ऑक्सीजन, बेड और रेमडेसिविर के बाद अब टीकाकरण में मचा रहे लूट
एक दौर वो था, जब देश मेडिकल टूरिज्म और मेडिकल हब बनता जा रहा था। विदेश तक से मरीज़ इलाज कराने भारत आते थे। लेकिन गत वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि मेडिकल सेवा, ख़ासकर सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था संसाधनों के अभाव में लचर और धवस्त होती गयी और कार्पोरेट (निजी) हॉस्पिटलों का तेज़ी से विस्तार होता गया। अगर दिल्ली सरकार के अस्पतालों को छोड़ दें, तो देश भर के अधिकतर केंद्रीय और राज्य अस्पतालों की दशा बेहद ख़राब है। वैसे सरकारी और कार्पोरेट अस्पतालों की पोल तो कोरोना-काल में मरीज़ों को उचित इलाज न मिलने पर ही खुल गयी। लेकिन कुछ सरकारी अस्पतालों और अधिकतर कार्पोरेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने साँठगाँठ करके कोरोना-काल में मौत से जूझते मरीज़ों को जमकर लूटा है।
मौज़ूदा समय में एक सुनियोजित तरीक़े से अन्य बीमारियों, जैसे- हृदय रोग, लकवा, टीबी, कैंसर, जेंगू, मलेरिया, दिमाग़ी बुखार, न्यूरो, अस्थमा और अन्य बीमारियों के मरीज़ों को नदारद दिखाया गया है। जहाँ देखो, वहीं कोरोना वायरस के ही मरीज़ दिख रहे हैं। इसकी मूल वजह पैसा है। अस्पतालों ने जिस तरह से इलाज के लिए पहुँचे हर व्यक्ति को कोरोना संक्रमित साबित किया, उसके चलते आज भी लोग कोरोना वायरस के नाम भयभीत हैं। सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा का आलम यह है कि जिनके पास भी धन है, वे निजी अस्पतालों में जाकर इलाज करा रहे हैं। यही वजह है कि कार्पोरेट अस्पताल उन्हें जमकर लूट रहे हैं। दिल्ली, एनसीआर (गुडग़ाँव, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद), मुम्बई, लखनऊ और अन्य बड़े शहरों के नामी कार्पोरेट अस्पतालों में पैसा वसूली का मामला सर्वविदित है। इन अस्पतालों में बेहतर इलाज के नाम पर मोटा पैसा वसूला जाता है; क्योंकि शासन-प्रशासन से जुड़े ऊँची पहुँच वाले लोगों का इन अस्पतालों में पैसा लगा है। हाल यह है कि इन अस्पतालों में मरीज़ों की मौत होने पर बिना पैसा वसूले शव तक परिजनों के सुपुर्द नहीं किये जाते। अगर कोई आसानी से पैसा नहीं देता या देने में असमर्थ होता है, तो उससे दबंगई से वसूली की जाती है।
देश के अस्पतालों में पहले ही डॉक्टरों की कमी है। कोरोना-काल में यह कमी और जगज़ाहिर हो गयी। ऐसे में कार्पोरेट अस्पताल वालों ने अन्य पैथियों के डॉक्टरों को भी कम पैसे पर मेडिकल अफ़सर नियुक्त कर रखे हैं। जाँच अधिकारी कार्पोरेट अस्पतालों में पड़ताल करते भी हैं, तो वे भी व्यवस्था का हिस्सा बनकर ओके (ठीक है) की रिपोर्ट तैयार कर देते हैं।
कार्पोरेट अस्पतालों में पहले कोरोना-काल में प्लाज्मा थैरेपी के नाम पर मरीज़ों को गुमराह करके लूटा गया। इसके बाद दूसरी लहर में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के नाम लूट मची। और अब टीकाकरण (वैक्सीनेशन) के नाम पर सरकारी और कार्पोरेट अस्पतालों सहित नर्सिंग होम वाले मरीज़ों को लूट रहे हैं, उनकी ज़िन्दगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।
गुडग़ाँव के चिरंजीवी अस्पताल में यही हुआ, जो पूरी तरह से अपराध है। ‘तहलका’ को चिरंजीवी अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अस्पाताल में चल रही धाँधली की शिकायत हरियाणा सरकार से लेकर ज़िला स्तर के सम्बन्धित अधिकारियों की कई बार की गयी; लेकिन ऊँची पहुँच के चलते कहीं कुछ नहीं हुआ। मगर इस बार टीकाकरण के नाम पर कथित ठगी का मामला सामने आया। यहाँ के एक निवासी ने इसकी शिकायत भी कर दी। मीडिया, सोशल मीडिया में भी अस्पताल की धाँधली की पोल खुल गयी। आख़िरकार ज़िला स्वास्थ्य विभाग ने झारसा स्थित चिंरजीवी अस्पताल के ख़िलाफ़ एफआरआई दर्ज करायी। उप सिविल सर्जन डॉक्टर एम.पी. सिंह ने पुलिस थाने में दी शिकायत में कहा है कि 30 अप्रैल तक स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पतालों को वैक्सीन स्टॉक (कोरोना टीका भण्डार) उपलब्ध कराया था। स्वास्थ्य विभाग ने एक आदेश जारी कहा था कि जिन निजी अस्पतालों के पास टीके बचे हैं, वो सरकारी अस्पताल में जमा करा दें। लेकिन चिरंजीवी अस्पताल में सरकारी आदेश का उल्लघंन किया गया और मनमर्ज़ी करते हुए 26 और 30 जून के बाद फिर 01 और 03 जुलाई को कोविन पोर्टल लाभार्थियों के लिए कम-से-कम 53 स्लॉट खोले। 03 जुलाई को स्वास्थ्य विभाग को एक टीका-लाभार्थी की शिकायत मिली, जिसने तथ्यों सहित शिकायत की और आरोप लगाया कि उक्त अस्पताल में कोविन पोर्टल पर वैक्सीन स्लॉट की उपलब्धता है। चौंकाने वाली बात यह है कि शिकायतकर्ता को भी यहाँ टीकाकरण के लिए कहा गया। इस मामले में स्वास्थ्य महकमा सकते में आया और मामला पुलिस को सौंपा गया। गुडग़ाँव में स्वास्थ्य सेवाएँ दे रहे वरिष्ठ डॉक्टर अनिल कुमार का कहना है कि यहाँ के निजी अस्पतालों में धाँधली की सारी हदें पार कर दी हैं। इसकी मूल वजह किसी के नाम अस्पताल की ज़मीन है, किसी के नाम अस्पताल का प्रबन्धन, तो किसी के नाम अस्पताल का लाइसेंस; जो किसी भी लापरवाही में बचने का सबसे सस्ता तरीक़ा है।
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि टीकाकरण के लिए अगर पैसे लेकर निजी अस्पताल वाले सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों को भेज रहे हैं या घपला कर रहे हैं, तो यह घिनौना काम है। इसमें सरकार को तुरन्त कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि चिरंजीवी अस्पताल का तो मामला खुल गया है; लेकिन देश के बड़े निजी अस्पतालों में यह काम सालोंसाल से चल रहा है। सरकार की कई मामलों लापरवाही इसकी वजह है। जैसे देश में झोलाछाप डॉक्टरों का नैक्सिस बड़ा आकार लेता जा रहा है। फिर भी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं हो रही है। गली-गली में नर्सिंग होम खुलते जा रहे हैं, जो सही मायने में नर्सिंग होम नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। ग़ैर-मेडिकल प्रोफेशनल वाले लोग पैसों के दम पर अस्पताल खुलवा रहे हैं। असल में इनका उद्देश्य मरीज़ों की सेवा नहीं, पैसा कमाना है। यही वजह है कि इन अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट मचती है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर कहते हैं कि कोरोना-काल में स्वास्थ्य सेवाएँ ध्वस्त हो गयी थीं। जब जनाक्रोश को सरकार ने भाँपा, तो उसने बाबा बनाम आयुर्वेद, एलोपैथ और न जाने क्या-क्या तमाशा किया। इसका मूल उद्देश्य जनता का ध्यान भटकाना था, ताकि जनता इन्हीं मामलों में उलझी रहे कि कौन-सी पैथी सही है, और कौन-सी कमज़ोर? जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल यह सोची-समझी साज़िश और सियासत का हिस्सा रही है, जिसके तहत देश में मौज़ूदा सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को जान-बूझकर तोड़ा गया; ताकि अस्पतालों के नाम पर कार्पोरेट घरानों की दुकानें चलती रहें।
डॉक्टर आलोक का कहना है कि मौज़ूदा व्यवस्था में टीकाकरण के नाम पर एक सियासी अखाड़ा बनता जा रहा है। जो काम डॉक्टरों का है, वह काम सियासी लोग चौराहे पर कर रहे हैं। जहाँ भी सियासत होगी, वहाँ पर अपने-पराये में भेद किया जाएगा, जो हो भी रहा है। इन दिनों कोरोना टीकों को लेकर अफ़रा-तफ़री का माहौल है। कई स्वास्थ्य संस्थानों में कोरोना टीके नहीं हैं, जिसके चलते चिरंजीवी जैसे कार्पोरेट अस्पताल सरकारी नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर सरकार को चूना लगा रहे हैं और मरीज़ों को ठग रहे हैं। डॉक्टर आलोक का कहना है कि अगर सरकार सही मायने में देश को एक स्वस्थ स्वास्थ्य व्यवस्था देना चाहती है, तो उसे स्वास्थ्य बजट बढ़ाने के साथ-साथ अस्पतालों का प्रबन्धन दुरुस्त करना होगा। देश के महानगरों से लेकर ज़िला स्तर के नामी अस्पतालों के काग़ज़ात देखेंगे, तो बहुत ही कम निजी अस्पताल ऐसे मिलेंगे, जो सारे दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हों। निजी अस्पताल वाले अपनी पहुँच के दम पर यह सोचते हैं कि अगर कोई जान चली भी जाती है या अस्पताल की कोई ख़ामी सामने आती है, तो भी उनको कोई दिक़्कत नहीं आएगी। वैसे भी मेडिकल से जुड़े लोगों पर बहुत ही कम क़ानूनी कार्रवाई होती है, जिसके चलते मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोग निर्भीकता से जाने-अनजाने में अपराध कर जाते हैं। ऐसे में सरकार को विदेशों की तर्ज पर मेडिकल के दौरान लापरवाही करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि किसी मरीज़ के साथ अन्याय न हो और इलाज में लापरवाही या अन्य कारणों से किसी मरीज़ की मौत न हो। डॉक्टर आलोक ने कहा कि कोरोना-काल के पूर्व और कोरोना-काल में किडनी, लीवर सहित अन्य अंगों के सौदेबाज़ी, तस्करी के मामले भी कथित तौर पर उभरे हैं। ऐसे मामलों में कोई ठोस क़ानूनी कार्रवाई न होने और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग अपनी राजनीतिक पहुँच के दम पर मनमानी कर रहे हैं और इसका ख़ामियाज़ा लाचार और बेबस मरीज़ों व उनके स्वजनों को भुगतना पड़ रहा है।