हरियाणा स्थानीय निकाय चुनाव

भाजपा-जजपा का परचम, विपक्षी दल हाशिये पर

हरियाणा में 18 नगर परिषद् और 28 नगर पालिका के चुनाव नतीजे भाजपा-जजपा (भाजपा जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी) गठबंधन सरकार को वर्ष 2024 में सत्ता वापसी की बड़ी उम्मीद लग रही है। सरकार के लिए स्थानीय निकाय चुनाव पहली कसौटी थी, जिसमें वह खरी उतरी है। शुरू में भाजपा अपने बूते ही चुनाव लडऩे की इच्छुक थी, जजपा को वह साथ नहीं रखना चाहती थी। गठबंधन को लेकर ग़लत सन्देश न जाए, इस पर मंथन हुआ तो उसे साथ लेना पड़ा। इससे जजपा की साख बची रही, वहीं भाजपा को भी कुछ क्षेत्रों में इसका फ़ायदा मिला।

कांग्रेस ने पार्टी चिह्न पर मैदान में न उतरने का फ़ैसला कर लिया था। इसकी मुख्य वजह यह रही कि एक ही पद के लिए एक से ज़्यादा पार्टी प्रत्याशी ख़म ठोक रहे थे। कुछ स्थानों पर चार से पाँच लोग दावेदारी जता रहे थे। गुटबाज़ी से प्रभावित पार्टी के लिए यह स्थिति ठीक नहीं थी। एक को प्रत्याशी बनाने पर बाक़ी के आज़ाद प्रत्याशी के तौर पर निश्चित ही उतरते। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और अजय माकन की हार से कांग्रेस नेता हताशा में थे। जबकि भाजपा और जजपा के लिए अच्छी शुरुआत रही।

सत्ताधारी दलों के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था और इसके लिए बाक़ायदा पूरी तैयारी भी की जा रही थी। स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदर्शन पर सरकार की प्रतिष्ठा निर्भर कर रही थी। जब कोई पार्टी सीधे तौर पर चुनाव चिह्न पर मैदान में न उतरे, तो समझा जाना चाहिए कि स्थिति ज़्यादा अनुकूल नहीं है। गठबंधन के लिए यह पहला संकेत शुभ रहा। मुक़ाबले में आम आदमी पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल ही रहे। इनमें आम आदमी पार्टी के बारे में अप्रत्याशित नतीजे देखने वालों की संख्या कम नहीं थी। ठीक चंडीगढ़ नगर निगम और पंजाब विधानसभा चुनाव की तरह यहाँ भी वैसा ही प्रदर्शन करने की अटकलें लगायी जा रही थीं। आम आदमी पार्टी ने इसकी तैयारी भी की थी; लेकिन नतीजे आशा के बिलकुल विपरीत आये। इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) ने अपने गढ़ डबवाली में ही साख को बचाये रखा।

जजपा के गठन के बाद इनेलो का जनाधार घट रहा है। एक हलक़े तक सिमट जाने वाली पार्टी को विघानसभा चुनाव में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए नतीजों से सबक़ सीखना होगा। आम आदमी पार्टी को भी हरियाणा में पंजाब की तरह बदलाव आने के सपने से बाहर आना होगा। अच्छी जीत के बाद भाजपा को भरोसा हो गया है कि उसका जनाधार कम नहीं, बल्कि बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जीत को विकास कार्यों का नतीजा और पार्टी का बढ़ता आधार बता रहे हैं। चुनाव में 815 वार्ड सदस्य आज़ाद प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए हैं। इन्हें मत (वोट) सरकार के किये कार्यों की वजह से नहीं, बल्कि अपनी वजह से मिले हैं। एक बहुत बड़ा मत प्रतिशत किसी पार्टी के हिस्से में नहीं आया।

स्थानीय निकाय या पंचायत चुनाव में मतदाता पार्टी विशेष से ज़्यादा व्यक्ति विशेष को महत्त्व देता है। यह वजह रही कि चुनाव में वार्ड सदस्य के चुनाव में आज़ाद प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। इससे परिषद् और पालिका के प्रमुख से गठबंधन दलों को किसी ख़ुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए। भाजपा अपने को संगठनात्मक तौर पर अन्य दलों से अलग मानती है; लेकिन वार्ड सदस्य के चुनाव में उसे भी ज़्यादा सफलता नहीं मिली। उसकी संख्या 60 तक पहुँची, जबकि अन्य दल दहाई के आँकड़े को भी नहीं छू सके।

कांग्रेस इन स्थानीय निकाय चुनाव में सीधे तौर पर नहीं थी, जिसका फ़ायदा गठबंधन प्रत्याशियों को मिला। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीद सबसे ज़्यादा टूटी। चंडीगढ़ नगर निगम और बाद में पंजाब के विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित नतीजों से आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में वैसा ही प्रदर्शन की उम्मीद थी, पर मात्र एक नगर पालिका इस्माइलाबाद हिस्से में आयी। इनेलो भी डबवाली नगर परिषद् पर क़ब्ज़ा जमा सकी। बाज़ी कुल मिलाकर गठबंधन के हाथ में ही रही। इस बार नगर परिषद् और पालिका में अध्यक्ष पदों पर सीधा मुक़ाबला हुआ। इससे पहले पार्षदों या वार्ड सदस्यों में से कोई अध्यक्ष बनता था। पंचायत चुनाव से ग्रामीण मतदाता के रुख़ का, जबकि नगर निगम, परिषद् और पालिका चुनाव से शहरी मतदाता के रुख़ का पता चलता है। चूँकि राज्य में अभी पंचायत चुनाव लम्बित हैं। ग्रामीण मतदाताओं के रुख़ के बारे में अभी से कहना मुश्किल है। लेकिन शहरी मतदाताओं ने अपना रुख़ कुछ स्पष्ट कर दिया है। 18 नगर परिषद्, 28 नगर पालिका (कुल 46) में से गठबंधन ने 25 पर जीत दर्ज की। इसमें भाजपा को 22, जबकि जजपा को तीन, जबकि एक-एक पर आम आदमी पार्टी और इनेलो का क़ब्ज़ा रहा। बाक़ी पर निर्दलीय क़ाबिज़ रहे, जिनमें से ज़्यादातर कांग्रेस समर्थित माने जा रहे हैं।

चूँकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही पार्टी चिह्न पर मैदान में न उतरने का फ़ैसला कर लिया था। राज्यसभा चुनाव में अजय माकन की हार बड़ा झटका था ही, पार्टी में गुटबाज़ी से भी स्थानीय निकाय चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। हो सकता है कि इसीलिए पार्टी ने चुनाव चिह्न का इस्तेमाल नहीं किया हो। उधर भाजपा, जजपा, इनेलो और आम आदमी पार्टी अपने-अपने चिह्नों पर मैदान में थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस तब इतनी कमज़ोर नहीं हुई थी, इसके बावजूद उसने चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखायी। शायद इसी वजह से कांग्रेस के मौज़ूदा 14 विधायकों के हलक़ों में पार्टी समर्थित प्रत्याशी हारे हैं। गठबंधन सरकार आधी से ज़्यादा जीत को अपनी उपलब्धि मान रही है।

यही हाल कमोबेश मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के करनाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के उचाना हलक़ों का रहा, जहाँ मतदाताओं ने विरोधी रुख़ अपनाया। वार्ड सदस्य के तौर पर जीतने वाले 815 निर्दलीय रहे, पार्टी चिह्नों पर जीतकर आने वालों की संख्या तो 100 के आँकड़े तक नहीं पहुँच सकी। दरअसल गठबंधन सरकार का पूरा जोर परिषद् और पालिका के अध्यक्ष पद पर केंद्रित रहा, जिसके लिए भरपूर प्रचार भी किया गया। सरकारी तंत्र का भी ख़ूब इस्तेमाल किया गया। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव में ज़्यादा रुचि नहीं दिखायी। पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपरोक्ष तौर पर इससे कमोबेश दूरी ही बनाये रखी। यही वजह रही कि रोहतक क्षेत्र में पार्टी समर्थित प्रत्याशी सफलता प्राप्त नहीं कर सके। उनके बेटे सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने ज़रूर अपने समर्थक प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया; लेकिन ज़्यादा कारगर साबित नहीं हो सके। महम में भाजपा समर्थित जीता, जबकि बहादुरगढ़, झज्जर और गोहाना में भाजपा-जजपा गठबंधन ने जीत दर्ज की।

विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव बहुत कुछ संकेत कर देते हैं। फ़िलहाल राज्य में विधानसभा चुनाव में अभी काफ़ी समय है। तब तक स्थितियाँ बहुत कुछ बदल चुकी होंगी। ऐसे में भाजपा-जजपा को किसी ख़ुशफ़हमी में और कांग्रेस को निराश होने की ज़रूरत नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हरियाणा में पार्टी की सक्रियता बहुत तेज़ी से बढ़ी थी। यहाँ भी बदलाव की बातें होने लगी थीं। अब इस पार्टी को राज्य में पैर जमाने के लिए नये सिरे से विचार करना होगा।


“स्थानीय निकाय चुनाव में जीत सरकार की उपलब्धि है। लोगों ने गुड गवर्नेस और विकास कार्यों को तरजीह दी। भाजपा-जजपा गठबंधन वर्ष 2024 के विस चुनाव में जीत दर्ज करेगा। कांग्रेस ने तो पार्टी चिह्न पर चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं दिखायी। आम आदमी पार्टी का राज्य में कोई जनाधार नहीं है; यह नतीजों से स्पष्ट हो गया है। आधे से ज़्यादा अध्यक्ष भाजपा और जजपा के चुनाव चिह्न पर जीतकर आये हैं। वार्ड सदस्यों में भी भाजपा समर्थितों की संख्या काफ़ी है। केंद्र सरकार की अग्निपथ पर विरोध-प्रदर्शन का यहाँ कोई असर नहीं रहा। गठबंधन सरकार के पास अग्निवीरों के लिए बहुत-सी योजनाएँ हैं।”
मनोहर लाल खट्टर
मुख्यमंत्री, हरियाणा


“नतीजे भाजपा-जजपा की आशा के विपरीत हैं। 70 फ़ीसदी से ज़्यादा सीटों पर गठबंधन प्रत्याशी जीतते, तो इसे जीत माना जा सकता था। यह आधी-अधूरी जीत है। चुनाव नतीजे से कांग्रेस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। राज्यसभा चुनाव की वजह से पार्टी इसकी तैयारी नहीं कर सकी। जहाँ-जहाँ ज़रूरत हुई पार्टी नेताओं ने प्रचार किया और सफलता हासिल की।”
उदयभान
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, हरियाणा


“पार्टी राज्य में पाँव जमा रही है। स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी को 15 से 20 फ़ीसदी मत (वोट) मिले हैं। स्पष्ट है कि आधार बढ़ रहा है। राज्य में भी पंजाब की तरह सत्ता बदलाव होगा और यह करिश्मा आम आदमी पार्टी ही करेगी। चुनाव में समय ज़्यादा मिलता, तो प्रदर्शन शायद इससे बहुत ज़्यादा बेहतर होता।”
सुशील गुप्ता
सांसद, हरियाणा प्रभारी, आम आदमी पार्टी