हरियाणा में भ्रष्टाचार पर नौकरशाह आमने-सामने

वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका और आईएएस संजीव वर्मा ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ दर्ज करायी प्राथमिकी

भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बेधडक़ कार्रवाई करने वाले हरियाणा काडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका अब ख़ुद कमोबेश ऐसे ही आरोप में घिरे हैं। उनके ख़िलाफ़ हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) आईएएस संजीव वर्मा ने प्राथमिकी दर्ज करायी है। खेमका ने इसके जवाब में संजीव वर्मा के ख़िलाफ़ भी प्राथमिकी दर्ज करानी चाही; लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। राज्य के गृहमंत्री अनिल विज ख़ुद खेमका के साथ आये, तब कहीं जाकर वर्मा और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ उनकी प्राथमिकी दर्ज हो सकी। पुलिस अब दोनों मामलों की जाँच करेगी। क़रीब 13 साल पुराना मामला खेमका के गले की फाँस बना हुआ है। पंचकूला पुलिस भी दो पाटों के बीच फँस गयी है। मामला हाई प्रोफाइल है, लिहाज़ा उसे फूँक-फूँककर जाँच को आगे बढ़ाना पड़ेगा। खेमका के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार, नियमों की अनदेखी और अनियमितता बरते जाने जैसे गम्भीर आरोप हैं। वहीं संजीव वर्मा पर सरकारी सर्विस रूल्स की अनदेखी और विभाग के सरकारी वाहन के के बेजा इस्तेमाल जैसे आरोप है।

वर्ष 2009-10 में हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक के पद पर रहते खेमका पर नियुक्तियों में गड़बड़ी की शिकायत है। खेमका वर्तमान में अतिरिक्त मुख्य सचिव जैसे अहम पद पर हैं। वहीं संजीव वर्मा उसी हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं। फ़िलहाल मामला भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के दो अधिकारियों के बीच है।

राजनीतिक गलियारों में इसे मुख्यमंत्री और गृहमंत्री की फिर से रस्साकसी या खींचतान जैसा आँका जा रहा है। जहाँ किसी आईएएस की प्राथमिक के लिए गृहमंत्री को आना पड़े वहाँ मामले की गम्भीरता को समझा जा सकता है। खेमका ने गिरफ़्तारी से बचने और उनके ख़िलाफ़ प्राथमिकी को रद्द करने के लिए हरियाणा और पंजाब उच्च न्यायालय की शरण ली। वहाँ उनकी गिरफ़्तारी पर तो स्थगन हो गया; लेकिन प्राथमिकी यथावत् है। मामला 13 साल पुराना वर्ष 2009-10 का है। खेमका तब हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन में प्रबंध निदेशक (एमडी) थे। विभाग में कुछ रिक्तियाँ निकाली गयीं।

इसके लिए बाक़ायदा आयोग ने प्रक्रिया अपनायी; लेकिन योग्यता पर कोई खरा नहीं उतरा। लिहाज़ा विभाग के आग्रह पर उसे ही नियुक्तियाँ करने का आदेश मिल गया। विभाग की समिति ने 20 से ज़्यादा पदों पर नियुक्तियाँ कर लीं और सभी नवनियुक्त लोगों को नियुक्ति पत्र सौंप दिये गये। वर्ष 2016 में आरटीआई कार्यकर्ता रविंद्र कुमार ने तमाम नियुक्तियों की रिपोर्ट माँगी, तो उन्हें इसमें कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ लगीं। इसी वर्ष उन्होंने थाने में इसके ख़िलाफ़ शिकायत दी; लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। मामला इतना गम्भीर था कि यह लोकायुक्त के पास भी पहुँचा, जो अभी लम्बित है; जबकि खेमका कहते हैं कि पुलिस जाँच और लोकायुक्त में उन पर लगाये आरोप पुष्ट नहीं हुए हैं। वह कहते हैं कि शिकायतकर्ता रविंद्र कुमार और कुछ अन्य उनकी छवि बिगाडऩे के लिए यह सब कर रहे हैं। इसके विपरीत रविंद्र कुमार कहते हैं कि उनकी सभी शिकायतें लम्बित हैं, किसी भी जाँच में खेमका और अन्य को बेदाग़ साबित नहीं किया जा सका है। खेमका जाँच को प्रभावित कर रहे हैं। अगर हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन में उनके कार्यकाल के दौरान नियुक्तियों में भ्रष्टाचार और उल्लंघन नहीं हुए, तो उन्हें कैसा डर? उन्हें तो हर जाँच के लिए तैयार रहना चाहिए। वह इस मामले में सीबीआई जाँच के लिए तैयार हैं। क्या खेमका इस चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं? खेमका मुझ पर छवि ख़राब करने और झूठे आरोप की बात कहते हैं। अगर उनकी बात में दम है, तो वे वर्ष 2016 में जब उन्होंने थाने में शिकायत दी थी, तभी उन्होंने (खेमका ने) उनके ख़िलाफ़ क्यों कार्रवाई नहीं की? अब जब पूरी जाँच के बाद उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज हो गया, तो वह संजीव वर्मा और मेरे ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करा रहे हैं।

बक़ौल रविंद्र कुमार- ‘हाल में उनके ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराने वाले तत्कालीन हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) संजीव वर्मा की खेमका से कोई निजी खुन्नस तो नहीं है। उस पद पर कोई भी रहे, उसे कार्रवाई करनी ही थी। संजीव वर्मा ने इस मामले की आंतरिक और विस्तृत जाँच करायी। उन्हें बहुत कुछ ठोस सुबूत मिले होंगे, जिसके आधार पर उनकी खेमका और कुछ अन्य के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज हो सकी। संजीव वर्मा के मुताबिक, वह अधिकारी के तौर पर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। अगर किसी को इसमें पूर्वाग्रह या कोई अन्य कारण लगता हो, तो सीबीआई जाँच तक के लिए तैयार है। सरकार चाहे किसी भी एजेंसी से जाँच करा ले, वे पीछे नहीं हटेंगे। मामले को उठाने और उसे इस अंजाम तक लाने वाले रविंद्र कुमार की राय में नियुक्तियों में जमकर धाँधली और नियमों की अनदेखी हुई। यही वजह है कि प्रबंधक जैसे अहम पद पर नियुक्त हुए पी.के. गुप्ता और एस.एस. रंधावा को सेवा मुक्त करना पडा। इनमें गुप्ता उत्तर प्रदेश और रंधावा पंजाब के हैं।’

रविंद्र कुमार के मुताबिक, नियुक्तियों में शीर्ष पदों पर हरियाणा के लोगों की अनदेखी हुई, जबकि अन्य पदों के लिए तय अनुभव और शैक्षिक योग्यता को भी नज़रअंदाज़ किया गया। सवाल यह कि नियुक्तियों में कथित भ्रष्टाचार और धाँधली के सीधे आरोप खेमका पर क्यों लग रहे हैं? वह सीधे तौर पर नियुक्तियाँ करने वाले एकमात्र नहीं थे। प्रबंधक निदेशक होने के नाते वह विभाग के प्रमुख अधिकारी थे। साक्षात्कार आदि के लिए बनी समित के सदस्य थे। तो आरोप उन पर ही नहीं अन्य सदस्यों पर भी है। चूँकि खेमका चर्चित अधिकारी रहे हैं, इसलिए मामला हाई प्रोफाइल ज़्यादा हो गया है। 29 साल की सर्विस में क़रीब 54 बार तबादले झेल चुके खेमका हर सरकार की आँख की किरकिरी ही रहे हैं। वह जिस विभाग में गये, वहाँ सब दुरुस्त करने के लिए कार्रवाइयाँ कीं। जिस विभाग में जाते, वही अहम बन जाता।

राबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के ज़मीन सौदों को रद्द करने वाले खेमका ने राज्य सरकार की चूलें हिला दी थीं। लगभग हर छ: माह बाद उनके तबादले होते रहे। हर विभाग में यही डर है कि कहीं खेमका उनके यहाँ न आ जाएँ। उनके काम करने का तरीक़ा अलग है, जो अक्सर सरकारों को रास नहीं आया करता। वह राज्य में किसी भी सरकार में पसन्द के अधिकारी नहीं रहे हैं। वे जो भी कार्रवाई करते उसके नतीजा उनका तबादला ही होता था। उनसे कनिष्ठ सरकारों में चहेते बने रहे; लेकिन खेमका अपनी ही चाल चलते रहे, जो अब तक चल रहे हैं। यह पहला मौक़ा है, जब राज्य के गृहमंत्री अनिल विज उनकी प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए साथ आये। खेमका ने विज से इस क़दम की सराहना भी की है। विज के समर्थन से अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं कि कोई और खेमका की अपरोक्ष विरोध कर रहा है। उनकी छवि ईमानदार और बिना अच्छे बुरे नतीजे के कड़े फ़ैसले लेने वाले अधिकारी के तौर पर जानी जाती रही है। यह पहला मामला है, जिसमें उन पर गम्भीर आरोप लगे हैं।

बहरहाल, अभी पुलिस जाँच होगी। इसके बाद मामला अदालत में जाएगा। न्यायिक प्रक्रिया में काफ़ी समय लगता है। फ़िलहाल उच्च न्यायालय ने खेमका की गिरफ़्तारी पर स्थगन आदेश दे रखा है। प्राथमिकी दर्ज पर अभी कोई फ़ैसला नहीं आया है। देखना यह है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश और सरकारी व्यवस्था दुरुस्त और अपनी बेदाग़ छवि के लिए मशहूर खेमका के लिए गृहमंत्री अनिल विज क्या कर सकेंगे? क्योंकि सरकार में विज से भी ज़्यादा प्रभावी लोग अपरोक्ष तौर पर मामले को आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं।


“नियुक्तियों में कहीं कोई पारदर्शिता नहीं बरती गयी। शैक्षिक योग्यता से लेकर अनुभव को दरकिनार किया गया। अगर प्रक्रिया ठीक होती, तो शिकायत के बाद प्रबंधक जैसे अहम पद पर नियुक्त हुए अधिकारियों को इस तरह सेवामुक्त करने की नौबत नहीं आती। नियुक्तियों में नियमों की अनदेखी ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार भी हुआ।’’
रविंद्र कुमार
आरटीआई कार्यकर्ता


“मेरे ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराना सर्विस रूल्स के ख़िलाफ़ है। बिना सरकार की अनुमति के प्राथमिकी दर्ज कराना ग़लत है। पुलिस और लोकायुक्त की जाँच में मेरे ख़िलाफ़ किसी तरह के आरोप साबित नहीं हुए हैं। कुछ कतिपय लोग मेरी छवि को ख़राब करना चाहते हैं; लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिलेगी।’’
अशोक खेमका
अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा


“विभागीय समिति की जाँच के बाद अशोक खेमका और अन्य के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करायी है। वह सरकारी अधिकारी हैं, अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। उन्होंने किसी के दवाब में यह नहीं किया है। अगर किसी को लगता है कि ऐसा है, तो सीबीआई जाँच तक के लिए तैयार हैं। उन्हें किसी तरह का कोई डर नहीं है।’’
संजीव वर्मा
प्रबंध निदेशक, हरियाणा वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन