आपके पिता की संस्था भारतीय किसान संगठन का मुख्य दायरा तो हमेशा से आरा और भोजपुर का इलाका रहा, फिर आप अचानक पाटलीपुत्र से चुनाव लड़ने क्यों आ गये?
हमने नयी राजनीतिक पार्टी बनायी है, जिसका नाम देसी किसान पार्टी है. हमने 10 मार्च को पार्टी बनायी, 12 मार्च को हमने घोषणा की कि हम बिहार की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. हम चाहते थे आरा से ही चुनाव लड़ना लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों ने तय किया कि पाटलीपुत्र से ही चुनाव लड़ा जाए तो ठीक रहेगा.
लोकसभा चुनाव की घोषणा तो बहुत पहले से थी, आखिर आनन-फानन अंतिम क्षण में राजनीतिक पार्टी बनाकर फिर सिर्फ पाटलीपुत्र से चुनाव लड़ने का? 40 सीटों पर तो आप लड़े नहीं!
राजनीतिक पार्टी बनाने का इरादा पहले से ही था, हां आधिकारिक तौर पर हमने उसे 10 मार्च को मूर्तरूप दिया. और एक बात बता दें कि हम सिर्फ पाटलीपुत्र से चुनाव नहीं लड़ रहे. औरंगाबाद से भी हमारे प्रत्याशी राकेश सिंह मैदान में हैं. बात जहां तक आरा की बजाय पाटलीपुत्र आने की है तो आरा में हमने देखा कि वहां भाजपा अच्छी स्थिति में है, वहां के प्रत्याशी आरके सिंह भी अच्छे हैं. वहां भाजपा की जीत संभव है, इसलिए हमने वहां जाना ठीक नहीं समझा.
पाटलीपुत्र में भी तो आप एक जाति विशेष के भरोसे ही आये होंगे और भाजपा का ही वोट काटेंगे!
नहीं, ऐसा नहीं है. हम यहां लालू प्रसाद के चेलों से लड़ने आये हैं, भाजपा से नहीं. लालू प्रसाद की बेटी चुनाव लड़ रही हैं. उनके दो चेले जदयू से प्रो रंजन यादव और भाजपा से रामकृपाल यादव लड़ रहे हैं. तीनों लालू प्रसाद से ही जुड़े रहे लोग हैं, इसलिए मैं यहां उनसे लड़ने आया हूं. रही बात लोगों के कहने की तो लोग तो बहुत कुछ कह रहे हैं, उनका क्या किया जाए.
यह तो हास्यास्पद बात कर रहे हैं आप. लोग खुलेआम कह रहे हैं कि आपने अंतिम समय में लालू प्रसाद के इशारे पर पार्टी बनायी, पाटलीपुत्र से चुनाव लड़ने का फैसला किया ताकि भाजपा का वोट कटे, उनकी बेटी की जीत सुनिश्चित हो. कुछ तो मोटी रकम लेकर इस सौदे को करने की बात भी कह रहे हैं?
सबसे पहले तो यह बता दें कि हम भाजपा का नुकसान कभी नहीं चाहते. हम लोग तो पक्के भाजपाई हैं. रही बात आरोप लगाने की तो जिसे जो मन में आ रहा है, आरोप लगा रहा है. हमने भी सुना है कि लोग ऐसी बातें कह रहे हैं.
पक्के भाजपाई हैं तो भाजपा ने संपर्क नहीं किया आपसे? और सवाल तो स्वाभाविक तौर पर उठेंगे, क्योंकि आपने अपने गढ़ आरा को छोड़ ही दिया है इस चुनाव में, जबकि आपके पिताजी जेल में रहते हुए भी आरा से ही चुनाव लड़े थे और बेहतर वोट लाए थे.
भाजपा ने हमसे सीधे संपर्क कभी नहीं किया. उनके एक वरिष्ठ नेता ने हमारे लोगों से बात की थी. दूसरी बात यह कि अभी हमारी पार्टी नयी है, हम अभी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. विधानसभा चुनाव तक पार्टी का विस्तार होगा. लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी बनाने का एलान करने पर रिस्पांस बेहतर ही मिला. कई उम्मीदवार हमारी पार्टी से लड़ने को तैयार हुए. लोकसभा के बाद पार्टी का विस्तार होगा और फिर हम अपनी ताकत का अहसास करायेंगे.
आप अब क्या ताकत दिखायेंगे? आपकी या आपके संगठन की पहचान एक जाति विशेष भूमिहारों से जुड़ी रही है और भूमिहार भाजपा के पाले में जा चुके हैं.
हमारी पार्टी किसी जाति विशेष के लिए नहीं है. हमारे लिए सिर्फ दो ही जाति है. एक भूधारी किसानों की और दूसरी जाति भूमिहीन किसानों की. हम दोनों के मसले को लेकर राजनीति करेंगे. मजदूरों को रोजाना पांच सौ रुपये मेहनाताना मिले, इसकी कोशिश करेंगे. किसानों के संबंध में अपने पिताजी के बनाये सिद्धांतों पर चलेंगे.
पिताजी के सिद्धांतों पर चलेंगे तो रणवीर सेना की छाया भी आप पर रहेगी. नरसंहारों का एक लंबा इतिहास भी साथ रहेगा. उस पहचान के साथ चुनाव लड़ेंगे?
मैं विशुद्ध रूप से राजनीति करने आया हूं. मेरा उन घटनाओं से कोई लेना-देना न था, न है. आप देसी किसान पार्टी बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं और अभी भी भोजपुर समेत कई इलाकों में रणवीर सेना के नाम का इस्तेमाल कर बहुत कुछ हो रहा है. हां हमें भी सूचनाएं हैं लेकिन हम तो कभी उससे संबद्ध थे ही नहीं. लेकिन एक और बात है. रही बात किसी घटना की तो वह परिस्थितियों से उभरती है. सरकार को भी इस पर अपना रवैया और नजरिया साफ रखना होगा. एक मामले में आप सुप्रीम कोर्ट तक जायेंगे, दूसरे में चुप्पी साधे रहेंगे तो इसका भी असर पड़ता है.