हरियाणा ने फिर देखा मौत का भयावह मंज़र

समलैंगिक रिश्ते की ख़ातिर युवक ने माँ-बाप, बहन और नानी की गोली मारकर कर दी हत्या!

हरियाणा के रोहतक में इस वर्ष सामूहिक हत्याकांड की दूसरी घटना समाज को झकझोर देने वाली रही। देश भर में ऐसी घटनाएँ कोई असामान्य बात नहीं है; लेकिन हरियाणा, जिसने देश को अंतरराष्ट्रीय खेलों में महत्त्व दिलाया; में ऐसी घटनाओं का होना हैरान ज़रूर करता है। सात माह के अंतराल में ऐसी दो घटनाएँ हुईं, जिनमें 10 लोगों की सामूहिक तौर पर हत्या हुई। दोनों ही घटनाओं के कारण बहुत मामूली रहे हैं; लेकिन नतीजे उतने ही भयावह दिखे। दोनों घटनाओं में हत्या के लिए रिवॉल्वर का इस्तेमाल किया गया और जो सामने आता गया, आरोपी उन्हें ढेर करते रहे।

इसी माह की घटना रोहतक की विजयनगर कॉलोनी में घटी, जहाँ बेटे अभिषेक मलिक उर्फ़ मोनू (20) पर आरोप है कि उसने अपने पिता प्रदीप मलिक उर्फ़ बबलू पहलवान, माँ बबली देवी, बहन नेहा उर्फ़ तमन्ना और नानी रोशनी की गोली मारकर हत्या कर दी। हालाँकि आरोपी ने अपना गुनाह क़ुबूल करते हुए पूरी वारदात का ब्यौरा दे दिया है। हत्या में प्रयुक्त हथियार भी बरामद हो गया है। बावजूद इसके जब तक अदालत में दोषी क़रार नहीं दिया जाता, उसे आरोपी ही कहना होगा।

मोनू ने सबसे पहले उसी बहन को नींद में सोते हुए मार डाला, जिससे घटना के कुछ दिन पहले ही रक्षाबन्धन पर राखी बँधवायी थी। वह उसकी इकलौती बहन थी और उससे लगभग एक साल छोटी। लिहाज़ा दोनों में काफ़ी बातें साझा होती रहती थीं। फिर उस पिता को मार डाला, जिसने शानदार मकान के नाम पटल (नेम प्लेट) पर उस बेटे का नाम अंकित कराया था। आई फोन और गाड़ी से लेकर हर तरह की सुख सुविधा दी। वह बेटे मोनू को प्यार भी बहुत करते थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका पूत कपूत निकलेगा और वह भी समाज में रौब रखने के लिए उन्हीं के ख़रीदे हथियार से। वह तो फोन पर किसी से बात कर रहे थे, अचानक सिर में गोली लगी तो वहीं ढेर हो गये। लाडले ने यह सोचकर कि कहीं पहलवान पापा बच न जाएँ, एक और गोली भी मार दी।

उस माँ को भी नहीं छोड़ा, जो उससे बेइंतहा प्यार करती थी। इकलौता बेटा होने के कारण मोनू उसे बहुत प्रिय था; लेकिन बेटे ने उसके सिर में भी गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया। उस नानी को भी मार डाला, जो उसे (मोनू को) समझाने के लिए आयी हुई थी। जब माँ-बाप के समझाने का कोई असर नहीं हुआ, तो नानी को विशेषतौर पर बुलाया गया था। लेकिन क्या पता था कि दोहिता (बेटी का पुत्र) ही उसकी मौत की वजह बनेगा।

मोनू समलैंगिक था और उसके रिश्ते नैनीताल (उत्तराखण्ड) के कार्तिक नामक युवक से थे। परिवार के लोग दोनों को अच्छे दोस्त के तौर पर जानते थे। यह दोस्ती दिल्ली में केबिन सहायक का कोर्स करते हुए हुई, जो आगे चलकर ग़लत सम्बन्धों में बदल गयी। परिजनों को मोनू और कार्तिक की दोस्ती की जानकारी तो थी, लेकिन समलैंगिक रिश्ते के बारे में वे नहीं जानते थे। इस बात की शुरुआत में जानकारी उसकी बहन नेहा उर्फ़ तमन्ना को थी, उसके माध्यम से ही परिजनों को पता चला। इसके बाद मलिक परिवार में इस मुद्दे को लेकर माहौल तनावपूर्ण होता गया। लेकिन उसका नतीजा ऐसा होगा, इसका अनुमान मोनू के अलावा किसी को नहीं रहा होगा। उसने सोची-समझी साज़िश के तहत अपने ही पिता की रिवॉल्वर से एक-एक कर परिजनों और नानी तक की हत्या कर दी।

पिता प्रदीप मलिक उर्फ़ बबलू पहलवान प्रॉपर्टी का काम करते थे। उन्हें हथियारों का शौक़ भी था। जन्मदिन के समारोहों के दौरान केक पर रिवॉल्वर रखे फोटो देखे जा सकते हैं। मोनू पिता के साथ बैठकर एक नहीं, बल्कि दो-दो रिवॉल्वर के साथ बैठा भी दिखता है। घर में रखे रिवॉल्वर से ही मोनू ने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया और हथियार घर से कब ग़ायब कर दिया? इसकी जानकारी किसी को नहीं लगी। हत्या में प्रयुक्त रिवॉल्वर लाइसेंसी था या नहीं? इसका ख़ुलासा होना बाक़ी है।

यह घटना रिश्तों की हत्या को भी दर्शाती है। समलैंगिक रिश्ता बनाये रखने पर आमदा बेटे ने किसी की नहीं सुनी और इतनी बड़ी घटना अंजाम दे डाला। मोनू ने किसी बात पर आवेश में आकर इतनी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया, बल्कि इसके लिए बाक़ायदा साज़िश रची। चार हत्याओं के बाद उसने घटना को मोड़ देने की कोशिश की; लेकिन वह पुलिस की नज़र से बच नहीं सका। समलैंगिक रिश्ते के लिए उसने जो किया, वह शर्मसार करने वाला है। जिस रिश्ते को समाज में मान्यता ही नहीं, उसे निभाने के लिए उसका यह कृत्य उसे शायद ज़िन्दगी भर प्रायश्चित करने पर मजबूर करता रहे।

इससे पहले इसी वर्ष फरवरी के दौरान इसी शहर के जाट कॉलेज में कुश्ती कोच सुखविंदर ने छ: लोगों की गोलियाँ मारकर हत्या कर दी थी। इसमें पाँच की मौत घटनास्थल पर हो गयी थी, जबकि छ: साल के सरताज ने बाद में दम तोड़ दिया था। आरोपी सुखविंदर ने कोच की नौकरी से अलग कर देने का इतना बड़ा बदला लिया, जिसे सुनकर कोई भी सिहर सकता है। महिला पहलवान की शिकायत पर कॉलेज परिसर अखाड़े के प्रमुख कोच मनोज मलिक ने सुखविंदर को काम से हटा दिया था।

वह इससे इतना नाराज़ हुआ कि इस प्रकरण में मनोज का साथ देने वाले सभी को सबक़ सिखाने के लिए उसने इतना बड़ा क़दम उठा लिया। वह कॉलेज परिसर पहुँचा और वहीं रह रहे प्रमुख कोच मनोज मलिक के साथ वाद-विवाद होने पर गोली मार दी। बचाव में आयी उनकी पत्नी साक्षी को भी मौत की नींद सुला दिया। गोलीबारी में प्रदीप और साक्षी के तीन साल के बच्चे सरताज छर्रे लगने से गम्भीर घायल हो गया, जिसकी कुछ दिन बाद मौत हो गयी। सुखबिंदर ने महिला पहलवान पूजा, कोच सतीश दलाल और प्रदीप मलिक पर भी ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाकर मार डाला। उस दिन सुखविंदर के सिर पर बदला लेने का जैसे भूत सवार था। उसने अमरजीत पर भी गोली चला दी। उसका भाग्य अच्छा था कि उसने भागकर जान बचायी। घटना में मनोज मलिक का पूरा परिवार ख़त्म हो गया, जबकि उनका कोई दोष नहीं था। महिला पहलवान की शिकायत पर मनोज को कार्रवाई करनी ही थी; लिहाज़ा उन्होंने की। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका ही एक साथी इस बात का बदला इस तरह लेगा।

कोई दो दशक पहले भी राज्य में हुए सामूहिक हत्याकांड से लोग दहल उठे थे। ऐसी बड़ी घटना का कोई उदाहरण कम-से-कम इस राज्य में तो नहीं मिलता। इसमें बेटी और दामाद ने ही मिलकर पूरे परिवार का ख़ात्मा कर दिया। मामला प्रॉपर्टी विवाद का था। इस घटना को याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं। बरवाला से तत्कालीन निर्दलीय विधायक रेलूराम पूनिया समेत परिवार के आठ लोगों को बेटी सोनिया और दामाद संजीव ने बेरहमी से मौत की नींद सुला दिया था। इनमें तीन बच्चे थे, जिनकी उम्र चार साल से भी कम थी। इनमें एक तो डेढ़ महीने का शिशु ही था। मरने वालों में रेलूराम पूनिया, पत्नी कृष्णा, बेटा सुनील, पत्नी शकुंतला, बेटी प्रियंका, चार साल का पोता लोकेश, तीन साल की पोती शिवानी और डेढ़ माह की प्रीति थे।

इस घटना में भी पहले रिवॉल्वर का इस्तेमाल किया जाना था। लेकिन बाद में विचार बदल दिया गया। पहले परिवार के सदस्यों को खाने में नशीली चीज़ खिलाकर बेहोश किया गया। फिर उन पर लोहे की छड़ से प्रहार कर मौत की नींद सुला दिया। जिस करोड़ों की सम्पत्ति के चक्कर में सोनिया और संजीव ने इतना बड़ा कांड किया, उसका नतीजा क्या हुआ? बदले में उन्हें सम्पत्ति नहीं, बल्कि फाँसी की सज़ा मिली है। दोनों तिल-तिल कर मरने को मजबूर हैं। सोनिया ने तो जेल में ख़ुदकुशी का भी प्रयास किया; लेकिन बचा ली गयी। पेरोल पर बाहर आने पर संजीव ने भी ग़ायब होने की कोशिश की। लेकिन कुछ दिनों बाद वह भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया। उनकी दया याचिका ख़ारिज हो चुकी है। देर-सबेर दोनों को फाँसी लगनी लगभग तय ही है। अगर सोनिया को फाँसी होती है, तो वह आज़ादी के बाद पहली महिला होगी, जो फंदे पर झूलेगी। सामूहिक हत्याकांडों की ऐसी घटनाएँ समाज को झकझोर देने वाली होती हैं।

 

प्यार में परिवार की बलि

सन् 2008 में उत्तर प्रदेश के ज़िला अमरोहा के गाँव बवानाखेड़ी में कमोबेश ऐसी घटना हुई, जिसमें शबनम नामक लडक़ी ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी। इनमें शबनम के पिता शौक़त अली, माँ हाशमी, भाई अनीस, पत्नी अंजुम, राशिद, राबिया और अर्श को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिये गया। घर वालों के ख़िलाफ़ जाकर शबनम ने सलीम को छोडऩा मंज़ूर नहीं किया, बल्कि विरोध करने वालों का ही ख़ात्मा कर डाला। शबनम और सलीम को भी फाँसी की सज़ा हो चुकी है। उनकी भी दया याचिका राष्ट्रपति से नामंज़ूर हो चुकी है।