ई-टेंडरिंग के ख़िलाफ़ हरियाणा में क़रीब दो माह से जारी सरपंचों का आन्दोलन अब सरकार के गले की फाँस बन गया है। 300 से ज़्यादा लोगों को पुलिस ने हिरासत में लेकर पुलिस लाइंस में रखा। पंचकूला में विरोध प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज और पत्थरबाज़ी में दो दर्ज़न पुलिसकर्मी और एक दर्ज़न से ज़्यादा प्रदर्शनकारी घायल हो चुके हैं। ऐसी नौबत के लिए सरकार ज़िम्मेदार है। आन्दोलनकारी ई-टेंडरिंग के मुद्दे पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मिलकर अपना पक्ष रखना चाहते थे; पर बातचीत के लिए वह ख़ुद नहीं, बल्कि अपने अधिकारी भेज रहे थे। अगर मंत्री
ई-टेंडरिंग के ख़िलाफ़ हरियाणा में क़रीब दो माह से जारी सरपंचों या अधिकारी ही मुद्दे पर फ़ैसले के लिए अधिकृत होते, तो आन्दोलन कभी का ख़त्म हो गया होता।
लगभग दो माह से गाँव, ब्लॉक और ज़िला मुख्यालयों से शुरू हुआ आन्दोलन अब राज्य स्तरीय बन चुका है। गनीमत यह रही कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने धरनास्थल ख़ाली करने का आदेश दे दिया, जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई कर मोर्चा हटा दिया; लेकिन आन्दोलनकारियों ने अगला पड़ाव मुख्यमंत्री के हलक़े करनाल में डाल दिया है।
आन्दोलन को कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का पूरा समर्थन रहा है। लिहाज़ा मुद्दा अब राजनीतिक भी बन गया है। सरपंचों का यह आन्दोलन माँग पूरी न होने तक बेमियादी है। क़रीब दो माह के इस आन्दोलन में अब तक राज्य सरकार के लिए बातचीत का कोई प्रस्ताव तक नहीं है, जबकि सरपंच एसोसिएशन इस पर बातचीत के लिए तैयार है। अगर सरकार के पास नये संशोधन के पक्ष में तर्क है, तो वह बातचीत में सरपंच एसोएिशन की सहमति बना सकती है। लेकिन अगर नहीं तो माँग मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राज्य सरकार इस आन्दोलन को लेकर ज़रा भी गम्भीर नहीं है। आन्दोलन की शुरुआत में राज्य के पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली इसे चले हुए कारतूसों का आन्दोलन बताकर उकसाने जैसा काम कर रहे हैं, जिसे वे इक्का दुक्का पूर्व सरपंचों का आन्दोलन बता रहे थे, वह अब कमोबेश राज्य स्तरीय हो गया है।
मंत्री बबली राइट टू रिकाल से अपरोक्ष तौर पर धमका भी रहे हैं। इसके तहत जो सरपंच अपनी पंचायतों में इस मुद्दे पर गाँव में विकास नहीं करा रहे, उनकी जगह बहुसंख्यक पंचों को अधिकृत कर काम कराया जाएगा। बबली अपनी ही पार्टी के विधायक पर सरपंच आन्दोलन को हवा देने का आरोप लगाते हैं। अब समझौता बातचीत से ही सम्भव है, जिसके प्रति सरकार अभी तक ज़्यादा गम्भीर नहीं दिख रही, जबकि हरियाणा सरपंच एसोसिएशन बिना शर्त तैयार है।
राज्य में 6,000 से ज़्यादा पंचायतें हैं, जिनमें से ज़्यादातर आन्दोलन के समर्थन में हैं। सरकार चाहे इसे पंचायतों को भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी और जवाहदेही की बातें कह ई-टेंडरिंग को सही क़दम बता रही हो; लेकिन कोई सरपंच नहीं चाहता कि पंचायतों के अधिकार कम हों। वे भी तो जनप्रतिनिधि हैं, उनकी भी जवाबदेही है। अगर उनके अधिकारों में कमी आएगी, तो वे आवाज़ तो बुलंद करेंगे ही। यह संशोधन मार्च, 2022 में हुआ और नवंबर, 2022 के दौरान राज्य में सरपंचों के चुनाव भी हो गये। इस साल की शुरुआत से ही छिटपुट तौर पर यह मुद्दा उठने लगा था। रोहतक, भिवानी, फ़तेहाबाद, हांसी और अन्य स्थानों पर खंड विकास पंचायत कार्यालयों पर ताले लगाकर विरोध शुरू हो गया था। पंचायतों में विकास कार्य बाधित होने लगे हैं।
हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के अध्यक्ष रणबीर सिंह समैण कहते हैं, जो व्यवस्था अब तक चली आ रही है, उसमें कोई बदलाव की कोई ज़रूरत नहीं है। पहले दो लाख रुपये के पंचायत में होने वाले विकास कार्य सरपंच और पंच अपने तौर पर कराते रहे हैं; लेकिन संशोधन के बाद अब इसके लिए सरकारी पोर्टल पर ई-टेंडरिंग करनी होगी। जब तक सरकार दो लाख रुपये से ज़्यादा के काम को ई-टेंडरिंग के ज़रिये ही कराने का फ़ैसला वापस नहीं लेती, आन्दोलन जारी रहेगा। यह क़दम पंचायती राज व्यवस्था को कमज़ोर करने वाला है और हम लोग ऐसा किसी भी हालत में नहीं होने देंगे।
हरियाणा में सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस के दावा करती है; लेकिन ऐसा है नहीं। विधानसभा में जब कोई विधायक उपमुख्यमंत्री पर ही ज़मीन ख़रीद पर गड़बड़ी के आरोप लगाये और उसको चुनौती न दी जाए, तो समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। राज्य में भ्रष्टाचार हर स्तर पर है; लेकिन सार्वजनिक मंचों या आँकड़ों के माध्यम से इस पर काफ़ी हद तक अंकुश लगाने के दावे किये जाते रहे हैं।
पंचायतें भी इसका अपवाद नहीं है, विकास कार्यों के लिए पंचायतों को बड़ी राशि मंज़ूर होती है। इसका कितना सदुपयोग होता है, यह गड़बड़ी के दर्ज मामलों से पता लगाया जा सकता है। तो क्या माना जाए कि संशोधन पंचायतों में भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगाने के लिए किया गया है। सरपंच इसे अपनी ईमानदारी पर सीधा हमला मानते हैं। वह कहते हैं कि नये क़दम से भ्रष्टाचार पैदा होगा, नये बिचौलिये आएँगे जिससे कमीशनख़ोरी को बढ़ावा मिलेगा। जब दो लाख रुपये से ज़्यादा काम ई-टेंडरिंग के ज़रिये होंगे, तो पंचायत और उनके प्रतिनिधियों की क्या भूमिका रह जाएगी। अधिकारियों का बेवजह हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिससे पंचायती व्यवस्था की बुनियाद में ही सेंध लगेगी। सरपंचों की राय में पंचायत स्तर पर दो लाख रुपये के काम बहुत कम होते हैं, ज़्यादातर काम इससे बडी राशि के होते हैं, जो अब वह पहले की तरह नहीं कर सकेंगे। गाँव में किसी भी तरह के विकास कार्य की ज़िम्मेदारी पंचायत की होती है और इस लिहाज़ से वह इसके लिए जवाबदेह भी होता है पर नये क़दम से उसकी जवाबदेही एक तरह से ख़त्म करने का प्रयास किया जा रहा है।
पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली इसे हरियाणा को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की दिशा में उचित क़दम मानते हैं। दो लाख रुपये से ज़्यादा के विकास कार्य अगर सरकारी पोर्टल पर ई-टेंडरिंग के ज़रिये होने लगेंगे, तो पंचायतों को इसमें क्या नुक़सान है। सब काम सरकार की नज़र में रहेगा, इससे पंचायती राज व्यवस्था को किसी तरह का कोई नुक़सान नहीं होगा। देवेंद्र बबली जननायक जनता पार्टी (जजपा) कोटे से मंत्री हैं, वे बिना अच्छे बुरे नतीजे के बेधडक़ बोल जाते हैं। सार्वजनिक मंच पर एक सरपंच के ख़िलाफ़ उनके गम्भीर आरोपों की ख़ूब आलोचना हुई।
जजपा अध्यक्ष अजय चौटाला ने भी उनके बयान को एक ही लाठी से सभी हाँकने वाला बताया; लेकिन बबली को शायद यह रास नहीं आया। वह अपरोक्ष तौर पर कह गये कि जिनका काम संगठन चलाना है, वे उसे चलाएँ, मंत्री और उन्हें क्या करना है, वे जानते हैं। सरपंच नरेंद्र कहते हैं कि मंत्री देवेंद्र बबली उनकी पंचायत के साथ भेदभाव कर रहे हैं। पंचायत में कोई बड़ा काम नहीं हुआ, बावजूद इसके उन पर तरह तरह के आरोप लगा रहे हैं। कुछ समय के लिए ई-टेंडरिंग फ़ैसले को रद्द करने साथ बबली को मंत्रिपद से बर्ख़ास्त करने की माँग भी उठी थी।
प्रदेश भर में जगह-जगह हो रहे आन्दोलन की वजह से राज्य सरकार पसोपेश में है। तीन कृषि क़ानूनों की तरह वह इसे तुरन्त प्रभाव से वापस लेने के फ़िलहाल तो मूड में नहीं है। बातचीत में किसी समिति के गठित करने और उसकी रिपोर्ट पर कार्रवाई का भरोसा देकर इसे कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। सरकार की ओर से अभी तक इसे किसी भी सूरत में वापस न लेने जैसी कोई बात सामने नहीं आयी है, इससे यह उम्मीद लगती है कि बातचीत में कुछ ठोस ज़रूर निकल सकता है। एक-एक क़दम सरकार और सरपंच एसोसिएशन उठा सकते हैं। अभी तक सभी विकल्प खुले हैं।
दिल्ली के किसान आन्दोलन में भाकियू (चढ़ूनी) के गुरनाम सिंह ने आन्दोलन को अपरोक्ष तौर पर समर्थन दिया है। जब तक बातचीत नहीं होती, आन्दोलन का विस्तार होता जाएगा; जिसका राजनीतिक तौर पर भाजपा-जजपा को नुक़सान होगा। इसे दोनों दल अच्छी तरह समझते भी हैं। कांग्रेस तो चाहेगी कि आन्दोलन लम्बा चले और सरकार की किरकिरी हो, जिसका कुछ लाभ उसे ज़रूर मिलेगा। कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने हरियाणा के राज्यपाल को इस पूरे मामले से अवगत करा कोई रास्ता निकलाने को कहा है। आन्दोलन को कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और इनेलो के अलावा कुछ ख़ास पंचायतों का भी समर्थन भी है।
“लोकतंत्र में अपनी माँग के लिए आवाज़ उठाने का हक़ हर नागरिक को है। सरकार को सरपंचों की बात सुननी चाहिए। पंचायती राज व्यवस्था को और ज़्यादा मज़बूत करने की ज़रूरत है; लेकिन भाजपा-जजपा सरकार इसके प्रति ज़रा भी गम्भीर नहीं है। दो माह से आन्दोलन चल रहा है; लेकिन सरकार समझ रही है कि यह ऐसे ही ख़त्म हो जाएगा। सरकार को बातचीत का न्योता देकर बुलाना चाहिए, वरना स्थिति और भी विकट हो सकती है।’’
भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा
“भाजपा-जजपा सरकार ने भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने की दिशा में अन्य क़दमों की तरह दो लाख रुपये से ज़्यादा के पंचायती विकास कार्यों के लिए ई-टेडरिंग व्यवस्था बनायी है। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही रहेगी, वहीं काम भी पहले के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से होंगे।’’
देवेंद्र बबली, विकास और पंचायत मंत्री, हरियाणा