अपने यूरोप के दौरे में राहुल गांधी ने भाजपा और आरएसएस पर हमले के बाद शनिवार को अपनी ही कांग्रेस पार्टी के ”घमंड” पर टिप्पणी की। राहुल ने स्वीकार किया कि यूपीए की दस साल की सरकार में कांग्रेस के भीतर भी घमंड आ गया था, लेकिन 2014 के आम चुनावों में मिली हार ने पार्टी का घमंड तोड़ा। राहुल ने कहा – ”हमने इस हार से सबक सीखा है”।
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज में एक सवाल के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा ”आपको सुनना होगा। नेतृत्व का मतलब सीखना है। यही सह्रदयता है”। राहुल गांधी ने कहा कि हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पार्टी दरअसल लोग ही होते हैं। कांग्रेस में यह (२०१४ में मिली हार) सभी के लिए एक सीख है।
कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा कि वे अर्थव्यवस्था, समाजशास्त्र और राजनीति को अलग-अलग नहीं देखते। ”यह सब एक प्रक्रिया है जो एक साथ काम करती है। भारत में इस प्रक्रिया ने सौ साल में 1.3 अरब लोगों को बदल दिया।” राहुल ने इस कार्यक्रम में रोजगार पर सवालों के जवाब दिए। अपने पिछले कार्यक्रमों में राहुल ने बेरोजगारी और मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किये थे। आज के कार्यक्रम में राहुल ने कहा कि भारत में रोजगार एक बड़ी समस्या है। राहुल ने कहा कि इसके बावजूद भारत सरकार इसे मान नहीं रही है। ”चीन जहां एक दिन में 50 हजार नौकरियां दे रहा है, वहीं हमारे यहां एक दिन सिर्फ 450 नौकरियां दी जा रही हैं”।
अपनी राजनीति के तरीके पर राहुल ने कहा कि वे विभिन्न समुदायों के पास जाना पसंद करते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि एक सामान्य भारतीय किसान किसी कृषि विशेषज्ञ से ज्यादा ज्ञान रखता है।
उन्होंने कार्यक्रम में सामाजिक न्याय पर भी अपने विचार रखे। राहुल ने कहा कि वे सरकार को एक ”अधिकार देने वाले संस्थान के तौर पर देखते हैं। ”सामाजिक न्याय केवल तभी संभव है जब लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत किया जाए।” राहुल गांधी ने कहा कि अगला चुनाव बेहद सीधा है। ”एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ हर विपक्षी दल है। इसका कारण ये है कि पहली बार भारतीय संस्थानों पर हमला किया गया है”।
राहुल के इस विदेश दौरे और उनके ब्यानों ने देश भर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। राहुल ने बेरोजगारी से लेकर अपने राजनितिक और सामजिक चिंतक तक पर रोशनी डाली है। हालाँकि भाजपा का आरोप है कि राहुल विदेश में भारत की बेईज्जती कर रहे हैं।