जवानों के नौकरी छोडऩे और आत्महत्या के मामले बढऩे से उठ रहे कई सवाल
पिछले पाँच साल में देश में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और असम राइफल्स (एआर) के 40,096 जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआर) माँगी है। इस अवधि के दौरान ही 6,529 अन्य जवानों ने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। ये आँकड़े चौंकाने वाले हैं। जिस देश में सुरक्षा बल या सेना में जाने को युवा गौरव की बात और सबसे बेहतर रोज़गार मानते हैं, वहाँ नौकरी हासिल करने के बाद इतने बड़े पैमाने पर उसे छोड़ देने के आख़िर क्या कारण हैं? अभी तक जो चीज़ें सामने आयी हैं, उनमें पदोन्नति, छुट्टी और उच्च अधिकारियों का ख़राब व्यवहार से लेकर अन्य कई कारण शामिल हैं। सबसे चिन्ताजनक बात यह है कि ऐसे ही अवसादों के चलते पिछले छ: साल में देश के 750 से ज़्यादा रणबांकुरों ने आत्महत्या कर ली।
बड़ी हैरानी की बात है कि देश के लिए अपनी जान क़ुर्बान करने वाले जवानों के इस स्तर पर आत्महत्या करने या इतने बड़े पैमाने पर उनके नौकरी छोडऩे को लेकर सरकार ने विशेष अध्ययन करने की ज़हमत ही नहीं उठायी। यही कारण है कि यह सिलसिला चलता जा रहा है। इसी साल मार्च में राज्यसभा में सरकार से यह सवाल पूछे गये कि जवानों के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने या इस्तीफ़ा देने की क्या वजह है? क्या सरकार ने इसके लिए कभी कोई अध्ययन किया है? तो गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया कि कारण जानने के लिए कोई विशिष्ट अध्ययन नहीं किया गया।
सेवानिवृत्त सुरक्षा बलों की गठित कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने एक सर्वे किया, जिसमें बड़े पैमाने पर जवानों से बातचीत करके इसके कारण जानने की कोशिश की गयी। इसकी कॉपी सरकार को भी भेजी गयी थी, ताकि इन समस्यायों का निराकरण किया जा सके। इसमें कोई दो-राय नहीं कि देश के जवानों का हौसला कम नहीं और सीमा पर दुश्मन के दाँत खट्टे करने में उन्हें महारत हासिल है।
लेकिन जब बात अपने व्यक्तिगत जीवन की आती है, तो सरकार और अधिकारियों की बेरुख़ी के कारण उनका हौसला टूट जाता है। एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह कहते हैं कि यह हैरानी की बात है कि बिना दुश्मन से किसी युद्ध में लड़े छ: साल में देश के 700 जवानों ने अपनी जान दे दी। इससे ज़्यादा शर्मनाक बात किसी देश के लिए कोई हो ही नहीं सकती। सिंह कहते हैं कि यह विभिन्न आंतरिक दबावों का नतीजा है और इसे वह मानवाधिकारों के उल्लंघन की सबसे बड़ी मिसाल मानते हैं। उनके मुताबिक, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ड्यूटी के अनुरूप वेतन नहीं मिल पा रहा है और तरक़्क़ी के अवसर नाम मात्र के ही हैं। इसके अलावा उच्च अधिकारियों का व्यवहार भी जवानों के साथ कई मामलों में सम्मानजनक नहीं रहता।
बता दें कि, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में सात सुरक्षा बल आते हैं, जिनमें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और असम रायफल्स (एआर) शामिल हैं, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत हैं। गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा में जो आँकड़े प्रस्तुत किये थे, उनसे मामले की गम्भीरता की झलक मिलती है। राज्यसभा में रखे गये गृह मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, पिछले पाँच साल में सबसे ज़्यादा बीएसएफ के 20,249 जवानों, सीआरपीएफ के 11,029, सीआईएसएफ के 2,885, असम रायफल्स के 2,279, आईटीबीपी के 1,912 और एसएसबी के 1,769 जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति माँगी है। नौकरी से इस्तीफ दे देने वाले जवानों का आँकड़ा अलग से है।
गृह मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, पिछले एक दशक में 81,000 से ज़्यादा जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआर) का रास्ता चुना। वर्ष 2017 में ही 11,000 से ज़्यादा जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति रास्ता अपनाया। सन् 2011 से सन् 2020 की अवधि में 15,904 सैन्यकर्मियों ने इस्तीफ़ा भी दिया। वर्ष 2013 में सबसे ज़्यादा 2,332 लोगों ने इस्तीफ़ा दिया था। यह सभी आँकड़े सीआरपीएफ, बीएसएफ, इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और असम राइफल्स से सम्बन्धित हैं। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह आरोप लगाते हैं कि पद के नाम पर बड़े पैमाने पर भेदभाव है, जो जवानों में हीन भावना पैदा करता है। इन्हीं कारणों से जवानों का मनोबल निचले स्तर पर है। अपनी शिकायतें रखने के लिए जवानों के पास सेना सभा जैसा प्लेटफॉर्म है।
एक सेवानिवृत्त जवान ने नाम न छापने की शर्त पर ‘तहलका’ को बताया कि निचले स्तर के कर्मचारी मुसीबतें झेलते हुए भी अफ़सरों का ख़ौफ़ के कारण अपनी बात कहने से डरते हैं कि पता नहीं इस पर वे कैसी प्रतिक्रिया देंगे। सभी अफ़सर ख़राब नहीं होते; लेकिन ज़्यादातर सैनिकों की भावनाओं की क़द्र नहीं करते। वैसे मंत्रालय अर्धसैनिक बलों से अलग होने वाले जवानों को लेकर कारण तो नहीं बताता, लेकिन यह ज़रूर कहता है कि इन बलों पर किये आंतरिक विश्लेषण में पाया गया कि ज़्यादातर जवान निजी या पारिवारिक मसलों, स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी या बेहतर करियर विकल्प के चलते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति या इस्तीफ़ा का रास्ता चुनते हैं। जानकारी के मुताबिक, इसी साल सीआरपीएफ में क़रीब 3,500 अफ़सरों को सन् 1998 से लेकर अब तक के राशन मनी भत्ते का एरियर दिया गया था, जो अधिकतम पाँच लाख रुपये के क़रीब था। हालाँकि जानकारों के मुताबिक, यह एरियर सिपाही से इंस्पेक्टर तक के रैंक के कर्मियों को नहीं मिला, जिसे लेकर उनमें नाराज़गी रही।
उधर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह इस्तीफ़ों और वीआर से लेकर आत्महत्या तक के अपने सर्वे में सामने आये कारणों को लेकर कहते हैं- ‘कई कारण हैं, जिनमें पदोन्नति के अवसर कम होना, नियुक्तियों की ग़लत नीति, ज़रूरत और वक़्त पर छुट्टी न मिल पाना, उच्च अधिकारियों का अमानवीय व्यवहार, परिवार से लम्बे समय तक दूरी रहना, ज़िन्दगी में दबाव बनना, संवैधानिक मौलिक अधिकारों का हनन, कैम्पस में एक तरह से बँधुआ मज़दूर जैसी ज़िन्दगी हो जाना, अंग्रेजों के ज़माने के बने नियमों का हवाला देकर उच्च अधिकारियों द्वारा जवानों का अनुशासन के नाम पर भावनात्मक शोषण प्रमुख हैं।’
यदि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आँकड़ों पर नज़र दौड़ायी जाए, तो पता चलता है कि पिछले पाँच साल में सीएपीएफ और असम राइफल्स के 40,096 जवानों ने जहाँ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति माँगी, वहीं इस अवधि में 6,529 अन्य जवानों ने तो इस्तीफ़ा ही दे दिया। आधे से अधिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) अकेले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के कर्मियों ने माँगी। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवानों में इस्तीफ़े देने के मामले सबसे ज़्यादा हैं। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पिछले पाँच वर्षों के दौरान सीएपीएफ और असम राइफल्स के कर्मियों द्वारा माँगे गये इस्तीफ़े और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बारे में पूछे गये सवालों के जवाब में सन् 2016 से सन् 2020 तक के आँकड़े प्रस्तुत किये थे।
10 साल में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले जवान
बीएसएफ 36,768 सीआरपीएफ 26,264
सीआइएसएफ 6,705
असम राइफल्स 4,947
एसएसबी 3,230
आईटीबीपी 3,193
इस्तीफ़ा देने वाले जवान
सीआईएसएफ 5,848
बीएसएफ 3837
सीआरपीएफ 3,366
आईटीबीपी 1,648
एसएसबी 1,031
असम राइफल्स 174
आत्महत्या के मामले
केंद्र सरकार के लोकसभा में इसी साल दिये गये आँकड़ों के मुताबिक, 2014 के बाद से अब तक (मार्च, 2021) सशस्त्र बलों में 787 लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें सबसे अधिक 591 आत्महत्याएँ सेना में हुईं। उस समय रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने एक लिखित जवाब में बताया कि इस अवधि में नौसेना में 36, वायुसेना में 160 सैनिकों ने आत्महत्या की। नाइक ने बताया कि सशस्त्र बलों ने सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों से निपटने के लिए कई क़दम उठाये हैं, ताकि आत्महत्याएँ कम हों। देश में 13 मनोरोग केंद्र स्थापित किये। वायुसेना ने मिशन ज़िन्दगी अभियान शुरू किया है। नाइक ने राज्यसभा में बताया कि सशस्त्र बलों में कोरोना के कुल 44766 मामले दर्ज हुए, जिनमें 119 सैनिकों की मौत हुई। राज्यसभा में एक लिखित जवाब में उन्होंने कहा कि इस अवधि में भारतीय वायुसेना में 160 और नौसेना में 36 जवानों ने आत्महत्या कर ली। सरकार का कहना है कि सशस्त्र बलों ने सैनिकों के तनाव प्रबन्धन के उपाय किये हैं। लेकिन स्पष्ट रूप से बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। सरकार के मुताबिक, उसने सैनिकों के बीच तनाव को दूर करने की दिशा में कई ठोस क़दम उठाये हैं। इनमें राज्यों में ट्रेंड साइकोलॉजिकल काउंसलर की तैनाती, सैनिकों के लिए भोजन और कपड़ों की गुणवत्ता में सुधार, तनाव प्रबन्धन में प्रशिक्षण, मनोरंजक सुविधाओं का प्रावधान, बड़ी प्रणाली, रियायतें छोडऩा, सीमावर्ती क्षेत्रों से सैनिकों की आवाजाही की सुविधा और एक शिकायत तंत्र स्थापित करना शामिल है। इसके अलावा कमांडर विभिन्न स्तरों पर तनाव और तनाव के मुद्दों से व्यापक तरीक़े से निपट रहे हैं। सरकार का दावा है कि सेना में बहुस्तरीय रणनीति के हिस्से के रूप में विशिष्ट उपाय किये गये हैं, जिसमें स्ट्रेस मैनेजमेंट सेशन साइकाइट्रिक काउंसलिंग और इस विषय पर कमांडरों की संवेदनशीलता शामिल हैं। हालाँकि सेवानिवृत्त सुरक्षा बलों की गठित कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह कहते हैं कि सरकार के प्रयास बहुत कमज़ोर हैं। उनके मुताबिक, ज़मीनी हक़ीक़त बहुत विपरीत और ख़राब है और जब तक सरकार मूल मुद्दों को नहीं निपटाती, समस्या का हल नहीं निकल सकता।