केंद्र और राज्य सरकारें जब मर्ज़ी जहाँ मर्ज़ी लगा देती हैं अध्यापकों की ड्यूटी,
जिससे बच्चों की पढ़ाई होती है ठप
भारत में गुरु शब्द का प्रयोग प्राचीन-काल से होता आ रहा है। यह शब्द शिक्षा देने वाले को सम्बोधित करता है। आज के समय में ‘गुरुजी’ के लिए शिक्षक या अंग्रेजी शब्द टीचर या ग्रामीण बोलचाल भाषा में मास्टर साहब, जो भी प्रयोग करें, इसके अर्थ में कोई बदलाव नहीं आया है। इसका एक ही अर्थ है- शिक्षा देने वाला। पर भारत समेत झारखण्ड में सरकारी स्कूलों में काम करने वाले गुरुजी का अर्थ ही बदल गया है। वे हर मर्ज़की दवा बन गये हैं। उनसे शिक्षा से इतर हर तरह का काम लिया जाता है। स्कूलों में मिड-डे मील, बच्चों को ड्रेस बाँटने, स्कूलों के भवन निर्माण, स्कूल का लेखा-जोखा रखना, घंटी बजाना आदि स्कूल से जुड़े काम की ज़िम्मेदारी गुरुजी पर पहले से है। इसके अलावा जहाँ स्कूल के कार्य से कोई लेना-देना नहीं है, वहाँ भी गुरुजी नामक प्राणी को फिट कर दिया जाता है। मसलन- जनगणना, चुनाव में ड्यूटी, मतदाता सूची तैयार करने, वोटर कार्ड बाँटने आदि कई कामों में सरकार अपनी सुविधा के लिए इनका उपयोग करती है। गुरुजी हर वो काम करते हैं, जिसका बच्चों की शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। इन दिनों गुरुजी पर एक और काम की ज़िम्मेदारी आ गयी है, वह है कोरोना से निपटना।
अस्पताल से लेकर प्लांट तक ड्यूटी
देश में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है। मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और देश के अन्य राज्यों समेत झारखण्ड में इन दिनों गुरुजी यानी शिक्षकों की कोरोना से निपटने में ड्यूटी लगा दी गयी है। बच्चों को शिक्षा देने वाले ये शिक्षक अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक सरकार की ड्यूटी बजा रहे हैं। शिक्षक स्कूली बच्चों की जगह अस्पताल और कोविड सेंटर में मरीज़ से जूझ रहे हैं। वहाँ मरीज़ों की देखभाल कर रहे। बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवा आदि का हिसाब रख रहे। कुछ शिक्षकों की ड्यूटी आइसोलेशन सेंटर में लगी है, जहाँ उन्हें सेंटर के व्यवस्था की सँभालने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। वहीं कुछ शिक्षकों को तो रेमडिसेविर इंजेक्शन समेत अन्य दवाओं के कालाबाज़ारी को रोकने के लिए दवा दुकानों पर ड्यूटी लगा दी गयी है। कोरोना जाँच में लगे शिक्षक जाँच के लिए आने वालों का केवल ब्यौरा ही नहीं रख रहे, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना जाँच के लिए आये व्यक्ति का स्वाब लेते भी दिख जाते हैं। कुछ शिक्षक ऑक्सीजन प्लांट में बैठकर सप्लाई को व्यवस्थित करने में लगे हैं। इसके अलावा कोरोना-काल में भी घर-घर बच्चों को मिड-डे मील का राशन पहुँचाना, किताब पहुँचाना, अपने स्कूल का हिसाब-किताब रखना, बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने का प्रयास आदि अन्य कार्य तो शामिल है ही।
संकट में जान, फिर भी नहीं सम्मान
शिक्षकों को डॉक्टर, नर्स, पारा मेडिकल स्टाफ की तरह सबसे संवेदनशील स्थान अस्पताल, कोविड सेंटर्स आदि जगहों पर अपनी जान संकट में डालकर ड्यूटी कर रहे हैं। उन्हें जो सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए, उससे वे महरूम हैं। अभी तक उन्हें राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर पर कोरोना वैरियर्स का दर्जा नहीं मिला है। राज्य के कई शिक्षकों ने बताया कि उन्हें मूलभत सुरक्षा सुविधा मसलन पीपीई किट, गल्बस, सैनिटाइजर आदि तक मुहैया नहीं कराये जा रहे हैं। अगर कोई शिक्षक ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित हो जाता है, तो उनके इलाज के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। सम्भवत: सुरक्षा की अनदेखी का नतीजा है कि भारी संख्या में ड्यूटी पर लगे शिक्षक कोरोना संक्रमित हो रहे हैं।
सैकड़ों शिक्षकों की मौत का दावा
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, समेत कई राज्यों से शिक्षकों की कोरोना से मौत की सूचना सामने आ रही है। अकेले मध्य प्रदेश में बीते दो महीने में 726 शिक्षकों की मौत का दावा किया जा रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में शिक्षकों की ड्यूटी लगी थी। इस दौरान वह कोरोना की चपेट में आ गये। वहाँ के शिक्षक संघ ने 577 शिक्षकों के मौत की सूची सरकार को सौंपी है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 370, बिहार में 28 और अन्य राज्यों में शिक्षकों की मौत की सूचना है। उनके संक्रमित होने के पीछे चुनावी या कोरोना ड्यूटी बतायी जा रही है। वहीं झारखण्ड में शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का दावा है कि दूसरी लहर में राज्य में 250 से अधिक शिक्षकों की मौत हुई है। हर राज्य की तरह झारखण्ड में भी शिक्षक संघ द्वारा विरोध दर्ज कराया जा रहा है। शिक्षकों को करोना वैरियर्स घोषित करने की माँग की जा रही है। कोरोना संक्रमित शिक्षकों के इलाज के लिए विशेष व्यवस्था करने की माँग की गयी है।
शिक्षकों की ड्यूटी का दूरगामी प्रभाव
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े जानकारों का कहना है कि शिक्षकों का मूल काम बच्चों को पढ़ाना है। सरकारी स्कूल के शिक्षकों को धीरे-धीरे इसी काम से दूर किया जा रहा है। कोरोना संकट तो उन्हें और भी शिक्षा कार्य से दूर कर रहा। कोरोना कार्य के लिए किसी अन्य विभाग के कर्मियों की ड्यूटी लगायी जा सकती थी। क्योंकि शिक्षकों की ड्यूटी लगने का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यह बच्चों के भविष्य के लिए सहीक़दम नहीं है। उनका कहना है कि कोरोना संक्रमण के कारण देश के सभी राज्यों में सरकारी या निजी स्कूल लगभग एक साल से बन्द हैं। निजी स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था तो कर ली है, लेकिन सरकारी स्कूल एक साल बाद भी इस मामले में पिछड़ा हुआ है।
अभिभावकों का दर्द
शिक्षा क्षेत्र के जानकारों की बातों से अभिभावक भी सहमत हैं। हालाँकि उनके कहने का अंदाज़ दूसरा है, लेकिन भवार्थ वही निकलता है। सब्ज़ी विक्रेता अरविंद मुंडा कहते हैं कि बच्चा तो एक साल से स्कूल नहीं गया है। बीच में मास्टर साहब स्कूल बुलाते हैं। चावल, दाल और अन्य सामान कभी घर पर भी पहुँचा जाते हैं। मुंडा आगे कहते हैं बच्चे को स्कूल में दिया कि पढ़ लेगा, तो हमारी तरह सब्ज़ी नहीं बेचेगा। पर अभी तो स्कूल ही बन्द है। पढ़ाई तो हो ही नहीं रही। पता नहीं क्या होगा? लगता है इसकी भी क़िस्मत में हमारी तरह सब्ज़ी ही बेचना है। इसी तरह घर-घर काम करने वाली शान्ति बताती हैं कि पिछले साल बेटा को एक सरकारी स्कूल के तीसरी कक्षा में दाख़िल कराया था। उन्होंने कहा बग़ैर पढ़े-लिखे और स्कूल गये ही बेटा चौथी कक्षा में चला गया। अभी भी स्कूल नहीं खुला है। स्कूल में मैडम से मिलीं, तो बोलीं मोबाइल पर पढ़ाएँगे। हमारे पास वैसा मोबाइल (स्मार्ट फोन) तो है ही नहीं, तो क्या पढ़ाएँगे?
शिक्षण कार्य ही पर्याप्त
शिक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले ज़्यादातर बच्चेग़रीब तबक़े से आते हैं। कम ही बच्चों के पास मोबाइल, इंटरनेट आदि की सुविधा होती है। इसलिए इस तालाबंदी के दौरान उनकी पढ़ाई के लिए कठिन परिश्रम की ज़रूरत है। शिक्षकों को कोरोना ड्यूटी की बजाय उनके मूल काम बच्चों को पढ़ाने के लिए दबाव बनाया जाता, तो बेहतर था। शिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य ही पर्याप्त है। यह कोई छोटी ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि देश का भविष्य बुनने की ज़िम्मेदारी है। उनसे रायशुमारी कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रभावीक़दम उठाने के लिए मदद लेनी चाहिए थी। मौज़ूदा कम संसाधन में वह अपने-अपने स्कूल के बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं? इस पर विचार करके ठोसक़दम बढ़ाने की ज़रूरत थी, जिससे भारत की नींव को मज़बूत बनाया जा सके। इसके विपरीत उन्हें हर समय शिक्षण कार्य से दूर करते हुए अन्य कार्य में झोंका जा रहा है। यह भविष्य मेंख़तरनाक साबित होगा।
यह सही है कि शिक्षकों का मूल काम पढ़ाना है। चुनाव और आपदा के अलावा किसी भी अन्य कार्य में शिक्षकों की ड्यूटी नहीं लगानी चाहिए। अमूमन ड्यूटी लगायी भी नहीं जाती है। कोरोना संकट एक आपदा है। इससे निपटने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों के अलावा अन्य क्षेत्र के कर्मियों की ज़रूरत है। केवल शिक्षक ही नहीं विभिन्न विभागों के सरकारी कर्मियों की ड्यूटी लगायी गयी है। इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि सभी शिक्षकों की ड्यूटी नहीं लगायी जाए। जिनकी ड्यूटी नहीं लगी है, वे अपने-अपने स्कूल के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। इसके लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दी गयी है। शिक्षकों को कोरना योद्धा मानकर टीकाकरण में प्राथमिकता के लिए केंद्रीय स्तर पर हुई बैठक में बात रखी गयी है।
राजेश कुमार शर्मा
सचिव, शिक्षा विभाग, झारखण्ड सरकार
राज्य में 2015 में मुख्य सचिव स्तर से एक आदेश पारित हुआ था कि शिक्षकों को शिक्षा से इतर किसी दूसरे कार्य में नहीं लगाया जाएगा। यह एक-दो साल तक हुआ, इसके बाद फिर पहले की तरह शिक्षकों का विभिन्न कार्यों में ड्यूटी लगने लगी। इसका असर बच्चों की पढ़ाई पर होता है। यह ठीक है कि कोरोना संक्रमण आपात स्थिति है। हम शिक्षकों ड्यूटी लगाने का विरोध नहीं हैं; लेकिन कई स्कूल ऐसे हैं, जहाँ के सभी शिक्षकों की ड्यूटी लगा दी गयी है। ड्यूटी के लिए सुरक्षा किट जैसी ज़रूरी ची•ों तक नहीं दी जाती हैं। शिक्षकों के संक्रमित होने पर समुचित इलाज की व्यवस्था नहीं है। उन्हें कोरोना योद्धा नहीं माना गया है। राज्य में अब तक लगभग 250 से अधिक शिक्षकों की मौत हो चुकी है; लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
राम मूर्ति ठाकुर
प्रदेश महासचिव, अखिल झारखण्ड प्राथमिक शिक्षक संघ