हरियाणा के ज़िला सोनीपत के बरोदा उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी इंदुराज नरवाल की करीब साढ़े दस हज़ार मतों से जीत और भाजपा प्रत्याशी ओलंपियन पहलवान योगेश्वर दत्त की लगातार दूसरी हार से प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। अखाड़े में योगेश्वर दत्त ने बहुत दम दिखाया है, लेकिन राजनीति के मैदान में वह फिसड्डी साबित हो गये। विदेशी पहलवानों को पटखनी देकर देश का नाम ऊँचा करने वाले दत्त दूसरी बार चुनाव हार गये। खेल कोटे से पुलिस में अफसर बनने वाले दत्त राजनीति में भी बहुत कुछ करना चाह रहे थे, जिसके लिए वह इस्तीफा देकर मैदान में आये; लेकिन राजनीतिक अखाड़े में सफल नहीं सके। उनकी छवि को देखते हुए पार्टी को उन पर काफी भरोसा था। यहाँ सरकार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगी थी, वहीं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए यह नाक का सवाल था। यह सीट लगातार तीन बार के कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से खाली हुई थी। दो दशक से यह कांग्रेस की पक्की सीट है।
उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नरवाल की जीत ने बता दिया कि इस दुर्ग में सेंध लगाना बहुत मुश्किल है। जीत को कांग्रेस नेता भाजपा-जजपा गठबन्धन सरकार की उलटी गिनती मानते हैं, वहीं हार को सरकार की नाकामी के तौर पर आँकते हैं। हार के बावजूद गठबन्धन सरकार को कोई खतरा नहीं है; क्योंकि संख्या बल वही रहेगा, जो उप चुनाव से पहले था। यह सीट जीतने के बाद उम्मीद है कि हताश कांग्रेस में नयी स्फूर्ति आयेगी, वहीं भाजपा को बहुत कुछ सोचना पड़ेगा। कोई भी उप चुनाव वैसे भी सत्ताधारी दल के लिए प्रतिष्ठा की बात होती है। हार सरकार की विश्वसनीयता और उसके काम पर सवाल खड़े करती है और जीत उसके किये काम की गारंटी जैसी होती है। हालाँकि आगामी विधानसभा चुनाव में अभी काफी समय है, ऐसे में बरोदा उप चुनाव को सेमीफाइनल नहीं माना जा सकता। फिर भी इस एक सीट के लिए भाजपा के शक्ति परीक्षण से इन्कार नहीं किया जा सकता।
बरोदा उप चुनाव में सरकार ने पूरी ताकत झोंकी हुई थी। पूरा संगठन इस विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय था। सरकार की ओर से भाजपा प्रत्याशी की जीत के बाद ज़िले को प्रतिनिधित्व देने और खूब विकास कार्य कराने जैसे वादे भी किये गये, लेकिन यह सब काम नहीं आया। उधर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने पूरे चुनाव की कमान सँभाल रखी थी। पहले बरोदा सीट से कपूर सिंह नरवाल को मैदान में उतारा जाना तय हुआ था; लेकिन बाद में हुड्डा के ही समर्थक इंदुराज नरवाल को मैदान में उतारा गया।
कपूर नरवाल ने बाद में आज़ाद प्रत्याशी के तौर पर उतरने का मन बनाया; लेकिन भूपेंद्र हुड्डा के समझाने और भविष्य में पूरा मान-सम्मान देने के भरोसे बाद वह मान गये। अगर हुड्डा ऐसा करने में सफल नहीं होते और कपूर नरवाल मैदान में उतर जाते, तो यह कांग्रेस के लिए खतरे की बात होती। उनका क्षेत्र में अच्छा असर माना जाता है, ऐसे में वह कांग्रेस के वोट ही काटते जिसका सीधा फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिलना तय था। कपूर नरवाल के मैदान में न उतरने के बाद भाजपा खेमे में कुछ निराशा ज़रूर थी, लेकिन उन्हें फिर भी जीतने का भरोसा था। उसे सरकार में भागीदार जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के वोट बैंक का भी आसरा था। बता दें कि रोहतक और सोनीपत जाट बाहुल्य क्षेत्र है, यहाँ कांग्रेस का अच्छा प्रभाव है। इसकी एक वजह भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते दोनों ज़िलों में खूब काम कराये। जातिगत समीकरण के हिसाब से भी उनका प्रभाव रहा है। इनके मुकाबले में भाजपा के पास ऐसा कोई नेता नहीं था, जिसका क्षेत्र में इतना ज़्यादा प्रभाव रहा हो। बरोदा उप चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही था। पहलवानी में देश का नाम रोशन करने वाले दत्त को इस बार जीत की काफी उम्मीद थी। नाम की घोषणा से पहले ही उन्होंने क्षेत्र में सम्पर्क साधने का काम शुरू कर दिया था। कुछ दिन पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले ओमप्रकाश धनखड़ के लिए उप चुनाव की हार संगठन की कमज़ोरी साबित करता है।
भालू बनाम पहलवान
उप चुनाव में भालू बनाम पहलवान के तौर पर खूब प्रचार किया। कांग्रेस प्रत्याशी इंदुराज नरवाल को लोग भालू के नाम से ज़्यादा जानते हैं। जब वह बच्चे थे, तो गोल-मटोल थे; लिहाज़ा परिवार के लोगों ने उन्हें प्यार से यह नाम दे दिया। बाद में वह इंदुराज से कम भालू के नाम से ज़्यादा जाने गये। उधर भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर दत्त तो पहलवानी में नाम कमा चुके हैं। ओलंपिक में पदक जीतकर वह देश और राज्य का नाम रोशन कर चुके हैं। प्रचार में प्रत्याशियों के नामों के साथ ‘भालू और पहलवान के बीच मुकाबला’ होना खूब उछला।