भारत में हर रोज़ दुष्कर्म के 109 मामले रिपोर्ट होते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रत्येक 6 प्रतिशत महिलाओं, जिनके साथ रेप की घटना हुई, में से सिर्फ 0.006 प्रतिशत ही इसकी शिकायत कर पाती हैं। यही नहीं पिछले करीब एक दशक में महिलाओं के िखलाफ अपराधों के लिए सज़ा की दर हमेशा 30 फीसदी से कम रही है।
यदि रेप में फाँसी की सज़ा की बात की जाए, तो हैरानी की बात है कि रेप के लिए देश में फाँसी की आिखरी सज़ा 15 साल पहले हुई थी।
इसी साल अक्टूबर में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2017 के लिए जारी रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। वैसे हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की मीडिया में बलात्कार की खबरों का स्वत: संज्ञान लिया था। पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, अनिरुद्ध बोस और दीपक गुुप्ता की बेंच ने इस मामले में राज्यों के हाईकोर्ट में दर्ज बलात्कार के मामलों के आँकड़े तलब किये थे।
सर्वोच्च अदालत के आदेश के सामने जब राज्यों से रेप के आँकड़े पेश किये गये, तो यह बहुत चौंकाने वाले थे। इसके मुताबिक पहली जनवरी, 2019 और 30 जून, 2019 के बीच देश में 24, 212 बलात्कार के मामले दर्ज हुए जो सिर्फ नाबालिग बच्चों और बच्चियों से सम्बन्धित थे। रिकॉर्ड के मुताबिक इनमें से 12,231 मामलों में पुलिस ने आरोप पत्र दायर किये थे, जबकि 11,981 मामलों की जाँच चल रही थी। यदि इन रेप मामलों में रेप से जुड़े सभी मामले का आँकड़ा जोड़ दिया जाए, तो वह निश्चित ही बहुत भयावह होगा।
रिकॉड्र्स के मुताबिक, औसतन 39 हज़ार में से 9 हज़ार रेप के मामले नाबालिग बच्चियों के थे। हर साल 2000 ऐसे मामले होते हैं, जिनमें पीडि़ता का गैंगरेप किया गया। रेप के मामलों में सिर्फ 25 फीसदी बलात्कारियों को ही सज़ा मिल पाती है। और भी चिन्ता की बात यह है कि रेप के 71 फीसदी मामले तो ऐसे हैं, जिन्हें रिपोर्ट ही नहीं किया जाता, जिससे ज़ाहिर होता है कि रेप के मामलों की असली संख्या कितनी होगी।
यदि एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट की बात की जाए, तो इसमें 2017 तक के रेप के आँकड़े हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में भारत में दुष्कर्म के 32,559 के मामले रिपोर्ट हुए। रेप की घटनाओं में तीन हिन्दी भाषी राज्य सबसे ऊपर हैं। इनमें मध्य प्रदेश नम्बर एक पर है। एनसीआरबी की 2017 की रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश में 2017 में कुल 5562 मामले दर्ज किये गये।
देश का सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश दूसरे नम्बर पर है, जहाँ रेप के 4246 केस दर्ज किये गये। इसके बाद राजस्थान आता है, जहाँ दुष्कर्म के कुल 3305 मामले रिपोर्ट हुए। इनके बाद ओडिशा में 2070, केरल में 2003, महाराष्ट्र में 1933 और छत्तीसगढ़ में 1908 मामले रिपोर्ट हुए।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 93.1 फीसदी मामलों में आरोपी, पीडि़त को जानने वालों या उसके परिजनों में से थे। वैसे 2017 के आँकड़ों को देखें तो 2015 के मुकाबले करीब दो फीसदी की कमी आयी है।
ब्यूरो की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे 30,299 मामलों में से 3,155 में आरोपी पीडि़त के परिवार के सदस्य थे। दुष्कर्म के 16,591 मामले पारिवारिक मित्र, नौकरी देने वाले, पड़ोसी या अन्य ज्ञात व्यक्तियों के िखलाफ ही दर्ज किये गये थे। इसके अलावा 10,553 मामलों में आरोपियों में दोस्त, ऑनलाइन दोस्त, लिव-इन पार्टनर या पीडि़तों के पूर्व पति थे।
दुष्कर्म के मामलों की अधिकतम संख्या मध्य प्रदेश में दर्ज की गयी है, जो 5,562 है। इनमें 97.5 प्रतिशत अपराध पहचान वाले लोगों ने ही किया गया। राजस्थान के रिपोर्ट हुए 3,305 मामलों में 87.9 प्रतिशत मामलों में दुष्कर्म की रिपोर्ट जानने वालों के िखलाफ दर्ज हुई। इसी तरह महाराष्ट्र में 98.1 प्रतिशत दुष्कर्म मामले दोस्तों, सहयोगियों या रिश्तेदारों के िखलाफ दर्ज हुए। मणिपुर में तो दर्ज दुष्कर्म के सभी 40 मामले पीडि़त व्यक्ति के परिचित लोगों के िखलाफ दर्ज हुए थे। यदि महिलाओं के िखलाफ हर तरह के अपराध की बात की जाए तो एनसीआरबी के आँकड़े चिन्ता पैदा करने वाले हैं। साल 2015 में महिलाओं के िखलाफ अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज हुए, जो एक साल बाद 2016 में बढक़र 3,38,954 हो गये। इससे अगले साल 2017 में यह आँकड़ा बढक़र 3,59,849 पहुँच गया। अर्थात् इस एक साल के दौरान महिलाओं के िखलाफ अपराध के 20,895 मामले बढ़ गये। रिकार्ड के मुताबिक, देश भर में 2007 में रेप के 19,348 मामले दर्ज किये गये। 2008 में 20737, 2009 में 21467, 2010 में 21397, 2011 में 22172, 2012 में 24923, 2013 में 33707, 2014 में 36735, 2015 में 34210, 2016 में 38947 और 2017 में दुष्कर्म के 32,559 मामले रिपोर्ट हुए। महिलाओं के िखलाफ बढ़ते अपराध की बात की जाए, तो हर घंटे देश में 2007 में 21 मामले रिपोर्ट हुए। इसके बाद 2008 में 22, 2009 में 23, 2010 में 24, 2011 में 26, 2012 में 28, 2013 में 35, 2014 में 39, 2015 में 37, 2016 में 39 और 2017 में 43 मामले हर घंटे रिपोर्ट हुए।
दुष्कर्म की आखरी फाँसी सज़ा
बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश में दुष्कर्म की लिए फाँसी की आखरी सज़ा का मामला 14 अगस्त, 2004 का है। नाबालिग छात्रा का दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने के जुर्म में धनंजय चटर्जी को कोलकाता की अलीपुर जेल में फाँसी दी गयी थी। अब 15 साल हो गये और देश में इसकी बाद रेप की पाँच लाख घटनाएँ हो गयीं, देश दुष्कॢमयों में खौफ पैदा करने के लिए फाँसी का इंतज़ार कर रहा है।
यदि आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ, तो ज़ाहिर होता है कि पिछले 10 साल में रेप की घटनाओं में सज़ा का प्रतिशत कभी भी 30 प्रतिशत तक भी नहीं पहुँचा है। साल 2017 में यह करीब 26 प्रतिशत रहा तो 2016 में सिर्फ 25.5 प्रतिशत। पिछला रिकॉर्ड देखें, तो 2007 में सज़ा का प्रतिशत 26.4 रहा, 2008 में 26.6 प्रतिशत, 2009 में 26.9, 2010 में 26.6, 2011 में 26.4, 2012 में 24.2, 2013 में 27.1, 2014 में 28.0 और 2015 में 29.4 प्रतिशत रहा।