मेवात, गुडग़ाँव, हांसी में हिंसा के बाद पलवल, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, झज्जर में भी तनाव
हरियाणा का नूंह (मेवात) साम्प्रदायिक दंगा शासन-प्रशासन की घोर नाकामी की वजह से हुआ। दंगे के बाद पुलिस का क़रीब छ: घंटे के बाद पहुँचना और उसके बाद भी हिंसा का जारी रहना सवाल खड़े करता है। आरोप है कि दंगाई लूटपाट और आगजनी करते रहे और हिन्दू समुदाय को निशाना बनाते रहे और पुलिस असहाय की तरह सब कुछ देखती रही। कुछ मुसलमानों ने भी उनके लोगों पर इसी तरह हिंसा होने का आरोप लगाया है। दर्ज़नों की संख्या में पुलिसकर्मी थे और सैकड़ों की संख्या में दंगाई थे।
हालत बिगड़े, तो पुलिसकर्मी भी भागते नज़र आये। यात्रा की सुरक्षा में लगे दो होमगार्ड जवानों की हत्या कर दी गयी, जबकि क़रीब एक दर्ज़न पुलिसकर्मी घायल हुए। जब लोगों को सुरक्षा देने वालों के जान के लाले पड़े हुए थे, तो आमजन की दंगों में क्या बिसात थी?
नूंह के बाद गुडग़ाँव में भी हिंसा भडक़ी। कई जगहों पर उपद्रव, हंगामा, तोडफ़ोड़ और आगजनी की ख़बरें सामने आयीं। गुडग़ाँव के खांडसा गाँव में एक धर्मस्थल दोपहर में आग लगा दी गयी। गुडग़ाँव के सेक्टर-37 स्थित एक पुलिस स्टेशन में अज्ञात व्यक्तियों के ख़िलाफ़ धारा-34, धारा-153(ए) धारा-188, धारा-436 के तहत एफआईआर दर्ज की गयी है। इस घटना के बाद गुडग़ाँव में धारा-144 लागू कर दी गयी। गुडग़ाँव के अलावा पलवल में भी दंगे हुए। उपद्रवियों ने मस्जिद में पत्थरबाज़ी की। एक स्कूटी में आग लगा दी। अन्य गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की। शहर थाना पुलिस ने यहाँ भी 30-35 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज की।
इसी तरह हांसी में भी हिंसा का माहौल बना। वहाँ कुछ हिन्दुओं पर भीड़ में निकलकर लोग कहते दिखे कि किसी मुसलमान को नौकरी पर रखा है, तो दो दिन में निकाल दें। ऐसा न करने वाले दुकानदारों का बहिष्कार किया जाएगा। इसके अलावा 8 अगस्त को रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और झज्जर की 50 से ज़्यादा ग्राम पंचायतों ने गाँव में मुस्लिम व्यापारियों के आने पर रोक लगा दी।
नूंह में दंगे के बाद राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और गृहमंत्री अनिल विज ने इसे सोची-समझी साज़िश बताया। दंगे अचानक कम और सोची-समझी साज़िश के तहत ही होते हैं। किसी गड़बड़ी की आशंका के मद्देनज़र ख़ुफ़िया जानकारी और पुख़्ता प्रबंध करने की ज़िम्मेदारी किसकी होती है? सरकार यानी शासन और उसके बाद क़ानून व्यवस्था का ज़िम्मा पुलिस-प्रशासन का होता है। सरकार के पास हालात ख़राब होने की रत्तीभर भी जानकारी नहीं, तो फिर पुलिस-प्रशासन ने रुटीन के हिसाब से ही काम किया। नतीजतन व्यापक स्तर पर दंगा हुआ और हज़ारों लोगों की जान पर बन आयी। अपनी जान पर खेलकर हिन्दू समुदाय के लोगों ने दंगाइयों को शहर के अंदर आने से रोका वरना बहुत बड़े स्तर पर लोगों की मौत, आगजनी और लूटपाट का नंगा नाच हो सकता था। घोर लापरवाही की वजह से छ: लोगों की मौत, साइबर थाने में तोडफ़ोड़, आगजनी, दर्ज़नों वाहनों में आग, करोड़ों की क्षति, लूटपाट और सबसे अहम मेवात का साम्प्रदायिक सौहार्द पूरी तरह से बिगड़ गया। मेवात क्षेत्र में 90 प्रतिशत मुस्लिम और 10 प्रतिशत हिन्दू हैं। बाबरी ढाँचे को गिराने के बाद देश के अन्य हिस्सों की तरह मेवात क्षेत्र में भी हिंसा हुई थी। एक विशेष वर्ग को निशाना बनाया गया था।
यह क्षेत्र संवेदनशील है; लेकिन सुरक्षा का कोई विशेष प्रबंध नहीं है। हरियाणा के सबसे पिछड़े इस इलाक़े में गौरक्षकों और गौकशी (गाय तस्करी और वध) करने वालों के बीच तनातनी चली आ रही है। कुछ माह पहले राज्य के भिवानी ज़िले में नासिर और जुनैद नामक दो युवकों को वाहन में ज़िन्दा जला दिया गया था। जघन्य हत्या का आरोप गौरक्षकों पर लगा। राजस्थान पुलिस ने मामला दर्ज कर कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया है।
आरोपियों में बजरंग दल से जुड़े गौरक्षक मोहित यादव उर्फ़ मोनू मानेसर का नाम भी है; लेकिन वह अभी गिरफ़्त से बाहर है और लोगों में जबरदस्त रोष है। मेव समुदाय का आरोप है कि हत्याकांड का मास्टरमाइंड मोनू मानेसर ही है। भरतपुर (राजस्थान) के नासिर और जुनैद मेव समुदाय के ही थे। जलाभिषेक यात्रा से पहले मोनू मानेसर ने वीडियो जारी कर लोगों को इसमें शामिल होने का आह्वान भी किया था। इसके अलावा बिट्टू बजरंगी ने आपत्तिजनक संदेश भेजकर आग में घी का काम किया। यात्रा में दोनों के शामिल होने को लेकर मेवात क्षेत्र में भारी रोष था।
यह अलग बात है कि मोनू को यात्रा में एहतियात के तौर पर बुलाया नहीं गया। इसके बावजूद यात्रा पर हमला हो गया? नूंह में विश्व हिन्दू परिषद् और दुर्गा वाहिनी जलाभिषेक 84 कोस यात्रा के दौरान ऐसा क्या हुआ कि साम्प्रदयिक दंगा हो गया? यात्रा तो तीन साल से बराबर होती आ रही थी। कुछ दिन पहले कांवड़ यात्रा भी यहाँ से निकली; लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। अब ऐसा क्या हुआ कि व्यापक स्तर पर दंगा हो गया। पक्का है कि दंगों की पूरी तैयारी थी।
सोशल मीडिया के माध्यम से मेवात के अलावा दूसरे ज़िलों और राज्यों से लोगों को बुलाया गया। हथियारों के अलावा पेट्रोल बम, तलवारे और पत्थर आदि जमा कर लिए गये। सभी को अलग-अलग ज़िम्मेदारी दे दी गयी। सवाल यह कि सोशल मीडिया पर इतने बड़े कुचक्र का किसी को पता क्यों नहीं चला? सीआईडी इंस्पेक्टर विश्वजीत एक वीडियो में कह रहे हैं कि गड़बड़ी की आशंका थी, इसकी जानकारी ऊपर पहुँचा दी गयी।
सवाल यह कि आख़िर वह सूचना नूंह पुलिस तक क्यों नहीं पहुँची। राज्य के गृह मंत्रालय को कोई सूचना नहीं मिली। राज्य का सीआईडी विभाग गृहमंत्री अनिल विज के बजाय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के तहत है। तो क्या सूचना राज्य के सीआईडी प्रमुख आलोक कुमार के माध्यम से मुख्यमंत्री दफ़्तर पहुँची? इस बारे में कोई स्पष्टीकरण अब तक नहीं आया है। अगर सूचना थी, तो क्या मुख्यमंत्री दफ़्तर से कहीं चूक हुई? सम्भव है ख़ुफ़िया जानकारी को हल्के में लिया गया।
नूंह के थानाधिकारी किशन कुमार के मुताबिक, उनके पास गड़बड़ी की किसी आशंका की कोई सूचना नहीं थी। अगर होती, तो अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया जाता, यात्रा को स्थगित किया जा सकता था। अप्रिय घटना को टालने के लिए कुछ भी किया जा सकता था। हमारे पास जितने पुलिसकर्मी थे, सब यात्रा के रास्ते में तैनात थे; लेकिन भीड़ के मुक़ाबले वे काफ़ी कम रह गये और इतनी बड़ी घटना हो गयी। नूंह में नल्हड़ के नलहेश्वर मंदिर से चली यात्रा के दौरान ही आयोजकों को कुछ अप्रिय होने की आशंका हो गयी थी। जिस तेज़ी के साथ यात्रा चली कुछ ही दूरी पर पत्थरबाज़ी शुरू हो गयी और फिर आगजनी। यात्रा में शामिल सैकड़ों श्रद्धालु किसी तरह जान बचाकर उसी मंदिर में शरण लेने पर मजबूर हुए। ऊपर पहाड़ी से मंदिर परिसर में गोलीबारी भी हुई। अतिरिक्त सुरक्षा बलों की मदद से सैकड़ों, महिलाओं, बच्चो, युवकों और वरिष्ठ नागरिकों को बचाया जा सका।
विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री सुरेंद्र जैन के मुताबिक, दंगाइयों की बड़े नरसंहार की साज़िश थी। अगर मंदिर परिसर में नहीं पहुँचते, तो मेवात में वह हो जाता, जिसकी कल्पना करना मुश्किल था। पहाड़ी से मंदिर परिसर में सैकड़ों फायर किये गये। घेरकर कर मारने की साज़िश किसी तरह नाकाम हो गयी; लेकिन इतनी बडी गड़बड़ी की सरकार को भनक तक नहीं हुई, यह हैरानी की बात है। फ़िरोजपुर झिरका के कांग्रेसी विधायक मम्मन ख़ान का विधानसभा में दिया बयान भी लोगों को उकसाने वाला था। वह मंत्री को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि मोनू मानेसर ने हमारे तीन लोगों की जान ले ली है, उसने मेवात में आतंक मचा रखा है। इस बार अगर वह मेवात आया, तो उसे प्याज की तरह फोड़ देंगे। मम्मन ख़ान की कोई सीधी भूमिका अब तक सामने नही आयी है; लेकिन उन्होने दंगों के बाद मेवात के लोगों के साथ खड़े होने की बात ज़रूर कही है।
दंगों के बाद कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल को नूंह में जाने से रोक दिया गया, वहीं भाजपा के नेता वहाँ आराम से जा रहे हैं। दंगों पर राजनीति शुरू हो गयी है। मेवात क्षेत्र में नूंह से आफ़ताब अहमद, फ़िरोजपुर झिरका से मम्मन ख़ान और पुन्हाना से मोहम्मद इलियास कांग्रेस विधायक हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अनुसार, मेवात में दंगे के लिए राज्य सरकार पूरी तरह से ज़िम्मेदार है। दंगे के दूरगामी प्रिणाम होंगे और इसे भाजपा-जजपा सरकार को भुगतना होगा।
दंगों के बाद लोगों में सरकार के प्रति भारी रोष था। ऐसे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बजाय उनको सुरक्षा देने की गारंटी की अपेक्षा यह कहते हैं कि सरकार हर व्यक्ति को सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती। पुलिस की संख्या सीमित है। ऐसे में पुलिस हर व्यक्ति को कैसे सुरक्षा देगी? मुख्यमंत्री को अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान पर विचार करना चाहिए, जिसमें वह कहते हैं कि प्रदेश के 22 करोड़ लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनकी और सरकार की है।
सैकड़ों आरोपी गिरफ़्तार
पुलिस ने अब तक 142 प्राथमिकी दर्ज कर 312 लोगों को गिरफ़्तार किया है। इनमें नूंह के 57 मामलों में 170, गुडग़ाँव में 32 मामलों में 92 और पलवल में 20 मामलों में पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया है। दंगे में शामिल काफ़ी लोग अपने ठिकानों से $गायब हैं। हरियाणा के अलावा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के दंगों में शामिल होने का संदेह है। अभी बहुत सी गिरफ़्तारियाँ होनी हैं। गिरफ़्तार दंगा आरोपियों में ज़्यादातर 17 से 22 वर्ष के बीच के हैं। दंगों में नाबालि$गों की भूमिका भी रही है।
पुलिस अधीक्षक नरेंद्र बिजराणिया ने लोगों से आरोपियों को तुरन्त जाँच में शामिल होने को कहा है, अन्यथा उनके पास पूरे सबूत हैं। पुलिस दंगाइयों पर कड़ी कार्रवाई करेगी, चाहे वह किसी भी समुदाय का क्यों न हो। बिजराणिया नूंह में रहे हैं; लिहाज़ा लोगों को उनके काम करने के तरीक़े के बारे में अच्छी तरह पता है। दंगे में धार्मिक शख्स मोहम्मद शाद की भी हत्या हुई है। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया है। हिन्दू समुदाय के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। बावजूद इसके पुलिस कार्रवाई करने से गुरेज़ नहीं कर रही है।
बिगड़ रहा भाईचारा
मेवात में साम्प्रदायिक सौहार्द बहुत ज़्यादा अच्छा नहीं है। दंगे ने आपसी भाईचारा बिगाडक़र रख दिया है। राज्य के तीन ज़िलों रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और झज्जर की 50 से ज़्यादा पंचायतों ने मुस्लिमों का पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया है। महापंचायत में लोगों से मुस्लिमों को दुकान या मकान आदि न देने, उनकी दुकान से कोई सामान न ख़रीदने और उनकी पहचान आदि पुलिस थाने में जमा कराने का प्रस्ताव पारित किया है। इससे स्थिति ख़राब होती जा रही है। हिन्दू बहुल क्षेत्रों में मुस्लिमों का कारोबार पूरी तरह से बन्द हो गया है। वे डर के मारे अपनी दुकानें नहीं खोल पा रहे हैं। उन्हें क्रिया की प्रतिक्रिया होने का डर भी सता रहा है। प्रशासन ने पंचायतों के इस क़दम को ग़लत बताते हुए ठोस क़दम उठाने की बात कही है। नूंह में दंगे के बाद हिन्दू समुदाय के लोगों का भरोसा सरकार से उठ गया है। वे अपनी सुरक्षा के लिए हथियार लाइसेंस की माँग कर रहे हैं। राज्य सरकार को आपसी भाईचारा बहाल करना होगा।
साज़िश की गुत्थी
पुलिस ने सैकड़ों गिरफ़्तारियाँ ज़रूर कर ली है। दंगों में शामिल लोगों ने पूछताछ में बहुत कुछ ख़ुलासे भी किये हैं; लेकिन अभी तक वे बड़े चेहरे बेनक़ाब नहीं हुए हैं, जिन्होंने अपरोक्ष तौर पर इसे अंजाम दिया है। सैकड़ों लोगों को लामबंद करना और हथियार आदि मुहैया कराने का काम वीडियो आदि में दिख रहे युवकों का नहीं है। दंगे को राजनीतिक संरक्षण हासिल रहा है। जलाभिषेक यात्रा की मंज़ूरी से लेकर नूंह के पुलिस अधीक्षक का छुट्टी पर होना, यात्रा के रूट पर जगह-जगह पत्थरबाज़ी कर उसे रोकना, सोशल मीडिया पर लोगों को अलग-अलग स्थानों पर इकट्ठा करना ऐसे बहुत-से काम है, जो किसी की सोची-समझी साज़िश के तहत ही हुआ है। दंगे की एक वजह अफ़वाहें भी रही हैं। यात्रा शुरू होने से पहले यह स्पष्ट हो चुका था कि मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी आदि नहीं आ रहे हैं, जबकि सोशल मीडिया पर उनके पहुँचने की बातें होने लगी। इससे लोगों में रोष बढऩे लगा। ये बातें कौन फैला रहा था? कौन चाहता था कि मेवात में दंगे जैसी स्थिति पैदा हो और हालात बद से बदतर हो जाएँ? पुलिस जाँच में बहुत कुछ स्पष्ट हो जाएगा; लेकिन इसके लिए तह में जाने की ज़रूरत होगी। सीबीआई या एनआईए जैसी एजेंसी ही परतें खोल सकती है।
मेवात संवेदनशील इलाक़ा है। भविष्य में फिर कभी भी ऐसी घटना हो सकती है। लिहाज़ा सरकार को साम्प्रदायिक सौहार्द को बनाये रखने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे।
ख़ाकी का ख़ौफ़ नहीं
मेवात में ख़ाकी का ज़्यादा ख़ौफ़ नहीं है। कुछ माह पहले मेवात में साइबर क्राइम का बड़ा मामला सामने आया था। 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा साइबर ठगी के आरोपी इसी क्षेत्र के थे। 5,000 से ज़्यादा पुलिसकर्मियों ने ज़िले के विभिन्न स्थानों पर छापे मारकर सैकड़ों युवकों को गिरफ़्तार किया था। छोटे मोटे मामलों में पुलिस की छापेमारी का लोग विरोध करते हैं। लिहाज़ा पुलिस को बहुत ध्यान से काम करना पड़ता है। अरावली पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते यहाँ ग़ैर-क़ानूनी खनन का काम बहुत होता है। अवैध खनन की शिकायत की जाँच करने गये एक डीएसपी को डंपर से कुचलकर मौत के घाट उतार दिया गया था। साक्षरता दर यहाँ ज़्यादा नहीं है; लेकिन साइबर अपराध में यहाँ के लोग बहुत शातिर हैं। साइबर ठगी में इसे झारखण्ड का जामताड़ा जैसा माना जाता है। यह क्षेत्र गौ-तस्करी के लिए कुख्यात है। अक्सर गौरक्षकों और तस्करों के बीच मारपीट और गोलीबारी की घटनाएँ होती रहती है। इस मुद्दे पर दोनों समुदायों में ठनी रहती है। मेव समुदाय के काफ़ी लोग पशुओं का कारोबार करते हैं; लेकिन गौरक्षकों की चौकसी की वजह से उनका काम प्रभावित हो रहा है।
बुलडोजर कार्रवाई
दंगाइयों की प्रॉपर्टी पर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बुलडोजर की कार्रवाई ख़ूब चली। अनधिकृत क़ब्ज़े हटा दिये गये। रोहिंग्या मुसलमानों के दंगों में शामिल होने के संदेह में उनके क़ब्ज़े भी हटाये गये हैं। प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद कार्रवाई रुक गयी है।
तालमेल की कमी
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और गृहमंत्री अनिल विज में तालमेल की कमी है। सीआईडी विभाग को लेकर दोनों में एक दौर में ठन गयी थी; लेकिन बाद में मामला शान्त हो गया। गृहमंत्री विज किसी तरह की ख़ुफ़िया रिपोर्ट से अनभिज्ञ बता रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय इसकी पुष्टि नहीं कर रहा। दंगों पर ज़्यादातर बयान मुख्यमंत्री की ओर से ही आये हैं। गृहमंत्री विज ने इस मामले की जाँच कराने के आदेश दिये हैं। उन्होंने अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजने के अलावा दंगे को सोची-समझी साज़िश बताने जैसे बयान के अलावा बहुत कुछ नहीं किया है।
गोलीबारी के बाद पुलिस मुठभेड़
मेवात में दंगा आरोपियों की धरपकड़ जारी है। ज़्यादातर दंगाई पुलिस कार्रवाई से डरकर मेवात से भाग चुके हैं। दंगे में शामिल रहे दो लोगों के पहाड़ी क्षेत्र में छिपे होने की सूचना के बाद पुलिस मौक़े पर पहुँची। गिरफ़्त से बचने के लिए दोनों ने पुलिस पर गोलीबारी करके वहाँ से भागने का प्रयास किया; लेकिन जवाबी कार्रवाई में एक सैफुल के पाँव में गोली लगी और दूसरे को पीछा करके पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया गया। दूसरा आरोपी मुनसैद है। इनसे एक देसी कट्टा और मोटरसाइकिल बरामद हुई है। दोनों मेव समुदाय के हैं और दंगों के लिए राजस्थान से यहाँ बुलाये गये थे। दोनों मेवात से निकलने की जुगत में थे; लेकिन पुलिस नाकों की वजह से छिपते फिर रहे थे। पुलिस इस तरह के दंगाइयों की तलाश में संवेदनशील स्थानों पर नज़र रखे हुए है।