प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में भयावह चूक, जिसके कारण उनका क़ाफ़िला पंजाब के फ़िरोज़पुर के पास राष्ट्रीय शहीद स्मारक और एक जनसभा स्थल के रास्ते में एक पुल पर क़रीब 20 मिनट तक फँसा रहा; एक बहुत गम्भीर मामला है। यह इसलिए भी गम्भीर है, क्योंकि यह ‘ब्लू बुक’ के तहत ज़रूरी केंद्रीय एजेंसियों, विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) और राज्य पुलिस बल से जुड़े बहुस्तरीय सुरक्षा प्रोटोकॉल के बावजूद हुआ। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के चार घटकों में विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) या आंतरिक रिंग, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) या बाहरी रिंग; स्थानीय पुलिस, जो मार्ग के साथ रसद और सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है; के साथ-साथ इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) भी शामिल है, जो ख़तरे का आकलन करता है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए एक आकस्मिक योजना हमेशा मौसम की रिपोर्ट को ध्यान में पहले से तैयार रहती है, ताकि अगर प्रधानमंत्री उड़ान नहीं भर सकें, तो सड़क से एक वैकल्पिक मार्ग पूरी तरह साफ़ रखा जा सके। एसपीजी का प्राथमिक कार्य प्रधानमंत्री को निकटवर्ती सुरक्षा प्रदान करना है और यह राज्य पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि वह समग्र सुरक्षा सुनिश्चित करे।
विडम्बना यह है कि ज़िम्मेदारी तय करने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने घटना के दो दिन बाद अपने एक ट्वीट में सरदार वल्लभभाई पटेल को उद्धृत करते हुए उपहास के अंदाज़ में कहा- ‘जो कर्तव्य से अधिक जीवन की परवाह करता है, उसे कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए।’ यह स्पष्ट है कि पंजाब सरकार प्रधानमंत्री को सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करने में विफल रही और वर्तमान घटना राज्य सरकार और उसके पुलिस बल की ख़राब छवि सामने लाती है। सर्वोच्च न्यायालय की तरफ़ से इस सुरक्षा चूक की जाँच के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने के एक दिन बाद पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने 13 जनवरी को देश में कोरोना की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए प्रधानमंत्री के साथ अपनी आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग) के दौरान इस घटना पर ख़ेद व्यक्त किया और प्रधानमंत्री की लम्बी उम्र की कामना की।
हालाँकि प्रधानमंत्री के जीवन के लिए ख़तरे को सड़क पर विरोध-प्रदर्शन करके नया मोड़ देने की कोशिशों से इस महत्त्वपूर्ण मसले की गम्भीरता को ही चोट पहुँची है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा को राजनीतिक विचारों या व्यक्तित्वों से परे रखना चाहिए; क्योंकि प्रधानमंत्री की सुरक्षा दलगत राजनीति से ऊपर है। लेकिन चुनाव की पूर्व संध्या पर इसे एक समुदाय विशेष को कलंकित करके एक मनोवैज्ञानिक लाभ या सहानुभूति बटोरने के लिए इस्तेमाल किये जाने की कोशिशें भी नाकाम हो गयी लगती हैं। इस घटनाक्रम से सबसे ज़्यादा परेशान किसान हैं, जो इसे समुदाय को बदनाम करने के लिए एक षड्यंत्र के रूप देखते हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने आरोप भी लगाया कि बिना किसी कारण के पंजाब राज्य और किसानों को इस घटना के लिए दोषी ठहराया गया है। हालाँकि विरोध करने वाले किसानों ने कभी भी प्रधानमंत्री के क़ाफ़िले की ओर जाने का कोई प्रयास नहीं किया। पंजाब में हुई चूक को ‘महामृत्युंजय जाप’ करके प्रधानमंत्री को नुक़सान पहुँचाने की साज़िश के रूप में या राज्य में चुनी हुई सरकार द्वारा जानबूझकर प्रधानमंत्री को ख़तरे में डालने की साज़िश के रूप में पेश करना निहायत ही ग़लत है। यह घटनाएँ पाँच राज्यों में महत्त्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले केंद्र और राज्य के बीच एक गम्भीर स्तर के अविश्वास का भी संकेत करती हैं। इस तरह इस विषवमन बन्द होना चाहिए।