हरियाणा आदमपुर उपचुनाव, भाजपा की जीत के मायने

हरियाणा के आदमपुर विधानसभा उपचुनाव में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसी विधायक के तौर पर भाजपा के भव्य बिश्नोई ने 67,492 यानी लगभग 51.32 फ़ीसदी वोटों से जीतकर नयी इबारत लिखी है। इस सीट पर कुल 1, 31,523 वोट पड़े और कोई पाँच दशक से ज़्यादा के बाद यहाँ से ग़ैर-कांग्रेसी विधायक बना है। आदमपुर में मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा।

मुक़ाबले में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के कुरड़ा राम नंबरदार को कुल 5,248 यानी लगभग चार फ़ीसदी वोट मिले और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रत्यासी सतेंद्र सिंह को केवल 3,420 यानी लगभग 10 फ़ीसदी वोट ही वोट मिले। दोनों की जमानत ज़ब्त हो गयी। दोनों प्रत्याशी कांग्रेस के सक्रिय नेता रह चुके हैं।

इनमें से कुरड़ाराम ने आदमपुर में टिकट न मिलने की वजह से इनेलो से चुनाव लड़ा, वहीं सतेंद्र सिंह एक बार इसी विधानसभा में कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ चुक हैं। इनेलो के प्रचार में पूर्व उप मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और ऐलनाबाद से पार्टी विधायक अभय चौटाला ने ख़ूब ज़ोर लगाया और प्रचार किया। वहीं आम आदमी पार्टी ने पजाब के बाद हरियाणा में ज़ोरदार आग़ाज़ के लिए कोशिश की।

आदमपुर सीट के लिए पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूरा ज़ोर लगाया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान ने भी यहाँ रोड शो कर दम दिखाने की कोशिश की; लेकिन प्रत्याशी सतेंद्र सिंह को नहीं जिता सके। इसी आम आदमी पार्टी ने स्थानीय निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर लगभग 10 फ़ीसदी मत हासिल किये थे। आदमपुर में वैसा प्रदर्शन पार्टी नहीं दोहरा सकी। यह उसके लिए झटके जैसा है। आदमपुर उपचुनाव में भव्य बिश्नोई की जीत के क्या कारण रहे होंगे, जबकि जगह-जगह उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा था। किसान संगठनों ने प्रचार के दौरान उन्हें काले झण्डे तक दिखाये थे। बावजूद इसके उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश ‘जेपी’ को 15,740 मतों से हरा दिया। सन् 2019 के विधानसभा उपचुनाव में उनके पिता कुलदीप बिश्नोई को कांग्रेस प्रत्याशी क तौर पर इतने फ़ीसदी ही मत मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी सोनाली फोगाट को 34,000 से ज़्यादा मत मिले। अब भाजपा प्रत्याशी को लगभग दोगुने मत मिले। इस बार जजपा भी भाजपा के साथ में है; लेकिन उसका वोट बैंक यहाँ ऐसा नहीं कि अन्तर दोगुना हो जाए। यह सब भजनलाल परिवार की विरासत को जाता है।

आदमपुर में मतदान किसी पार्टी विशेष को नहीं, बल्कि व्यक्ति विशेष के लिए हुआ, जिसका फ़ायदा भव्य को मिला। अगर भव्य की जीत नहीं होती, तो कुलदीप बिश्नोई का राजनीतिक भविष्य ख़तरे में पड़ जाता और कांग्रेस इसे विधानसभा आम चुनाव का सेमीफाइनल मान लेती। हार से कांग्रेस को जहाँ एक सीट का नुक़सान हुआ। वहीं इससे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिह हुड्डा के बेटे और उनके राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा को ज़ोरदार झटका लगा है। उपचुनाव में प्रचार से पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, तोशाम से विधायक किरण चौधरी ने दूरी बनाये रखी।

          

उधर भाजपा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ समेत मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं ने प्रचार में कहीं कोई कमी नहीं रखी। जजपा का हलक़े में कोई विशेष जनाधार नहीं है, बावजूद इसके उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रचार किया। दुष्यंत हिसार से सांसद रह चुके हैं और इस नाते आदमपुर हलक़े में उनका कुछ प्रभाव तो है। आदमपुर हलक़ा कांग्रेस का नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल परिवार का अभेद दुर्ग है। इसी परिवार के दो सदस्यों ने ग़ैर-कांग्रेसी पार्टी हरियाणा जनहित पार्टी (हजकां) से जीत दर्ज कर बता दिया है कि यहाँ से उनके परिवार के वर्चस्व को तोडऩा आसान नहीं है। पूर्व विधायक कुलदीप बिश्नोई के पुत्र भव्य बिश्नोई को राजनीति का ज़्यादा अनुभव नहीं है। लोकसभा चुनाव में वह हिसार से अपनी क़िस्मत आजमा चुके हैं; लेकिन बुरी तरह से पराजित हुए।

आमदपुर विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज कर बता दिया है कि यह हलक़ा उनके दादा भजनलाल और पिता कुलदीप की विरासत है, जिसे उन्हें आगे बढ़ाना है। आदमपुर विधानसभा हलक़ा इस परिवार का अभेद दुर्ग है। सन् 1967 से लगातार यहाँ से कांग्रेस प्रत्याशी ही जीतता रहा है। दो बार यहाँ से भजनलाल परिवार के सदस्य विधायक बने; लेकिन वे कांग्रेस की बजाय अपनी गठित पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के थे।

सन् 1967 में एच. सिंह कांग्रेस के विधायक बने, उसके बाद से वर्ष 2022 तक इसी परिवार का विधायक बनता रहा है। सन् 1968 से भजनलाल ने इस सीट पर जीत हासिल की, फिर तो उसक बाद लगातार छ: से ज़्यादा बार वह यहाँ बड़े आराम से जीत दर्ज करते रहे हैं। भजनलाल ने मुख्यमंत्री रहते इस हलक़े में हज़ारों लोगों को नौकरियाँ दीं। उनके कार्यकाल में हलक़े के कुछ गाँवों में तो बहुसंख्यक घरों में कोई-न-कोई सरकारी नौकरी में रहा। ये परिवार आज भी उनके मुरीद और पक्के मतदाता हैं। चाहे परिवार का सदस्य किसी भी पार्टी से खड़ा हो, उनके मत शर्तिया उन्हीं को जाते हैं। आमदपुर उपचुनाव में हार से कांग्रेस को एक सीट का नुक़सान हुआ, वहीं भाजपा के खाते में यह संख्या जुड़ी है; लेकिन इससे राज्य की राजनीति में किसी उलटफेर की कोई सम्भावना नहीं है।

आदमपुर में भजनलाल परिवार की 16वीं जीत के तौर पर भव्य बिश्नोई हैं। कहाँ राजनीति में अनुभवहीन और युवा ने तीन बार के सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री और एक दौर में बाहुबली रहे जयप्रकाश ‘जेपी’ को अच्छे-ख़ासे अन्तर से शिकस्त दे दी। चुनाव से पहले भाजपा-जेजेपी के साझे प्रत्याशी भव्य को कमज़ोर आँका जा रहा था और राजनीति के जानकारों की राय में जेपी की जीत के दावे किये जा रहे थे; लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। इसकी एक वजह कांग्रेस की कुछ फूट भी रही। यह चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा था। दोनों में 36 का आँकड़ा चल रहा था और इसी के चलते कुलदीप ने विद्रोही तेवर अपना लिये थे। राज्यसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन की हार के बाद कुलदीप एक तरह से हुड्डा की आँख की किरकिरी बन गये थे। आलाकमान ने उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था, ऐसे में कुलदीप के लिए पार्टी बेगानी हो गयी थी। वह अब ऐसी हालत में कांग्रेस में रह भी नही सकते थे।

इससे पहले कुलदीप ने भाजपा से निकटता बढ़ा ली थी। उनके कांग्रेस छोडऩे और और भाजपा में जाने की बातें होने लगी थी और हुआ भी ऐसा ही। सबसे बड़ा सवाल यह कि आख़िर कुलदीप ने खुद की बजाय बेटे को उपचुनाव में मैदान में क्यों उतारा? उनके राजनीतिक भविष्य का क्या होगा? अब कुलदीप कांग्रेस में नहीं, बल्कि भाजपा में है, जहाँ परिवारवाद पर बदिशें हैं। हरियाणा में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, तो क्या कुलदीप किसी दूसरी सीट से मैदान में उतरेंगे या फिर लोकसभा चुनाव में अपनी क़िस्मत आजमाएँगे? कुलदीप की रुचि राज्य की राजनीति में है और वह कई बार मुख्यमंत्री की दावेदरी तक जता चुके हैं। ऐसे में उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा? उन्होंने यह तो साबित करके दिखा दिया है कि आदमपुर उनके परिवार की विरासत है और वह यहाँ से किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

आदमपुर में बेटे की जीत का बड़ा श्रेय पिता कुलदीप बिश्नोई की रणनीति को भी जाता है। आदमपुर में भजनलाल परिवार की मुख़ालफ़त बड़े स्तर पर नहीं होती; लेकिन इस बार यह बहुत देखने को मिला। बावजूद इसके भव्य की जीत हुई। वैसे तो यह भाजपा की जीत ही माना जाएगा; लेकिन हक़ीक़त में यह भजनलाल परिवार के सदस्य की जीत मानी जाएगी। लोकसभा के आम चुनाव में भव्य इसी आदमपुर विधानसभा हलक़े के कई गाँवों में पिछड़े, जबकि उपचुनाव में ऐसा कुछ नहीं हुआ। भव्य भाजपा के सबसे युवा विधायक तो बन गये हैं। उन्हें अब हलक़े में पैठ जमानी होगी। उनके दादा के समय आदमपुर हलक़े का ख़ूब विकास हुआ। सन् 2005 के बाद से आदमपुर हलक़ा उपेक्षित ही रहा है। इस इलाक़े के लोगों को आज भी ऐसे नेता की तलाश है, जो इस इलाक़े का विकास कर सके। भव्य बिश्नोई से लोगों को उम्मीद है कि वह इस इलाक़े का बेहतर विकास करेंगे।

उपचुनाव की हार ने कांग्रेस को बड़ा सबक़ दिया है। केजरीवाल के मुफ्त बिजली और पुरानी पेंशन बहाल के वादे मतदाताओं पर कुछ असर नहीं छोड़ सके। इनेलो का प्रचार खेती से जुड़ों मुद्दों पर ज़्यादा रहा। अगर उपचुनाव का नतीजा उलटा होता, तो निश्चित तौर पर यह कांग्रेस के लिए सेमीफाइनल जीतने जैसा होता और पार्टी में नयी शक्ति का संचार होता लेकिन ऐसा हो नहीं सका। प्रतिष्ठा के इस उपचुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा आख़िर कुलदीप बिश्नोई की रणनीति से पार नहीं पा सके।