बंूदी में इतिहास को करवट लेते जिन लोगों ने देखा है, वो राजस्थान की बहुचर्चित लोकगाथा ‘सेनाणी’ की नायिका हाड़ी रानी सल्ह कुँवर के बलिदान से अनभिज्ञ नहीं हो सकते, जिन्होंंने युद्ध में जाते पति द्वारा निशानी माँगे जाने पर अपना सिर काटकर दे दिया था। 18वीं सदी के इन सुर्ख वरकों को भले ही अब वक्त की धूल ने धुँधला दिया, लेकिन हाड़ी रानी की याद ताज़ा करने वाली उनकी हवेली बूंदी में आज भी सिर उठाये खड़ी है। हरी-भरी पहाडिय़ों के बीच जलाशयों से घिरा बूंदी चंदोबे की तरह लगता है। अभी हाल ही में ठिठुराती सर्द हवाओं से सिहराता यह शहर ‘बूंदी उत्सव’ मनाकर हटा है। कड़ी सर्दी के बावजूद बूंदी सैलानियों के बोझ से चरमरा रहा था। बूंदी की पुरासंपदा और सांस्कृतिक वैभव को लेकर प्रख्यात उपन्यासकार किम का कथन बहुत कुछ कह जाता है कि ‘सूरज की दमकती रोशनी में चमचमाते बूंदी के दुर्ग तारागढ़ को देखकर यकीन नहीं होता कि इसे ज़मीनी वास्तुकारों ने रचा है। लगता है, इसे मनुष्य की बजाय फरिश्तों ने गढ़ा है। बूंदी का पुरातन कलात्मक वैभव हर कदम पर चौंकाता है। किम कहते हैं कि ‘बूंदी तो नायाब हीरे की तरह दमकती है। बूंदी का कुदरती सौन्दर्य ही सैलानियों को अपनी तरफ खींचता है। बूंदी का दुर्ग एतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से अतुल्य है। खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें इतिहास के प्रति गहरा लगाव है? बूंदी की पुरा-सम्पदा उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। आकर्षक मेहराबों वाला सुखमहल राजपूती जीवन शैली की याद ताज़ा करता हैं। गर्मियाँ शुरू होते ही राजपरिवार शीतल झकोरे वाले सुखमहल में रहने चला जाता था।
हाड़ा राजपूतों की जीवन-शैली
हाड़ा राजपूतों लोगों की जीवन शैली और परम्पराओं में इस रहन-सहन की झलक आज भी मिल जाती है। जलाशयों की पाँत में गिनी जाने वाली बावडिय़ाँ, जलसंवद्र्धन का नायाब नमूना कही जा सकती है। उनके निर्माण में भी समृद्ध कला कौशल की झलक मिलती है। बूंदी का दुर्ग राजस्थान के सबसे पुराने िकलों में गिना जाता है। इसके निर्माण का कलात्मक वैभव सैलानियों को बुरी तरह हैरान करता है कि,‘आिखर प्रतिमाओं और पत्थरों में उकेरी गयी गाथाओं को किस तरह साकार किया गया होगा। सबसे बड़ा आकर्षण तो इस दुर्ग का पहाड़ी पर निर्मित होना है। यही आकर्षण सैलानियों को चकित करता है। बूंदी में क्या दर्शनीय है? इस इकलौते सवाल का एक ही जवाब होता है कि ‘बूंदी का िकला देखना चाहिए। सैलानियों के लिए चित्रशाला एक बड़े आकर्षण के रूप में गिनी जाती है। यहाँ पर चित्रित राग-रागनियाँ, और रासलीला आदि के चित्र ठिठकने को बाध्य कर देते हैं। नवल सागर जैसी झीलें एहसास ही नहीं होने देती कि ये मानव निर्मित है। भगवान वरुण देव को समर्पित इस झील में वासुदेव का मंदिर भी है। जलाशय में गिरते हुए झरने इसकी भव्यता को दुगुना कर देते हैं। चैरासी खम्भो की छतरी तो कलात्मक वैभव का अनूठा नमूना है।
बदहाली बन रही विडम्बना
यूँ तो बूंदी बहुत आकर्षक पर्यटन स्थल है, लेकिन यहाँ की बदहाली बूंदी की विडम्बना बनने लगी है। यहाँ की टूटी सडक़ों और काई-गाज से भरे जलाशयों के चलते पर्यटकों की संतुष्टि के मामले में बूंदी अव्वल नहीं कहा जा सकता। पर्यटकों की दिलचस्पी के बावजूद राज्य सरकार ने बूंदी के चेहरे को बदलने की कोई कोशिश नहीं की। ताज्जुब है कि इस पर्यटन स्थल के लिए विकास का कोई मेगा प्रोजेक्ट नहीं है। आय और रोज़गार की बात करें, तो पर्यटन यहाँ का सबसे बड़ा कमायी का स्रोत है। लेकिन इस गोरखधंधे पर तो होटल व्यवसाय ही पूरी तरह काबिज़ है, जिसने पुरानी हवेलियों को आने-पोने दामों में खरीदकर होटलों में तब्दील कर दिया है। स्थानीय भूगोल और हवेलियों के इतिहास की गहरी समझ रखने वाले इस मामले में ज़्यादा फायदे में है। क्योंकि यहाँ आने वाले उत्सुक पर्यटकों को विरासत के बारे में बताने के लिए उनके पास बहुत कुछ है। ऐसे लोगों में मेजर सिंह परमार का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।
बदहाल हवेलियाँ और होटल
बदहाल हवेलियों की बिक्री को सुविधाजनक बनाने में तत्कालीन •िाला कलेक्टर मुग्धा सिन्हा की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रही तो पुरा-सम्पदा के रख-रखाव में अग्रणी संस्था इंटेक का भी उल्लेखनीय सहयोग रहा। मेजर सिंह की देखा-देखी मेहता परिवार के दो भाइयों ने भी हवेली खरीदकर अपनी होटल सम्पत्ति में इज़ाफा किया है। मेजर सिंह तो कहते हैं कभी मलबे का भी इतना मोल हो जाएगा? हमने कृपा भी नहीं की थी। बूंदी स्टेट के समय की जो हवेलियाँ आज मौज़ूद हैं उनमें थाणा की हवेली, हणुवंत सिंह जी की हवेली, ताकला की हवेली समेत कई हवेलियाँ शामिल है। समय के साथ हवेलियों की पर्याप्त सार-सँभाल नहीं होने से इनमें अनेक क्षतिग्रस्त हो गयीं। कई हवेलियों को राजाओं के वंशज आज भी विरासतकालीन कला सँजोये हुए हैं। बूंदी राज्य का नियम था कि राजाओं के वंशजों को जागीरी दी जाती थी। सम्बन्धित वंशज वहाँ का जागीरदार कहलाता था। हालाँकि अब न तो जागीरें रहीं और न ही वो जागीरदार रहे। उनके वंशजों में कुछ ने तो हवेलियों के स्वरूप को बरकरार रखा, लेकिन कुछ ने हवेलियों के सार-सँभाल नहीं होने के कारण उनके वैभव को गँवा दिया। खण्डहर बनी हवेलियों को भव्य होटलों में परिवर्तित करने का काम सहज नहीं रहा। खरीदारों ने इसके लिए काफी मशक्कत की। हवेलियों के स्वामित्व की स्थिति तथा निवेश की सँभावनाओं का अध्ययन करने केे बाद ही उन्होंने अपने कदम बढ़ाये। देखा जाए तो इसका श्रेय राजस्थान में पर्यटन उद्योग में आये बूम और पर्यटकों की यहाँ की पुरा-सम्पदा और विरासत के प्रति रुचि को ही दिया जा सकता है, जिसकी वजह से मलबे में तब्दील होती हवेलियाँ अब तीन सितारा होटलों को भी मात करने लगी है।
पर्यटकों को हमेशा लुभाता रहा है बूंदी
अपने एतिहासिक गौरव और पुरा-सम्पदा को लेकर बेशक बूंदी पर्यटकों को लुभाता है। लेकिन बुनियादी संरचना की विपन्नता, स्वच्छता तथा सुरक्षा के बीहड़ अनुभव हर कदम पर नयी खिडक़ी खोलते चलते हैं। यहाँ छोटे-छोटे टुकड़ों में जीवन के इतने रंग है, जो पूरे भारत की धडक़न का प्रामाणिक कोलॉज बना सकते हैं। बूंदी में वर्षों से हर साल हज़ारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। लेकिन न तो लेाग ही इतने जागरूक है और न ही प्रशासन और सरकार िफक्रमंद है। बुनियादी सुविधाओं की प्रचुरता बेशक औद्योगिक क्षेत्रों के इर्द-गिर्द रही होगी। लेकिन बूंदी का पर्यटन इनसे महरूम है।
सुलगते सवाल
पर्यटन स्थल की तरफ जाने वाली सडक़ें, ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों में तब्दील हो चुकी है। सम्पर्क सडक़ें ही क्यों? पर्यटन केन्द्रों की तरफ जाने वाले हाईवे भी पूरी तरह दुरुस्त नहीं है। बूंदी बेशक पर्यटकों केा खींच लाने में समर्थ है। लेकिन रेल सम्पर्क भी आधा-अधूरा है, तो एयर कनेक्टिविटी भी नहीं है। पर्यटन क्षेत्रों में आवश्यकता के अनुरूप वाशरूम होने चाहिए, कहाँ है यहाँ? शहर का शायद ही कोना ऐसा होगा, जो गन्दगी से अटा हुआ नहीं होगा। गन्दगी से बजबजाते गलियारों को देखकर क्या लगता होगा? शहर के कई इलाके तो ऐसे हैं कि नाक बन्द करके गुज़रना पड़ता है। सुरक्षा के नाम पर भी आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। हर साल बूंदी उत्सव का आयोजन होता है। इनमें लोक संस्कृति का अतुल्य वैभव नज़र आता है। लेकिन सवाल है कि पर्यटकों को रिझाने वाले लोक कलाकारों की दशा-दिशा पर कोई क्यों नहीं सोचता? बूंदी •िाला मुख्यालय है। लेकिन अतीत का बोझ ढोते हुए एक किसी कोने में सिकुड़ता-सा शहर लगता है। पता नहीं क्यों? फिर भी इसकी एकल पहचान है कि यह पर्यटन नगरी है।