पुणे-अहमदनगर हाइवे पर है छोटा सा गांव भीमा कोरेगांव। नए वर्ष का पहला दिन 1 जनवरी 2018 यहां के 75 फुट ऊंचे विजयस्तंभ को सलामी देने महाराष्ट्र भर के दलित पहुंच चुके थे। तिल भर की जगह नहीं थी। लोग अनुशासन, आदर से विजय स्तंभ को सलामी देकर भीड़ में विलीन हो रहे थे। इस दफा भीड़ हमेशा से अधिक थी। क्योंकि इस भीमा कोरेगांव के जय स्तंभ के इतिहास को 200 साल पूरे हो रहे थे। पिछले दस-पंद्रह साल से हम लोग आते रहे हैं, लेकिन पहली दफा हमने गौर किया कि इस गांव को और इस ओर आनेवाले रास्तों की दुकानें बंद थी, गांववालों का रवैया बिलकुल अलग था। सुबह 11 बजे के करीब हम लोगों ने भीमा नदी के पार धुंआ उठता देखा। बाद में लोग दौड़ते-दौड़ते आए और बताने लगे कि जहां गाडिय़ा पार्क थी उनमें आग लगा दी गई और पत्थरबाजी हो रही है। हम सब उस ओर दौड़। देखते-देखते वातावरण बदल गया तनावग्रस्त हो गया। हमने इस बारे में पुलिस को भी इत्तला की लेकिन उनकी भूमिका पर अचरज होता है। कहते हैं कि विलास साठ्ये जो भारत मुक्ति मोर्चा से जुड़े हैं। मुंबई से गए अशोक गज्जेटी भारिप के कार्यकर्ता बताते हैं, ‘हम लोग वहां से बडु बुद्रुक गांव की तरफ जाने लगे। स्थिति और भी खतरनाक हो गई थी कई नौजवान गाडिय़ां जला रहे थे। दौड़ रहे थे, पत्थर फेंक रहे थे। ऊंचे मकानों की छतों से। बाइक जल रही थी। गाडिय़ों के कांच बिखरे पड़े थे…. एक बड़ा मॉब हमारी तरफ आता दिख रहा था। भगवा झंडा उनके पास था, जय शिवाजी, जय भवानी के वे नारे लगा रहे थे, भगदड़ मच गया था चारों तरफ यही तस्वीर भीमा कोरेगांव को जोडऩेवाले अन्य रास्तों पर थी। अहमदनगर की ओर जानेवाली सड़क पर स्थिति सणसवाड़ी गांव में भी गाडिय़ां चल रही थी, पथराव हो रहा था। भीमा कोरेगाव, वडु बुद्रूक और सणसवाड़ी तीनों गांव अब हिंसा की चपेट में थे। इस बीच एक युवक की मौत की खबर ने इसे और तनावग्रस्त बना दिया।
भारिप के प्रकाश आंबेडकर का आरोप है कि एक तारीख को जो कुछ हुआ वह पूर्व नियोजित था। हालांकि 31 दिसंबर एक दिन पहले जब हमें पता चला कि कुछ लोग एक जनवरी के कार्यक्रम के खिलाफ मन बना रहे हैं तो हमने वहां के स्थानीय लोगों से संगठनों से बातचीत की और सौहाद्र बनाए रखने की अपील की उन लोगों ने भी हमारी बातों को गंभीरता से लिया और आश्वासन दिया कि कोई गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन कुछ अवांछित तत्वों ने हिंदुत्व के नाम पर रोटी सेंकने वालों ने बवंडर फैलाया।
‘एक है संभाजी भिडे, सांगली में उनका ‘शिव प्रतिष्ठानÓ नामक हिंदुत्ववादी संगठन है और दूसरा है पुणे का मिलिंद एकबोटे जिसका संगठन है ‘समस्त हिंदू आघाड़ीÓ। गुरुजी के नाम से जाने जाने वाले संभाजी भिड़े ने इस इलाके के लोगों को मुख्य रूप से नवयुवकों का ब्रेन वाश किया… उन्हें इतिहास तोड़-मरोड़कर पिलाया। जहर भरा। जिसका असर एक जनवरी को दिखाई दिया… उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ हैं लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई है। हमारी मांग है उन पर मुकदमा चले, सजा मिले। कहते हैं प्रकाश आंबेडकर।
दरअसल देखा जाए तो एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हुए फसाद और उसके प्रतिउत्तर में दिन ‘महाराष्ट्र बंद और तोडफ़ोड़ की घटना के पीछे बुडु बुद्रुक गांव में कुछ समय पहले से तेजी से घटित हो रही सामाजिक तानेबाने की चूलें हिला देनेवाली और इतिहास के साथ छेड़छाड़ करनेवाली घटनाएं हैं। भीमा कोरेगांव से पांच किलोमीटर की दूरी पर बसे वडु गांव का इतिहास से नाता है। यहां पर संभाजी राजा की समाधि है। औरंगजेब ने छल-कपट से संभाजी को गिरफ्तार किया और मौत की सजा दी, लेकिन यह मौत की सजा बड़ी क्रूर थी। 11 मार्च
1689के दिन उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर इस गांव में डाल दिए थे। साथ में फरमान जारी कर दिया कि जो उनके शरीर को छुएगा उसका सिर कलम कर दिया जाएगा। इसी गांव के गोविंद गोपाल महार नामक व्यक्ति ने उनके छिन्न-भिन्न शरीर के टुकड़ों को एकत्रित किया और उनका अंतिम संस्कार किया। संभाजी के साथ कवि कलश का भी अंतिम संस्कार किया। गाविंद गोपाल महार की समाधि राजा संभाजी की समाधि से कुछ दूरी पर है।
एक जनवरी को भीमा कोरेगांव आकर जयस्तंभ को सलामी देनेवाले बौद्ध आंबेडकर अनुयायी वडु गांव जाकर संभाजी राजे और गोविंद गोपाल महार की समाधि के दर्शन भी करते हैं। कुछ लोगों ने गोविंद गोपाल महार की समाधि के पास चौथरे का निर्माण किया एक छत्री भी लगा दी थी साथ ही एक फ्लैक्स बैनर भी जिसमें गोविन्द महार के बारे में जानकारी दी गई थी।। एक जनवरी 2018 के तीन दिन पहले 29 दिसंबर 2017को गोविंद महार की समाधि को खंडित कर तोडफ़ोड़ की कोशिश की गई। जिसके चलते गांव में तनाव निर्माण हो गया। इस मामले में गांव के 49 युवकों के खिलाफ एट्रोसिटी के अंतर्गत मामला दायर किया गया। सूत्रों के अनुसार इस मामले को यह कहकर प्रचारित किया गया कि एट्रोसिटी के तहत मराठों को निशाना बनाया गया। हालांकि इन युवकों में मराठों के साथ ओबीसी व अन्य समाज के युवक भी हैं। वडु के अलावा आस पास के गांव में भी लोगों को एट्रोसिटी के नाम पर भड़काया गया जिसकी परिणति एक जनवरी के दिन जय स्तंभ को सलामी देने आए लोगों पर पत्थरबाजी और उनकी गाडिय़ों से आगजनी की गई।
29 दिसंबर 2017 के पहले से वडु गांव में इतिहास के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही थीं। यहां पर प्रचारित किया जा रहा था कि संभाजी महाराज के मृतदेह के टुकड़ों का जमा कर अंतिम संस्कार गोविंद गोपाल महार ने नहीं बल्कि गांव के शिवले देशमुख मराठा ने किया। उनके अनुसार वह लोग मूलतरू शिर्वेहृ थे। उनके वंशजों ने राजा संभाजी के छिन्न-भिन्न देह के टुकड़ों की अच्छी तरह से सिलकर उनका अंतिम संस्कार किया जिसके चलते वह शिवले देशमुख हो गए। हालांकि उनके इस दावे का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। गोविंद गोपाल महार का उल्लेख कई इतिहासकारों ने अपने संशोधन में किया है। इतिहासकार बीसी बेंद्रे के तथ्यों के आधार पर संभाजी महाराज की समाधी से लगे बोर्ड पर गोविंद गोपाल महार के कार्य का उल्लेख किया है। लेकिन दो साल पहले पुराने बोर्ड को हटा कर नया बोर्ड लगाया गया है जिससे गोविंद गोपाल महार की जगह ‘शिवले ग्रामस्थÓ लिखा गया है। आरोप है संभाजी महाराज स्मृति समिति ने संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के इशारे पर किया गया हालांकि भिडे इस बात को तथ्यहीन बताते हैं। इस कांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि यदि वह दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें कानूनन सजा दी जाए।