विशाल-शेखर ने नई धुनें और नए गाने बनाना लगभग बंद कर दिया है. विशाल शेखर संगीत प्राइवेट लिमिटेड में अब नए गिफ्ट रैप में पुराना सामान ही मिलता है. आपको भी पता है, यह उस युग की बात है जिसमें सामान से महंगा गिफ्ट रैप बिकता है. एक ने दूसरे दिन कहा, लोग अब घरों में रहते नहीं हैं, कहीं ठहरते नहीं हैं, इसलिए गानों में भी ठहराव रहा नहीं. गाने भी जल्दी में हैं, आपके साथ वे भी जल्दी-जल्दी शादियों और पबों में पहुंचना चाहते हैं. ‘हंसी तो फंसी’ में बैंड-बाजे वाले शुरुआती तीन गाने इसी जल्दी के गीत हैं. ये गाने करण जौहर की ही ‘गोरी तेरे प्यार में’ भी हो सकते थे, ‘ये जवानी है दिवानी में’ भी, और अगर बच जाते तो आने वाली ‘टू स्टेट्स’ में भी. ‘पंजाबी वेडिंग सांग’ और ‘शेक इट लाइक शम्मी’ के लिए अमिताभ भी सूत भर मेहनत नहीं करते, नहीं तो वे अक्सर खराब और सामान्य गीतों को जिंदा रहने लायक बनाते रहे हैं. ‘ड्रामा क्वीन’ को भी उनके लिखे ‘बड़ी-बड़ी आंखें हैं, आंसुओं की टंकी है’ की वजह से ही एक बार सुनने वाला जीवनकाल मिल पाता है. बाकी बचे तीन गीत मेलोडी की सेफ जेब्रा क्रॉसिंग वाले हैं. उसमें भी शफकत का ‘मनचला’ विशाल-शेखर के पुराने शफकत वाले गीतों जैसा ही हो कर साधारण हो जाता है.
आखिरी दो गीत बढ़िया हैं. नए नहीं. ‘इश्क बुलावा’ पुराने वक्त की नजाकत को सनम पुरी की आवाज में प्यारा बनाता है, और वक्त का हिसाब लगाने की क्रिया रोकता है. ‘तितली’ वाली चिन्मयी ‘जहनसीब’ बेहद कमाल गाती हैं और शेखर भी काफी वक्त बाद बढ़िया. इसी गाने को सुनकर लगता है कि संगीतकार विशाल-शेखर लौटेंगे जरूर. देर-सवेर सही.