलाने के चलते 5.8 प्रतिशत मौतें हुईं। गाड़ी चलाते समय मोबाइल के इस्तेमाल की वजह से 2.4 फीसदी और शराब पीकर गाड़ी चलाने के चलते 2.8 फीसदी लोगों ने जान गंवाई।
बिना वैध लाइसेंस या लर्निंग लाइसेंस के ड्राइविंग के कारण 13 प्रतिशत दुर्घटनाएँ हुईं।
29 प्रतिशत मौतों का कारण दोपहिया वाहन चालकों का हेलमेट न पहनना रहा और 16 प्रतिशत मौतें सीट बेल्ट नहीं लगाने के कारण हुईं।
41 प्रतिशत मौतें 10 साल से पुराना वाहन चलाने के कारण हुईं।
12 फीसदी मौतें ओवरलोडेड गाडिय़ों के चलते हुईं।
कुल हादसों का लगभग 18.3 प्रतिशत मामले 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 50 शहरों में हुईं। अगर होने वाली मौतों में इनकी हिस्सेदारी की बात करें तो यह 11.7 प्रतिशत दर्ज की गईं।
अकेले यूपी में 22,256 लोगों ने जान गंवाई
2018 में उत्तर प्रदेश में कुल 42,568 सडक़ हादसे हुए, जबकि 22,256 लोगों को इसके चलते अपनी जान गँवानी पड़ी। दूसरे नंबर पर हरियाणा रहा, जहाँ पर 11,238 दुर्घटनाओं में 5118 मौतें, पंजाब में 6428 हादसों में 4740 मौतें हुईं। उत्तराखंड में 1468 दुर्घटनाओं में 1047 मौतें हुईं। वहीं, हिमाचल में 3110 सडक़ हादसों में 1208 लोगों ने जान गँवाई। 2017 की तरह 2018 में भी सबसे ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएँ मिलनाडु में हुईं। इसी तरह, सडक़ दुर्घटना में सबसे अधिक मौतें 2017 की तरह 2018 में भी उत्तर प्रदेश में ही हुईं।