हरिद्वार में गंगा के कई घाटों पर साइबेरियन क्रेन (प्रवासी पक्षी) अपना डेरा डाल चुके हैं। पर्वतों के ऊँचे शिखर, समुद्र, रेगिस्तान के ऊपर से हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करके आने वाले प्रवासी पक्षी अलग-अलग प्रजातियों के हैं। लेकिन अब पिछले कई साल से प्रवासी पक्षी दिखाई नहीं दे रहे। खासकर उत्तराखंड में आयी बाढ़ के बाद। दूसरी तरफ इस बार ये प्रवासी पक्षी समय से कुछ दिन पहले ही इस तराई क्षेत्र में पहुँच गये। हरिद्वार में जलीय और दलदलीय दोनों तरह का क्षेत्र है इसलिए हज़ारों की संख्या में यहाँ हर साल प्रवासी पक्षी आते हैं और तकरीबन चार महीने के प्रवास के बाद वापस लौटते हैं। पक्षी वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार अक्टूबर के महीने में जब तापमान 21 डिग्री सेल्सियस था, प्रवासी पक्षी यहाँ पहुँचने शुरू हो गये थे, जबकि बीते वर्षों में ऐसा नहीं था। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रवासी पक्षी भी बदलते जलवायु की मार झेल रहे हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट के अनुसार, पक्षियों के आने-जाने के मार्ग पर जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है। उन्होंने बताया कि पक्षियों के आवागमन में रुकावटों के चलते अब पिछले कई वर्षों से प्रवासी पक्षी दिखाई नहीं देते। उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान में कई वर्षों के युद्ध भी हैं; जिससे विस्फोट रेडिएशन आदि। दूसरा वहाँ खानाबदोश, लड़ाकू इनका शिकार कर लेते हैं; क्योंकि यहाँ बहुत-सी झीलें हैं, जिस कारण इनका मार्ग भी यहीं से होकर गुज़रता है। प्राकृतिक त्रासदियों के कारण भी हर साल बहुत से पक्षी मारे जाते हैं।
प्रवासी पक्षी तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान के रास्ते ही भारत पहुँचते हैं। प्रो. भट्ट बताते हैं कि भारत-भूमि में पेलिआर्कटिक क्षेत्र से यानी हिन्दुस्तान के ऊपर जो भू-भाग में अत्यधिक बर्फ पड़ती है। वहाँ पेड़ों से लेकर पृथ्वी की ऊपरी सतह, जहाँ खेती और बागवानी होती है; बर्फ से ढक जाती है। ऐसे में इन पक्षियों के निवास और खाने-पीने की दिक्कत होती है और इन्हें रहने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिलता। विकास प्रक्रिया के दौरान जब इनको परेशानी हुई, तो उनमें अन्यत्र जाने की इच्छा पैदा हुई। धीरे-धीरे ये इच्छा इतनी तीव्र होती गयी कि इनके जैनेटिक मेकअप में (शारीरिक-मानसिक प्रणाली) एक स्थायी परिवर्तन हो गया। इनमें एक तरह की जैनिक घड़ी है, जो इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए विवश करती है। बायो केमिकल परिवर्तन के कारण पिंजरे के अंदर बंद पक्षी भी उस कस में उडऩे को तैयार रहता है। पिंजरा खुलते ही वह उड़ जाता है। एक स्टडी के मुताबिक, कॉर्निल यूनीवर्सिटी के वरिष्ठ शोधकर्ता एंड्रयू फ्रांसवर्थ का कहना है कि यदि जलवायु परिवर्तन इसी गति से जारी रहा, तो हो सकता है कि भविष्य में कई पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुँच जाएँ या विलुप्त हो जाएँ। क्योंकि हर प्राणी एक सीमा तक ही वातावरण में होने वाले बदलावों को सह सकता है। फ्रांसवर्थ के अनुसार, यदि जैव विविधता को बनाये रखना है, तो हमें ग्लोबल वाॄमग को बढऩे से रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।
कौन-कौन से हैं प्रवासी पक्षी
हरिद्वार के गंगा घाटों, जैसे- भीमगोडा बैराज, झिलमिल झील, मिस्सरपुर घाटों पर प्रवासी पक्षी शीतकाल में बसेरा करते हैं। इनमें जल-काग, चकवा-चकवी, खंजन रेड स्टार्ट, वारबलर, फ्लाई कैचर, पलास गल, पिनटेल, वॉलक्रीपर, सैंड पाइपर, गल्स, टील्स, मैलार्ड, राजहंस, सुर्खाब, हलैक विंगस्टिलर, रीवर टर्नए, रेडऩेप्पड़, आइबिस आदि। ये प्रवासी पक्षी मध्य एशिया, चीन, मंगोसिया, साइबेरिया और रूस आदि देशों से आते हैं।
हरिद्वार के डीएसएफओ डिवीजनल फॉरेस्ट अधिकारी आकाश वर्मा ने बताया कि जब शीतकाल होता है, तो चमोली, उत्तरकाशी से भी पक्षी इस तराई क्षेत्र में आते हैं। नार्दर्न लेपिंग दुर्लभ प्रजाति है, जो यहाँ आती है। मार्च, 2018 में बर्ड वाचिंग प्रोग्राम में झिलमिल झील पर 262 प्रजातियों की पहचान की गयी है। पिछले वर्षों से इनमें वृद्धि देखी गयी है। विदेशों से जो पक्षी आते हैं वे मूलत: प्रवास के दौरान प्रजनन के लिए भी आते हैं। प्रवासी पक्षी गंगा के तलहरी क्षेत्र में मझाड़ों मे, टापुओं में अपना निवास बनाते हैं और अण्डे देते हैं। ये पक्षी ऊपर के क्षेत्रों, जैसे- जंगल, नदी क्षेत्रों में होते हैं; जैसे- नीलधारा, देवपुरा एहलता। शहर से सटे क्षेत्रों में इनकी मात्रा कम होती है; क्योंकि यहाँ मानवीय दखल ज़्यादा होता है। इसके लिए हमारा विभाग हर हफ्ते ड्रोन सर्वे करता है, जिससे वहाँ की सारी स्थिति का पता चलता रहता है।