अगर अभी से प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले समय में इतना प्रदूषण बढ़ जाएगा कि अगले पाँच दशक यानी आधी शताब्दी में बीमारियों की संख्या दोगुनी हो सकती है। वैसे गौर करने वाली बात है कि इस साल कोरोना महामारी ने दस्तक दी, जिसके चलते बीमार लोगों की संख्या बढऩे के साथ-साथ कोरोना के अलावा दूसरी बीमारियों से मरने वालों की संख्या पिछले वर्षों से काफी ज़्यादा रही है। हालाँकि इस बात के पुष्ट आँकड़े अभी आने बाकी हैं, लेकिन एक अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया में सभी बीमारियों से डेढ़ करोड़ के करीब लोगों की मौत की सम्भावना जतायी गयी है।
आने वाले समय में भयंकर त्रासदियों से बचने का एक ही उपाय है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग प्रकृति से बिना छेड़छाड़ के करें और जितना सम्भव हो सके जलने वाले ईंधनों का कम-से-कम उपयोग करें। हालाँकि भारत ने इस दिशा में काफी पहले कदम बढ़ा दिये हैं, लेकिन इसकी रफ्तार अभी बहुत धीमी है।
हाल ही में 14 से 16 अक्टूबर, 2020 के बीच अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबन्धन (आईएसए) का तीसरा वर्चुअल सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें आईएसए के 34 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने, जबकि उपस्थिति के रूप में 53 सदस्य देशों और 5 हस्ताक्षरकर्ता एवं भावी सदस्य देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में दो साल के कार्यकाल के लिए भारत को आईएसए का अध्यक्ष और फ्रांस को सह-अध्यक्ष फिर से चुना गया है। आईएसए के चार क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चार नये उपाध्यक्ष- एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए फिजी एवं नाउरू, अफ्रीका के लिए मॉरीशस एवं नाइजर, यूरोप एवं अन्य क्षेत्र के लिए ब्रिटेन, नीदरलैंड, लैटिन, अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र के लिए क्यूबा एवं गुयाना के प्रतिनिधियों को बनाया गया।
इस सम्मेलन में कोएलिशन फॉर सस्टेनेबल क्लाइमेट एक्शन (सीएससीए) के ज़रिये निजी एवं सार्वजनिक कॉर्पोरेट क्षेत्र के साथ आईएसए की भागीदारी को संस्थागत बनाने में आईएसए सचिवालय की पहल को भी मंज़ूरी दी गयी। सम्मेलन के दौरान भारत के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में से प्रत्येक ने आईएसए को 10 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 739.1 लाख रुपये) का चेक दिया।
सम्मेलन के समापन के दौरान आईएसए सम्मेलन के अध्यक्ष, भारत के ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने कहा कि सौर ऊर्जा वैश्विक बिजली में लगभग 2.8 फीसदी योगदान पहले से ही कर रही है। अगर यह जारी रहा, तो 2030 तक सौर ऊर्जा दुनिया के एक बड़े हिस्से में बिजली उत्पादन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन जाएगी।
उन्होंने बताया कि आईएसए के पास अपने सम्बन्धित कार्यक्रमों के तहत 22 देशों में 2 लाख 70 हज़ार से अधिक सौर पम्पों, 11 देशों में एक गीगावॉट से अधिक सोलर रूफटॉप और 9 देशों में 10 गीगावॉट से अधिक सोलर मिनी-ग्रिडों की माँग है। हाल में आईएसए ने 47 मिलियन (470 लाख) होम पॉवर सिस्टम की माँग को पूरा करने के लिए कार्यक्रम शुरू किये हैं। फ्रांस ने अपनी भागीदारी को दोहराते हुए कहा है कि प्रतिबद्ध 2022 तक आईएसए सदस्य देशों में सौर परियोजनाओं के लिए 1.5 अरब यूरो के वित्त पोषण और इसमें 1.15 अरब यूरो ठोस परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध है। वर्ष 2020 में आईएसए सचिवालय ने संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ) के साथ मिलकर काम करते हुए आईएस सोलर टेक्नोलॉजी एंड एप्लिकेशन रिसोर्स सेंटर (आईएसए स्टार सी) नेटवर्क के संचालन पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके अलावा 25 से 27 फरवरी, 2020 तक पेरिस में आईएसए स्टार सी परियोजना के विकास पर एक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसकी मेजबानी फ्रांस सरकार द्वारा की गयी। आईएसए को 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करने वाला एक प्रमुख संगठन माना जाता है।
इससे पहले 2019 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन यानी इंटरनेशनल सोलर एलांयस (आईएसए) की आभासी बैठक हुई थी, जिसमें भारत को इसका अध्यक्ष और फ्रांस को सह-अध्यक्ष चुना गया था। भारत की यह ज़िम्मेदारी अब और बढ़ गयी है।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत का योगदान
इस समय वैश्विक स्तर पर विद्युतीकरण में सौर ऊर्जा का योगदान करीब 2.8 फीसदी है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक भारत में इसका योगदान यानी सौर ऊर्जा का उत्पादन और इस्तेमाल कम-से-कम 40 फीसदी तक हो। वहीं आईएसए का लक्ष्य है कि 2030 तक एक ट्रिलियन वॉट (1000 गीगावॉट) सौर ऊर्जा उत्पादन किया जाए। लेकिन इसके लिए भारत और दूसरे सदस्य देशों को इस दिशा में और अधिक गति से काम करना पड़ेगा। इस दिशा में जितने देश आजकल काम कर रहे हैं, उन्हें भी भारत का इसमें सहयोग करना पड़ेगा। अगर ऐसा हो सका, तो बहुत कम कीमत पर लोगों को ऊर्जा मिलने लगेगी और साथ ही सौर ऊर्जा दुनिया के बड़े हिस्से में बिजली उत्पादन के लिए ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन जाएगा।
फिलहाल सौर ऊर्जा से प्रकाश, सिंचाई और पीने के पानी जैसे छ: कार्यक्रम और दो परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं। इसे देखते हुए पिछले दिनों आईएसए के 22 सदस्य देशों द्वारा 2,70,000 से अधिक सोल पम्पों की माँग की जा चुकी है, जिसमें लगातार इज़ाफा हो रहा है। इनमें 11 देशों में एक गीगावॉट से अधिक सोलर रूफटॉप और 9 देशों में 10 गीगावाट से अधिक सोलर मिनी-ग्रिडों की माँग की गयी है। 2019 में आईएसए ने 47 मिलियन (470 लाख) होम पॉवर सिस्टम (गृह ऊर्जा प्रणाली) के लिए कार्यक्रम शुरू किये हैं। इस योजना से भारत के अलावा सौर ऊर्जा में रुचि लेने वाले सभी देशों के ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकेगा। 2019 की आईएसए की बैठक में सदस्य देशों ने जलवायु परिवर्तन से लडऩे के लिए यूनाइटेड किंगडम की उस प्रतिबद्धता को याद किया, जिसमें उसने अगले पाँच वर्षों में कोयले के प्रयोग को समाप्त करके 2050 तक सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य स्तर पर लाने की योजना बनायी है। इसके अलावा सीओपी-26 के दौरान एलायंस / गठबन्धन के लिए एक मंच प्रदान करना, विश्व सौर बैंक के कार्यान्वयन को लेकर व्यवहार्यता-अध्ययन का समर्थन करना, मानव और वित्तीय पम्प आदि प्रदान करके वन सन, वन वल्र्ड, वन ग्रिड की पहल के लिए आईएसए सचिवालय की सहायता करना आदि इसमें शामिल हैं।
फ्रांस की भागीदारी
आईएसए में भागीदारी के रूप में 2022 तक फ्रांस की एक सह-अध्यक्ष के रूप में शामिल है और सदस्य देशों में सौर परियोजनाओं के लिए 1.5 बिलियन (150 करोड़) यूरो की आर्थिक मदद के लिए प्रतिबद्ध है, जिनमें से ठोस रूप में 1.15 बिलियन (115 करोड़) यूरो को वित्त परियोजनाओं पर खर्च किये जाने की योजना है। इसके अलावा फ्रांस ने विश्व बैंक के साथ वित्त पोषण में सहयोग करने के लिए भी समर्थन दिया है। इसके अलावा फ्रांस और यूरोपीय संघ के समर्थन से शुरू सतत् नवीकरणीय जोखिम न्यूनीकरण पहल की शुरुआत की गयी है। यह योजना मोजाम्बिक में लॉन्च की गयी है। माना जा रहा है कि इस योजना से 10 से अधिक गीगावॉट वाली सौर परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए निजी निवेश के माध्यम से 18 बिलियन (180 करोड़) यूरो जुटाने में मदद मिलेगी; जिसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
इसके अलावा आईएसए के स्टार-सी कार्यक्रम- फ्रेंच नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी के तहत फ्रांस प्रशांत महासागर के छोटे द्वीप राज्यों को एक विशेष कार्यक्रम के ज़रिये सौर ऊर्जा से जोडऩे की कोशिश में है।
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के सम्भावित क्षेत्र
वैसे तो भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए तकरीबन सभी क्षेत्र उपयोगी हैं, लेकिन पहाड़ी, बर्फीले और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सौर पैनल उतना काम नहीं कर सकते, जितना कि दूसरे क्षेत्रों में। इस लिहाज़ से सौर ऊर्जा उत्पदान के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मद्रास, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्य काफी अनुकूल हैं। लेकिन शहरों में घरों की छतों पर सौर पैनल लगाये जा सकते हैं, जबकि देहात क्षेत्र में कृषि भूमि पर इन्हें बहुतायत में नहीं लगाया जा सकता। इसलिए सरकार को सौर पैनल लगाने के लिए बंजर, रेतीली और पथरीली भूमि की तलाश करनी होगी, जहाँ अधिक-से-अधिक सौर पैनल लगाकर बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पादन किया जा सकता हो। इसके दो फायदे होंगे, पहला यह कि बेकार पड़ी भूमि सौर ऊर्जा उत्पादन के काम आ जाएगी और दूसरी भारत ग्रामीण इलाकों में जहाँ अभी भी विद्युत आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती, वहाँ लोगों को इसका बेहतर लाभ मिल सकेगा। क्योंकि यह एक सस्ता ऊर्जा स्रोत है, इसलिए इसका इस्तेमाल देश की अधिकतर जनसंख्या सस्ते में आराम से कर सकेगी।
आईएसए का महत्त्व
वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रदूषण और ओजोन परत में बढ़ते छेद से वैज्ञानिकों, समाजविदों और समाजसेवी संगठनों में बढ़ती चिन्ता का एक बेहतर समाधान सौर ऊर्जा है। ऐसे में आईएसए की पहल से न केवल हरित क्रान्ति को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि लोगों की अनेक शारीरिक, मानसिक समस्याओं का समाधान होगा। अब पूरे विश्व में अधिक ठंडक और अधिक गर्मी से बचने के लिए भी सौर ऊर्जा की माँग बढ़ रही है। ऐसे में गर्म और ठंडे स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से सौर विकिरण (सूर्य की किरणों) का इस्तेमाल करने और उसका सही इस्तेमाल करने की काफी गुंजाइश है।
हाल ही में 4 करोड़ 7 लाख सोलर होम सिस्टम और अगस्त, 2020 में आईएसए सदस्य देशों के बीच 25 करोड़ एलईडी लैंप वितरित करके आईएसए ने सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी पहल की है।
अब वैश्विक स्तर पर आईएसए को 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करने वाला एक प्रमुख संगठन माना जाता है। बता दें कि आईएसए का पहला सम्मेलन 2 से 5 अक्टूबर, 2018 को ग्रेटर नोएडा (एनसीआर क्षेत्र, भारत) में आयोजित किया गया था। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने किया था। वहीं आईएसए का दूसरा सम्मेलन 30 अक्टूबर, 2019 से 01 नवंबर, 2019 के बीच नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें 78 देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में आईएसए ने स्टार-सी परियोजना की शुरुआत की, जिसमें इस परियोजना के परिचालन ढाँचे एवं परियोजना दस्तावेज़ को विकसित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के साथ मिलकर कार्य करने की बात कही गयी है। अब इस संगठन का तीसरा सम्मेलन वर्चुअल (आभासी) तरीके से 14 से 16 अक्टूबर, 2020 को हुआ है।
केंद्र सरकार का सौर ऊर्जा मिशन
केंद्र सरकार का राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक बेहतरीन कदम है। इसका उद्देश्य ऊर्जा विकल्पों के साथ सौर ऊर्जा को प्रतिस्पर्धी बनाना, बिजली सृजन करना और दीर्घकालिक नीति, बड़े स्तर पर परिनियोजन लक्ष्यों, महत्त्वाकांक्षी अनुसंधान एवं विकास तथा महत्त्वपूर्ण कच्चे माल, अवयवों तथा उत्पादों के घरेलू उत्पादन के माध्यम से देश में सौर ऊर्जा सृजन की लागत को कम करना है। केंद्र सरकार ने देश की फोटोवोल्टिक क्षमता को बढ़ाने के लिए सोलर पैनल निर्माण उद्योग को 210 अरब रुपये की सरकारी सहायता देने की योजना बनायी है।
सरकार ने प्रयास (क्कक्र्रङ्घ्रस् – क्कह्म्ड्डस्रद्धड्डठ्ठ रूड्डठ्ठह्लह्म्द्ब ङ्घशद्भड्डठ्ठड्ड द्घशह्म् ्रह्वद्दद्वद्गठ्ठह्लद्बठ्ठद्द स्शद्यड्डह्म् रूड्डठ्ठह्वद्घड्डष्ह्लह्वह्म्द्बठ्ठद्द) नामक इस योजना के तहत 2030 तक कुल ऊर्जा का 40 फीसदी हरित ऊर्जा से उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है। इसी प्रकार केंद्र सरकार ने किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महा-अभियान (कुसुम) योजना के तहत बिजली संकट से जूझ रहे इलाकों में सौर ऊर्जा पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। कुसुम योजना के तहत देश भर में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी डीज़ल/बिजली के पम्प को सोलर ऊर्जा से चलाने की योजना है। कुसुम योजना का ऐलान आम बजट 2018-19 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किया था। इस योजना के तहत 2022 तक देश में तीन करोड़ सिंचाई पम्प को बिजली या डीज़ल की जगह सौर ऊर्जा से चलाने की कोशिश की जा रही है। माना जा रहा है कि कुसुम योजना पर करीब 1.40 लाख करोड़ रुपये की लागत आयेगी। इस योजना के तहत कुल खर्च में से 48 हज़ार करोड़ रुपये का योगदान केंद्र सरकार करेगी, जबकि इतनी ही राशि राज्य सरकार देगी। इस योजना का लाभ लेने वाले किसानों को सोलर पम्प की लागत का केवल 10 फीसदी वहन करना होगा।
भारत में बढ़ेंगे ई-वाहन घट सकते हैं पेट्रोल पम्प
जबसे देश में सीएनजी का उपयोग बढ़ा है, तबसे पेट्रोल की गाडिय़ों की संख्या घटी है। अब देश में ई-वाहनों (इलेक्ट्रिक वाहनों) की संख्या लगातार बढ़ रही है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार फेम कार्यक्रम को मंज़ूरी दे चुकी है। भारतीय शहरों में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक हो। 2030 तक सरकार की योजना व्यक्ति परिवहन के लिए इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की संख्या भी 40 फीसदी तक पहुँचाने की है। विदित हो कि आज विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत के हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में 33 से 35 फीसदी कम करने की प्रतिबद्धता जतायी है। अगर ई-वाहनों की संख्या भारत में तेज़ी से बढती है, तो ज़ाहिर तौर पर पेट्रोल पम्पों की संख्या घटेगी। लेकिन ऐसा करना आसान भी नहीं होगा; क्योंकि बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ डीज़ल-पेट्रोल के धन्धे में उतरी हुई हैं। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार भी भारत में पेट्रोल की बिक्री पर मोटा कर (टैक्स) वसूलती है। ऐसे में अगर पेट्रोल पम्पों की संख्या घटती है, तो सरकार के खाते में टैक्स के नाम पर जाने वाली एक मोटी राशि कम होगी, जिसे सरकारी बजट के घाटे के तौर पर देखा जा सकता है। इसके अलावा पेट्रोल पम्प चलाने वाले लोगों का काम बन्द होगा, जिससे देश में इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के अलावा लाखों लोग बेरोज़गार होंगे। क्या पेट्रोल का धन्धा करने वाली कम्पनियाँ, पेट्रोल के धन्धे से जुड़े लोग और सरकार यह घाटा सहने के लिए तैयार बैठे हैं? क्योंकि ई-वाहनों के लिए अगर कहीं केंद्र खोले भी जाएँगे, तो न तो उनकी आमदनी इतनी हो सकेगी और न ही उन पर काम करने वालों की संख्या इतनी होगी, जितनी कि एक पेट्रोल पम्प पर होती है।