भारी आयात की वजह से भारत में विदेशी मुद्रा की कमी का संकट हमेशा से बना रहा है. खास तौर पर आजादी के शुरुआती दशकों में तो यह संकट काफी गहरा था. तब हमें बड़े पैमाने पर खाद्यान्न भी आयात करना पड़ता था. इसके चलते अर्थव्यवस्था विदेशी ऋण पर निर्भर रहती थी. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी हज नोट इसी दौर की घटना है.
1958-59 के आस-पास विदेशी मुद्रा संकट इतना गहरा गया था कि सरकार ने विदेश जाने वाले लोगों को विदेशी मुद्रा ले जाने की अधिकतम सीमा काफी घटा दी थी. इसका असर हज यात्रियों पर भी पड़ा. सरकार ने न सिर्फ उनकी संख्या में कटौती कर दी बल्कि विदेशी मुद्रा ले जाने की सीमा भी कम कर दी. सरकार का यह फैसला देश में असंतोष का कारण तो बना ही मुस्लिम बहुल देशों में भी इसकी काफी चर्चा हुई. इस दौरान सऊदी अरब ने भारत सरकार के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि हज यात्री भारतीय रुपया लेकर वहां जाते हैं तो वहां के बैंक उसे स्वीकार करेंगे. लेकिन भारत सरकार के सामने दिक्कत यह थी कि इस व्यवस्था का दुरुपयोग काला धन बाहर भेजने के लिए हो सकता था और इसमें कई दूसरी जटिलताएं भी थीं. ऐसे में रिजर्व बैंक ने सरकार के सामने प्रस्ताव रखा कि वह हज यात्रियों के लिए विशेष रुपये जारी करेगा. सरकार ने इसके लिए अनुमति दे दी और 1958 में पहली बार हज नोट छापे गए. इन नोटों में HAJ लिखा गया था और नोट संख्या HA से शुरू होती थी. इसके बाद सरकार ने हज यात्रियों को विदेशी मुद्रा के बदले यही नोट दिए और यात्रियों की संख्या की सीमा भी बढ़ा दी गई. हालांकि यह व्यवस्था अगले एक साल और जारी रही और उसके बाद बंद कर दी गई. इस समय तक रिजर्व बैंक खाड़ी देशों के लिए भी अलग से मुद्रा छापने लगा था. इन्हें फारसी रुपया कहा जाता था. बाद में खाड़ी देशों के बीच इन रुपयों का लेन-देन होने से हज नोटों की छपाई बंद कर दी गई.