अंजलि भाटिया
नई दिल्ली , 19 जून- देशभर में तेजी से बन रहे नेशनल हाईवे और एक्सप्रेस-वे अब सिर्फ यात्रा के साधन नहीं रहेंगे, बल्कि ये सामाजिक और आर्थिक विकास के मापदंडों पर भी परखे जाएंगे। केंद्र सरकार अब यह देखेगी कि इन सड़कों से जनता को क्या वास्तविक लाभ हो रहा है.जैसे यात्रा में समय की बचत, ईंधन खर्च में कमी, सड़क सुरक्षा में सुधार और स्थानीय लोगों की जिंदगी में बदलाव।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 5 जून को इसके लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। मंत्रालय ने बताया कि सभी हाईवे और एक्सप्रेस-वे परियोजनाओं के प्रभाव को पांच प्रमुख क्षेत्रों में मापा जाएगा। :
इसमें पहला आर्थिक प्रभाव आर्थिक प्रभाव: क्या इन सड़कों से जीडीपी में वृद्धि हो रही है? क्या स्थानीय बाजारों और आर्थिक केंद्रों तक पहुंच आसान हुई है? लॉजिस्टिक्स सुधार: यात्रा में लगने वाले समय और दूरी में कितनी कमी आई है? क्या लॉजिस्टिक्स की लागत घटी है? सामाजिक प्रभाव: क्या लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आसान हुई है? क्या ग्रामीण क्षेत्रों की घरेलू आय बढ़ी है? पर्यावरणीय लाभ: ईंधन की खपत घटने से कितना CO2 उत्सर्जन कम हुआ है? सुरक्षा और अनुभव: सड़कों की गुणवत्ता, दुर्घटनाओं की संख्या और उपयोगकर्ताओं की संतुष्टि को कैसे बेहतर किया गया है?
इन परियोजनाओं के प्रभाव का आकलन किसी सरकारी एजेंसी के बजाय स्वतंत्र थर्ड पार्टी ऑडिट से कराया जाएगा। इसके अलावा, हितधारकों जैसे स्थानीय निवासियों, वाहन चालकों और कारोबारियों से बातचीत कर फीडबैक लिया जाएगा।
हाईवे बनने के बाद एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और बड़े बाजारों तक पहुंचने में कितनी तेजी आई? जिला स्तर की जीडीपी, घरेलू आय में वृद्धि में कितना इजाफा हुआ? आसपास वाहनों की बिक्री में कितनी बढ़ोतरी हुई? क्या इन सड़कों से लोगों की आमदनी बढ़ी?
जनता का पैसा केवल सड़क निर्माण में न लगे, बल्कि वह देश के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास में भी योगदान दे।