इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी (आईएनएस) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के सरकार और पीएसयू के मीडिया को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर दो साल तक प्रतिबन्ध लगाने के सुझाव की निन्दा की है। आईएनएस के सदस्यों के समस्त समुदाय की ओर से सोसायटी के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने एक बयान में इस पर असहमति जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के सुझाव की निंदा की है। आईएनएस प्रमुख ने कहा कि सोनिया गाँधी का प्रस्ताव वित्तीय सेंसरशिप जैसा है। वे जीवंत और स्वतंत्र प्रेस के हित में यह सुझाव वापस लें। आईएनएस के बयान में कहा गया है कि जहाँ तक इस सरकारी खर्च का सम्बन्ध है, यह बहुत छोटी राशि है। लेकिन यह अखबार उद्योग के लिए एक बड़ी राशि है, जो किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। क्योंकि वह अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रिंट एकमात्र उद्योग है, जिसमें एक वेतन बोर्ड है और सरकार यह तय करती है कि कर्मचारियों को कितना भुगतान किया जाना चाहिए। यह एकमात्र उद्योग है, जहाँ बाज़ार की ताकतें वेतन का फैसला नहीं करती हैं। लिहाज़ा सरकार की इस उद्योग के प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अभी तो यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मंदी और डिजिटल विस्तार के चलते पहले ही विज्ञापन और प्रसार राजस्व में गिरावट आयी हुई है। सम्पूर्ण लॉकडाउन के कारण उद्योगों और व्यापार केंद्रों के बन्द होने से हमें पहले ही गम्भीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। आईएनएस का यह बयान न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें उसने (एनबीए ने) भी सोनिया गाँधी के सुझाव की कड़ी निंदा की थी और उनसे अपना बयान वापस लेने के लिए कहा था। याद रहे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में गाँधी ने कोविड-19 से लडऩे के लिए कई सुझाव दिये थे, जिसमें टेलीविजन, प्रिंट और आन लाइन जैसे मीडिया संस्थानों को सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विज्ञापनों पर दो साल के लिए प्रतिबन्ध लगाने का सुझाव भी शामिल था। सोनिया गाँधी का यह बयान ऐसे समय में आया, जब मीडिया संस्थान संकट से गुज़र रहे हैं। वैसे भी भारत में एक अखबार लागत से काफी कम कीमत पर बेचा जाता है। ऐसे में विज्ञापन से ही कोई अखबार/पत्रिका ज़िन्दा रह सकती है।