आज भारत अपनी सरजमीं पर कोरोना से और अपनी उत्तरी सरहदों पर कोरोना के पितामह चीन से जूझ रहा है। कोरोना की उलझती, बिखरती जंग की तरह चीन के साथ इस सैन्य लड़ाई में भी भारत की आधी-अधूरी, बिखरी तैय्यारी की हालत जाहिर हो रही है।
उत्तर में चीन के बुलंद, बेसब्र हौसलों व मंसूबों के पीछे उनका सशक्त सैन्य बल और साथ ही में तिब्बत के सेक्टर में उनका संचार प्रणाली (कम्युनिकेशन सिस्टम) व सड़कों व हवाई आधारिक संरचना (इन्फ़्रस्ट्रक्चर) है। भारत- चीन की लगभग 4000 किमी लंबी पहाड़ी सीमा पर अपना बल बनाए रखने के लिए चीन ने सालों में खास तैय्यारी करी ली है। आज उनके पास इन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सड़कें, 5 हवाई अड्डे और लगभग 3.5 लाख का सैन्य बल है जिसे वे 48 घंटे के अंदर-अंदर किसी भी इलाके में सक्रिय कर सकते हैं।
यह एक सत्य है कि भारत सेना और सड़क, दोनों मामलों, में चीन से पीछे है। हमारी सेना लगभग एक कतार में पूरी सीमा पर खींची हुई है और औसतन 3:1 के आँकड़े से चीन के सिपाहियों की तादाद हमें पिछाड़ती है।
सड़कें कमी अगर हमें खलती थी तो ये बात चीन के लिए भी एक रोधक का काम करती थी- दुश्मन की फौज के पास भी कोई क़ीमती लक्ष्य नहीं था ना हीं कोई जरिया जिस से वो घुसपैठ कर आसानी से भारत की आबादी वाली इलाकों तक पहुंच सके।
सैन्य रणनीति में कौन सी चीज़ पहले होनी चाहिए और कौन सी उसके बाद, यह भी उतना ही महत्व रखती है जितना की सैन्य ताकत , बात है सही प्राथमिकताओं की। आज एक तरफ़ सरकार सियाचिन के पास डबरूक- शयोक- दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क बनने पर अपनी पीठ थपथपा रही रही और दूसरी तरफ़ चीन के अतिक्रमण पर एक सुसज्जित, अनुकूल सैन्य बल की साफ़ नज़र आती कमी को छुपा रही है। कहीं उत्तरी इलाकों में क्या भारतीय सरकार ने सेना से पहले सड़क तैयार कर कहीं बैल के आगे गाड़ी बांधने का काम तो नहीं किया? ये समझने के लिए कुछ अतीत के फ़ैसलों की शृंखला पर नज़र डालनी पड़ेगी।
भारत का ब्रहमास्त्र:
भारत अपनी सीमा मुख्यतौर पर पाकिस्तान और चीन के साथ सांझा करता है। भारत के तीन स्ट्राइक कोर हैं जो पाकिस्तान के साथ हमारी 3323 km लंबी सीमा रेखा पर केंद्रित हैं पर आश्चर्यजनक बात ये है कि भारत की कोई भी स्ट्राइक कोर चीन के खिलाफ, पहाड़ी इलाकों में प्रहार या रक्षा के लिए ख़ास तौर पर निर्धारित या तैय्यार नहीं है!
2013 में यू.पी.ए सरकार ने एक माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन शुरू किया था जो 2017 तक तैय्यार होनी थी और जरूरत पड़े तो 2017-22 के पांच साल में बचा हुआ गठन जा सकता था। ब्रह्मास्त्र के नाम से जाने जानी वाली इस 90 हज़ार सैनिकों कोर का मुख्य उदेश्य होना था उत्तरी इलाकों में (मुख्यतौर पर चीन) में घातक प्रहार की क्षमता रखना। स्ट्राइक कोर कभी भी स्वदेशी सरजमीं पर अपना जौहर नहीं दिखाती। सोच साफ थी उत्तर के पहाड़ी इलाकों में कोई भी अपने मंसूबे बढ़ाए तो उसके जवाब में 90 हज़ार सैनिकों कि एक सुसज्जित भारतीय माउंटेन स्ट्राइक कोर जो समय और जरूरत होने पर रौंदते हुये आगे बढ़ा सके।
2019 में जहां एक तरफ इस एम.एस.सी ने ‘हिम-विजय’ जैसी सैन्य अभियस कर चाइना के कान खड़े कर दिये, वहीँ बात चल पड़ी इस स्ट्राइक कोर की रूप रेखा बदलने की या फिर कहिए ठंडे बस्ते में डालने। कारण बताए गए की इसके रखरखाव पर बहुत खर्च होगा, सेना नए सैलानी भर्ती नहीं कर सकती, इस नयी कोर को असले से लैस करने के लिए सेना के असले के कोश खत्म हो रहे हैं। ये भी कहा गया कि भारतीय सेना में आधे से ज्यादा पैसा वेतन और रख रखाव पर खर्च होता है। इन्हीं बातों के चलते ब्रहमास्त्र ठंडे बस्ते में चला गया।
देखने और सोचने की बात है कि 2019 में भारत ने अपनी सेना पर जी.डी.पी का 2.4% खर्च किया था जबकि पाकिस्तान ने अपने जी.डी.पी का 4% खर्च किया था। उसी साल चीन का सैलानी बजट भारत से तीन गुना ज़्यादा था। रखरखाव की बात भी करें तो ऐसा कौनसा सरकारी महकमा है- रेल से लेकर एयर इंडिया तक, जहां वेतन और रख रखाव पर आधे से ज्यादा खर्च नहीं होता है ? इन आँकड़ों और बातों की आड़ में देश की सुरक्षा की नज़रंदाज़ी किसी भी तरह की दूरदृष्टि का प्रमाण नहीं है।
सड़क:
दूसरी तरफ भारत ने पिछले 20 सालों से चल रहे सड़क निर्माण को बहुत ज़ोर शोर से बढ़ा लिया है। 255km लंबी डबरूक- शयोक- दौलत बेग ओल्डी मार्ग के निर्माण को जहां भारत की एक कामयाबी माना जा रहा है, वहीँ सवाल खडे होते हैं कि बिना किसी खास स्ट्राइक कोर के, ये सड़क हमारी ताकत बढ़ाती है या दुश्मन की? हमारे पास माउंटेन स्ट्राइक कोर न होने के कारण चीन के अंदर तक कब्जा करने कि शक्ति नहीं है और अगर चीन की सेना बार्डर के इस पार तक पहुँच गया तो हमारी बनाई सड़क ही हमारे लिए खतरा साबित होगी और 10-12 घंटे में चीन हमारे शहरों में आ खड़ा होगा !
देश की सुरक्षा जैसे मामले में छींटाकशी ठीक नहीं लेकिन सत्ता के गलियारों से यह बातें चलीं है कि माउंटेन स्ट्राइक कोर से किसी भी कॉर्पोरेट घराने का कोई भला नहीं होने वाला लेकिन सड़क बनाने के यंत्र और तंत्र में बहुत सी निजी कंपनियों की हिस्सेदारी और रुझान चलता है। क्या इसी कारण एन.डी.ए सरकार ने माउंटेन स्ट्राइक कोर को आधे रास्ते में ही ठंडे बस्ते में डाल दिया? हमारी सरकार क्यूँ सैनिकों के एक छोटी संख्या के पीछे देश कि सुरक्षा से समझौता कर रही है? सेना के बारे में रख रखाव के तथ्य रख स्ट्राइक कोर ठंडे बस्ते में डालने वाले देश कि बाहरी ताकतों से प्रेरित हैं। खर्च के बहाने अपनी क्षमता को कम कर लेना शायद बुद्धिमानी नहीं और माउंटेन स्ट्राइक कोर को नकार कर सड़क शायद चीन के लिए बिछाने का काम भी कोई तीक्षण बुद्धि का काम नहीं है !
दिशा:
मोदी सरकार ने हर क्षेत्र में श्रमशक्ति (मैनपावर) से ज्यादा टेक्नोलॉजी पर ज़ोर दिया है और यही सोच सैन्य बल से जुड़े फैसलों पर भी लागू हो रही है। जब बात आमने सामने की लड़ाई हो तो सैन्य बल, इंसानी ताक़त और संख्या ही काम आते हैं। टेक्नोलॉजी हमारे सैन्य बल हो हटाए क्यों? क्या वो उसके साथ, उसे सशक्त नहीं कर सकती? ड्रोन की मदद से इलाकों पर नज़र रखी जा सकती है पर जब आमना-सामना करना हो तो सैनिक को मैदान में उतारना ही पड़ेगा और इस सच्चाई से हम अपनी आंखें मूँद नहीं सकते।
आज वो 90 हजार की एम.एस.सी तैयार होती तो भारत के सभी जवाब, सीमा पर फ़ौज के और टेबल पर राजनयिक, सभी अलग होते। आज 90 हजार भी नहीं, अगर मात्र 30 हजार ही तैयार होते तो भी गलवान वादी में चीन ने जो हिमाक़त करी है, वो ना करता। आज हमारे सैनिक सीमा पर दुश्मन से और देश में अदूरदर्शि नियत और नीति से लड़ रहे हैं। आज हालात ये हैं कि ना केवल चीन, पर नेपाल भी भारत के सामने छाती चौड़ी करे खड़ा है। चीन के उकसाने पर आज नेपाल अपनी संसद में आने वाले भारतीय इलाकों को अपने नक्शे में दिखा रहा है और भारत अपने राजनयिक दांत पीस रहा है।
दो आक्रामक पड़ोसी पर भारत का दोहरा नज़रिया- एक तरफ़ आँख खोल रखी है और दूसरे की तरफ़ आँख बंद कर रखी है। पाकिस्तान, जिसके मुक़ाबले में हम अपने आप को उच्चस्तरीय मानते हैं, जिसके दुश्मनी-वजूद से हमारी राजनीति और क्रिकेट चलता है, उसी पर ही हमारा मीडिया, राजनीतिक और सैन्य संवाद केंद्रित रहता है। चीन, जो दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताक़तों में से एक है, जो हमारी सरज़मीं पर आर्थिक और सैन्य घुसपैठ खुले आम कर रहा है , उस पर हमारा हर संवाद और कदम भ्रम में धूमिल हैं। पाकिस्तान को हम घर में घुस कर मारेंगे पर चीन को अपने घर में घुसने से रोकने की तैय्यारी तक में हम अपने आँखें और जेबें बंद कर रहे हैं?
समय है दोनो आँखें खोलने का और राष्ट्र सुरक्षा व राष्ट्रहित सुनिश्चहित करने का।