हरियाणा के हिसार ज़िले में नारनौंद के तहत पडऩे वाला गाँव राखीगढ़ी में ऐतिहासिक चीज़ें छिपी हैं। भारतीय पुरातत्त्व विभाग (एडीआई) की अब तक की खुदाई में मिले दस्तावेज़ और अन्य चीज़ें से संकेत मिलते हैं कि राखीगढ़ी हड़प्पा-काल का महानगर (मेट्रोपोलिटन शहर) हो सकता है।
पिछले वर्षों में हुई खुदाई में यहाँ काफ़ी महत्त्वपूर्व वस्तुएँ और कंकाल मिले हैं। इनके अध्ययन के आधार पर विशेषज्ञों और पुरातत्त्ववेत्ताओं का कहना है कि राखीगढ़ी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। कोरोना महामारी के बीच यहाँ खुदाई का काम बन्द किया गया था, जो इसी 30 जनवरी से टीला संख्या-1 में दोबारा शुरू हो गया है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि हड़प्पा-काल से राखीगढ़ी राष्ट्रीय विरासत के रूप में जोड़ा जा चुका है। वैज्ञानिकों का अनुसंधान इस ओर संकेत करता है कि राखीगढ़ी की खुदाई हमारी सभ्यता के 5000 साल पुराने इतिहास को एक नया मोड़ दे सकती है। चूँकि सिंधु घाटी की सभ्यता उस नदी के किनारे बसती थी, जो आज सूख चुकी है। यह सरस्वती नदी है।
सबसे पहले साल 1997-98 से सन् 2000 के बीच भारतीय पुरातत्त्व विभाग के उस समय महानिदेशक अमरनाथ की देखरेख में यहाँ खुदाई की गयी थी। अब पिछले दो साल में डेक्कन कॉलेज, पुणे की पुरातात्त्विक टीम इस पर रिसर्च कर रही है, जिसका नेतृत्व डॉ. वसंत शिंदे कर रहे हैं।
पुरातत्त्वविद् और इतिहासकार राखीगढ़ी से मिली चीज़ें को देखकर आश्चर्यचकित हैं कि मोहनजोदड़ो के बाद अब ये सिंधु घाटी की सभ्यता का स्थल है। बल्कि भारत के पुरातात्त्विक स्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है, जिससे कई अनसुलझे रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है। सन् 2015 में चार पूरे मानवीय कंकाल यहाँ खुदाई में मिले थे। इनमें दो पुरुष, एक महिला और एक बच्चे का था। ख़ुदार्इ करने वाली टीम को भरोसा था कि नवीनतम तकनीक से इन कंकालों का डीएनए इस बात को साबित करने में मददगार हो सकता है कि 4500 साल पहले हड़प्पा के लोग कैसे दिखायी देते थे।
पिछले दिनों राखीगढ़ी की यात्रा के दौरान इस लेखिका ने वहाँ कुछ टीलों को देखा और समझा। इस दौरान क्षेत्र के कुछ और जानकार और राखीगढ़ी पर रिसर्च करने वाले बलराम कुमार भी साथ रहे, जिन्होंने काफ़ी जानकारी उपलब्ध करवायी। सबसे पहले खुदाई के मुख्य स्थल टीला संख्या-1 की बात करते हैं। इसी टीले में भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तम्बू (टेंट) लगे हुए हैं। मुख्य गेट पर एक महिला कुर्सी पर बैठी थी, जो शायद निगरानी के लिए नियुक्त थी।
लेखिका को मिली जानकारी के मुताबिक, गाँव के लोग यहाँ बेरोकटोक आते जाते हैं, क्योंकि इसी टीले में श्मशान घाट भी है, जहाँ मृतकों के अन्तिम संस्कार होते हैं। यह श्मशान ख़ुदार्इ वाली जगह के बिल्कुल पास है। खुदाई वाली जगह प्लास्टिक की परतें दिखायी देती हैं। बलराम कुमार कहते हैं कि सुरक्षा की दृष्टि से यहाँ चहारदीवारी की गयी है। लेकिन जूतों के निशान हैं, जिनसे लगता है कि लोग यहाँ आते जाते रहते हैं। बलराम यह भी बताते हैं कि खुदाई के बाद उस स्थान को प्लास्टिक के साथ मिट्टी डालकर ढक देते हैं, ताकि प्राचीन ढाँचा ख़राब न हो। दूसरा तकनीकी कारण यह भी है कि प्लास्टिक होने से पता चल जाता है कि इस स्थान पर ख़ुदार्इ चल रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि राखीगढ़ी हड़प्पा-काल की सजीव सभ्यता (निरंतरता) कही जा सकती है। खुदाई के दौरान मिली कई ऐसी चीज़ें हैं, जिनमें आज की सभ्यता से काफ़ी कुछ मिलता-जुलता है। खुदाई के दौरान नरकंकाल, मिट्टी के वर्तन, ईंटें, क़ीमती पत्थर, आभूषण, मोहरें, सिक्के आदि मिले हैं। इसके अलावा छोड़ी सडक़ें और ढकी हुई नालियों के प्रमाण मिले हैं। मकानों के साथ संलग्न स्नानागार (अटैच्ड बाथरूम) तक मिले। वृत्ताकार (सर्कुलर) और आयताकार (रैक्टेंगुलर) मकानों के प्रमाण भी मिले हैं।
हड़प्पा-काल की सभ्यता को अगर लाइव माना जा रहा है, तो इसका कारण रिसर्चर यह मानते हैं कि मिट्टी के वर्तन रंगों से भी और आकार से भी काफ़ी साम्य रखते हैं। अगर बीच में कोई संस्कृति आयी होती, तो इनके रंगों में काफ़ी फ़र्क़ होता; लेकिन ऐसा है नहीं। खानपान, वास्तुकला (आर्किटेक्चर), रहन-सहन बदलना चाहिए था; लेकिन पूर्व हड़प्पा से लेकर बाद के हड़प्पा तक उसी की निरंतरता दृष्टिगोचर होती है।
राखी ख़ास और राखी शाहपुर को सामूहिक रूप से राखीगढ़ी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, यह स्थल दृषद्वती (घग्गर नदी) के दाहिने तट पर स्थित है। आरम्भ में सात टीले अर्थात् आरजीआर-1 से आरजीआर-7 तक पहचाने गये। हालाँकि हाल में विभिन्न संस्थाओं द्वारा किये गये सर्वेक्षण दो और टीलों आरजीआर-8 और आरजीआर-9 का सुझाव दिया गया है। यह पूरा स्थल लगभग 350 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े स्थल के रूप में पहचाना गया है। इस स्थल का उत्खनन भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा सन् 1997 से सन् 2000 तक लगातार तीन सत्रों में किया गया।
टीलों की कहानी
आरजीआर-1 वह टीला है जो पूर्व पश्चिम दिशा में फैला है और आसपास के मैदानों से छ: मीटर ऊँचा है। यह राखी शाहपुर और राखी ख़ास गाँवों के उत्तरी छोर पर स्थित है। इसका आकार अंडाकार है। इस टीले की खुदाई से परिपक्व हड़प्पा-कालीन अधबने मकानों (कार्नेलियन, अगेट, चैल्सीडोनी, जैस्पर) के साथ एक मनके बनाने की कार्यशाला के प्रमाण भी मिले हैं।
आरजीआर-2 यानी टीला संख्या-2 एक गढ़टीला (सिटेडल) प्रतीत होता है, जो कि ऊँचाई में लगभग 14 मीटर है। यह टीला संख्या-1 दक्षिण पश्चिम में स्थित है। यह आकार में समलम्ब (ट्रेपोजायड) है। उत्खनन में टीले की दक्षिण पश्चिमी ढलान की और एक प्रवेशद्वार के साथ परिपक्व हड़प्पा-काल की एक सुरक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं। इसके अलावा खुदाई के दौरान टीले से सुरक्षा चौकी होने के प्रमाण भी मिले हैं। आरजीआर-3 टीला संख्या-2 के पूर्व में स्थित है। यह आकार में अंडाकार और आसपास के मैदानों से 12 मीटर ऊँचा है। आरजीआर-4 और टीला संख्या-5 की बात करें, तो आरजीआर-2 का दक्षिणी भाग टीला संख्या-4 टीला संख्या-5 के साथ सम्मिलित (इंटरलॉक) प्रतीत होता है। आधुनिक गाँव राखी शाहपुर और राखी ख़ास इन्हीं टीलों पर स्थित हैं।
इन टीलों को परिपक्व हड़प्पा-काल की उत्तर दक्षिण दिशा में उन्मुख मार्गों और चबूतरों के संरचनात्मक प्रमाण मिले हैं। हड्डियों से पूर्ण या अर्धनिर्मित हड्डी के जोड़ (बॉन जायंट्स), कंघी, सुई, नक़्क़ाश (इनग्रेवर) के रूप में हड्डी शिल्प और हाथीदाँत शिल्प गतिविधियों के साक्ष्य टीला संख्या-5 से मिले हैं।
आरजीआर-6 टीला संख्या-1 के पूर्व में स्थित है। टीले की ऊँचाई लगभग पाँच मीटर है। इस टीले की ख़ुदार्इ से धूप में सुखायी ईंटों से बने प्रारम्भिक हड़प्पाकालीन गृह परिसरों के साक्ष्य मिले हैं। आरजीआर-7 टीला संख्या-1 के 200 मीटर उत्तर में स्थित है। इसकी खुदाई से क़ब्रिस्तान के प्रमाण मिले हैं। इसके उत्तर-दक्षिण की और 11 शवाधानों के साथ कक्ष में रखे जानी वाली विभिन्न सामग्रियों के प्रमाण मिले हैं। आरजीआर-8 और 9 टीले लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में स्थित हैं। ये मुख्य स्थल से पूर्व और पश्चिम दिशा में स्थित हैं।
पैरट वॉल
हालाँकि टीला संख्या-1 के चारों तरफ़ चहारदीवारी की गयी है। लेकिन जिस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का हिस्सा होने के दावे किये जा रहे हैं, उस लिहाज़ से वहाँ सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद नहीं है। जानकार राखीगढ़ी को एशिया का महत्त्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं। टीला संख्या-4 की पैरट वॉल (दीवार) तो बिल्कुल ही असुरक्षित है। लोग यहाँ से मिट्टी तक खोदकर ले जाते हैं।
यहाँ से निकलने वाले गाँव के कुछ बाशिंदों से इस दीवार के बारे में पूछा गया, तो किसी ने कहा कि पता नहीं, यह पहाड़-सा है। तो किसी ने मुस्कुराकर मुँह फेरा और चलता बना। जो कुछ पर्यटक राखीगढ़ी देखने आते हैं, वे इस दीवार के साथ सेल्फी लेना नहीं भूलते। कहा जा सकता है पैरट वॉल यहाँ का सेल्फी प्वाइंट बन गया है। पुरातत्त्व अध्ययन वाले जानकार 5000 साल पुरानी दीवार को इंग्लिश बॉन्ड भी कहते हैं। शोधकर्ता बलराम कुमार बताते हैं कि इस दीवार में 64 परतें हैं, जो दबी हुई सभ्यताओं की कहानी समेटे हैं।
हिसार क्यों है ख़ास?
राखीगढ़ी हिसार ज़िले में आता है। हिसार फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है- क़िला या घेरा होता है। हिसार भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-9 पर दिल्ली से 164 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। फ़िरोज़शाह तुगलक ने सन् 1354 में हिसार नगर की स्थापना की। उसने इस नये नगर हिसार-ए-फ़िरोज़ा को महलों, मस्जिदों, बग़ीचों, नहरों और अन्य इमारतों से सज़ाया था। भौगोलिक स्थिति के अनुसार, यहाँ मौसम ज़्यादातर गर्म और सूखा रहता है। राखीगढ़ी हिसार शहर के उत्तर पश्चिम में 57 किलोमीटर की दूरी पर है। यह गाँव घग्गर-हकरा नदी क्षेत्र में स्थित है, जो कि मौसमी घग्गर नदी से 27 किलोमीटर दूर है।