हरियाणा में लॉकडाउन के दौरान बन्द शराब के ठेकों के बावजूद अन्दरखाते यह खूब बिकी। यह काम अधिकृत ठेकेदार अंजाम दे रहे थे या फिर कोई माफिया, यह सरकार की जानकारी में नहीं था। अगर होता तो गोदाम की दीवार में सेंधमारी से पता चल जाता। चोरी के बाद दीवार को फिर से पहले जैसा कर दिया गया। बाहर सील लगी है अन्दर से माल गायब हो रहा है। कुछ पुलिसकर्मियों के अलावा किसी को भनक तक नहीं है।
सरकार और उसका पूरा अमला कोविड-19 अभियान मेें जुटा था। शराब दोगुने या इससे कुछ ज़्यादा के दाम पर आसानी से उपलब्ध थी। माफिया का नेटवर्क इतना मज़बूत की सीआईडी विभाग को इसकी भनक नहीं थी। अगर इस दौरान राज्य के सोनीपत ज़िले के खरखौदा के सीलबन्द गोदाम से चोरी का मामला उजागर न होता, तो करोड़ों के वारे-न्यारे हो गये होते।
भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली मनोहर लाल खट्टर सरकार की छवि पर बट्टा लगा। माफिया ने पुलिस की मदद से हज़ारों बोतलें सीलबन्द गोदाम से पार की और उन्हें महँगे दामों पर खपा दिया। लाकडाउन के दौरान राज्य में शराब के ठेके पूरी तरह से बन्द थे; लेकिन उसकी माँग तो बराबर बनी हुई थी। कहें तो माँग पहले के मुकाबले ज़्यादा हो चली थी, पर यह मिले कैसे।
जब शासन-प्रशासन कोरोना से बचाव में लगा था, तो शराब माफिया ने इसका पक्का जुगाड़ कर लिया था। सोनीपत ज़िले के खरखौदा में भी अनधिकृत रूप से ज़ब्त की गयी शराब को जमा करने के लिए अस्थायी गोदाम था। वैसे तो यह गोदाम सीलबंद था। इसकी ज़िम्मेदारी करीबी थाने खरखौदा की ही थी। मामला उजागर हुआ, तो संदेह की सुई पुलिसकर्मियों पर गयी। बिना खाकी के हज़ारों बोतलें सीलबंद गोदाम से चोरी होना इतना आसान नहीं था। लगभग छ: हज़ार पेटियों वाहनों में ले जाया गया होगा। ये वाहन लॉकडाउन के दौरान नाकों से कैसे निकल गये।
बड़े पैमाने पर शराब चोरी के इस मामले को गृहमंत्री अनिल विज ने गम्भीरता से लिया। आदेश के बाद शुरुआती जाँच और प्रथम दृष्टया में पुलिस की मिलीभगत सामने आ गयी। थानाधिकारी जसबीर सिंह समेत छ: पुलिसकर्मियों की भूमिका संदिग्ध मिली। सभी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी। थानाधिकारी जसबीर सिंह को पहले निलंबित और बाद में स्पष्ट भूमिका पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। जल्द ही शराब माफिया के तौर पर भूपेंद्र सिंह का नाम उभरा।
यह अस्थायी गोदाम उसकी माँ के नाम पर था। अवैध तौर पर ज़ब्त शराब के लिए क्या किसी शराब तस्कर का गोदाम लिया जाना चाहिए था, जिस पर इससे जुड़े दर्ज़न से ज़्यादा मामले लम्बित हैं। पुलिस ने भूपेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया, उसके घर से 97 लाख रुपये की नकदी के अलव दो पिस्तौल और तीन मोबाइल बरामद हुए। पूछताछ में जो खुलासे भूपेंद्र सिंह ने किये वे चौंकाने वाले थे। उसने यह काम थानेदार तत्कालीन थानेदार जसबीर सिंह की देखरेख में किया। इसमें अन्य पुलिसकर्मी भी शामिल रहे। सभी की बड़ी हिस्सेदारी थी। इसका पूरा हिसाब-किताब होता उससे पहले भाँडा फूट गया।
आबकारी और पुलिस विभाग की ज़ब्त शराब की चोरी और उसको खपा करोड़ों रुपये कमाने के खेल में क्या भूपेंद्र सिंह और कुछ पुलिसकर्मी ही शामिल थे? यह संभव नहीं लगता, इसमें कुछ सफेदपोश लोगों की भूमिका से इनकार नहीं। सरकार ने विशेष जाँच समिति गठित कर दी है। अतिरिक्त मुख्य सचिव टीसी गुप्ता की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति (एसईटी) में सहायक पुलिस महानिदेशक सुभाष यादव और आबकारी विभाग के अतिरिक्त उपायुक्त विजय सिंह हैं।
समिति ने जाँच शुरू कर दी है। यह जाँच शराब चोरी के अलावा अन्य कई बिन्दुओं की भी होगी। क्या ज़ब्त किया पूरा स्टाक गोदाम में पहुँचा। गड़बड़ी का खेल कहाँ भी होता है। हर स्तर पर गड़बड़ी का खुला खेल चलता है। अवैध शराब की बिक्री को रोकने के लिए आबकारी और कराधान विभाग और पुलिस व्यापक स्तर पर अभियान चलाती है, ताकि सरकारी राजस्व को नुकसान न हो। ऐसी ज़ब्त शराब को अदालती मामलों के निपटान के बाद नष्ट करने का प्रावधान है। इसमें कई तरह की कानूनी बाधाएं आती है लिहाजा कई बार नष्ट करने की प्रक्रिया लम्बी हो जाती है। खरखौदा के इस गोदाम की भी यही कहानी है।
कहाँ करीब-करीब एक साल का ज़ब्त स्टाक केस प्रापर्टी के तौर पर रखा हुआ था। पुलिस की मदद से माफिया ने शराब को महँगे दामों पर बेच डाला। सोनीपत के साथ लगते जिला पानीपत में भी कमोबेश ऐसा मामला उजागर हो गया। कहाँ भी लॉकडाउन के दौरान करीब 4500 शराब पेटी चोरी हो गयी। ठेकेदार का यह गोदाम किसी मामले के चलते सरकार ने सील कर रखा था। कहाँ भी संयोग यह रहा कि जिस ईश्वर सिंह के नाम गोदाम था, वही मुख्य आरोपी निकला। मामला दर्ज हुआ तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ में ईश्वर ने हिस्सेदार सतविंदर राणा का नाम लिया, तो राजनीतिक गलियारों में कुछ हलचल मच गयी। राणा कैथल के राजौद हलके से दो बार विधायक रह चुके हैं। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने कलायत से जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की टिकट पर लड़ा था लेकिन हार गए। चूँकि जेजेपी सरकार में शामिल है और इसके नेता दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री हैं फिर आबकारी विभाग भी उनके पास है। ऐसे में सरकार पर उँगली उठी, तो गृहमंत्री अनिल विज को स्पष्ट कहना पड़ा कि जाँच में दोषी पाये जाने पर कड़ी कार्रवाई निश्चित तौर पर होगी चाहे वह शख्स कोई भी क्यों न हो? उनका बयान बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है।
विशेष जाँच समिति को 31 मई तक अपना काम पूरा कर रिपोर्ट देने के आदेश हैं। अगर जाँच के दौरान सभी तथ्यों का पता लगाया गया, तो निश्चित तौर पर पुलिसकर्मियों और शराब तस्कर के अलावा कुछ बड़े नाम सामने आ सकते हैं। बिना संरक्षण के इतना बड़े घोटाले को अंजाम देना सम्भव नहीं लगता। यह बरदहस्त किसका होगा, इसका खुलासा जाँच रिपोर्ट में सामने आएगा। गुप्ता आधारित जाँच समिति बिना किसी दबाव के पूरे मामले की पड़ताल करने में सफल होगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। वरना अन्य कई घोटालों की तरह इसकी भी लीपापोती हो जाएगी।
मामला सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। सरकार के आदर्श वाक्य में ज़ीरो टालरेंस अंकित है। गृह विभाग अनिल विज के पास है। वे कड़े आदेशों के लिए जाने जाते हैं। सामान्य दिनों में वह थानों का औचक निरीक्षक कर कोने में रखी किसी आलमारी के कागज भी खंगाल लेते हैं। ज़रा कहीं कोताही मिली तुरन्त निलंबन या लाइन हाज़िर जैसे आदेश देते हैं। बावजूद इसके उनके ही विभाग के लोगों की भागीदारी शराब घोटाले में सामने आयी है। जाँच में आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज हुए, गिरफ्तारियाँ हुईं, कहीं निलंबन तो कहीं बर्खास्ती हुई। उन्होंने जता दिया कि वे मामले को कितनी गम्भीरता से लेते हैं। देखना यह होगा कि शराब घोटाले को किसके संरक्षण में दिया होगा।
छोटे किसान से करोड़पति
शराब घोटाले को फील्ड में अंजाम देने वाला भूपेंद्र सिंह करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है। यह सब उसने कहाँ से अर्जित किया? उस पर एक दर्ज़न के करीब शराब तस्करी के मामले लम्बित हैं। उसके तार पंजाब से लेकर बिहार तक जुड़े हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और गुजरात में उसका नेटवर्क है। सस्ती शराब के बोतलों के लेबल बदलकर उन्हें महँगे दाम पर बेचने का धन्धा भी उसे बखूबी आता है। कहने को उसका कई तरह का कारोबार है, लेकिन शराब तस्करी उसका अब भी मुख्य धन्धा माना जा सकता है। खरखौदा गोदाम से गायब की गयी शराब को उसने कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों को बेचा यह जाँच से पता चलेगा। लॉकडाउन के दौरान शराब की सहज उपलब्धता के लिए भूपेंद्र सिंह सरीखे अन्य लोग भी हैं। लाखों बोतलों को उसने अकेले या कुछ लोगों ने नहीं बेचा होगा। राज्य के कई ज़िलों में उसका नेटवर्क है। इस सारे नेटवर्क का पर्दाफाश करना होगा, वरना यह गोरखधन्धा इसी तरह चलता रहेगा।
फिर क्या हुआ
पूर्व विधायक और जजपा नेता सतविंदर राणा की गिरफ्तारी के बाद पार्टी स्तर पर कार्रवाई पर उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि वह आरोपी हैं। दोष साबित होगा, तो कार्रवाई की जाएगी। राजनीतिक गलियारों में कहा जाने लगा कि ऐसे बयान से न केवल उनकी, बल्कि पार्टी की छवि ही बिगड़ेगी। लाकडाउन में दिल्ली और पंजाब की तर्ज पर हरियाणा में शराब ठेके खोलने की माँग भी उठी। आबकारी विभाग विभाग दुष्यंत चौटाला के पास है। ऐसे में उनके बयान को अलग अंदाज़ में लिया गया। एक मायने में तो उनकी माँग वाजिब ही थी। अगर समय रहते ठेके खोलने की मंज़ूरी मिल जाती, तो अवैध शराब की बिक्री पर रोक लगती। खरखौदा और समालखा शायद चर्चा में न आते। उनके बयान को दोनों ही अर्थों में देखा जा सकता है।