सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से यह साफ कह दिया कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास फैसला लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है। असली अधिकार जनता और चुनी हुई सरकार का ही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आम आदमी पार्टी (आप) को अदालत से ऐतिहासिक कानूनी जीत हासिल हुई है। यह तय हुआ कि देश की राजधानी दिल्ली में आखिरी फैसला लेने का अधिकार दिल्ली सरकार का है या दिल्ली के उपराज्यपाल का। इस फैसले पांडिचेरी को भी अब काफी राहत हुई होगी।
दिल्ली में कौन वाकई बड़ा अधिकारी है इस पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से एक लंबे विवाद का समाधान हो गया। जब से आप सरकार सत्ता में आई है तब से केंद्र की ओर से भेजे गए उपराज्यपाल उसकी तमाम फाइलें मंगाकर राजभवन में रखते रहे हैं। जिसके कारण आप सरकार बमुश्किल शिक्षा और स्वास्थ्य पर कुछ वाकई अच्छे काम कर सकी और बाकी व विवाद होता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों में केंद्र को अनचाही दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। जो लोकप्रिय इच्छा है उसे अमल में आने से कतई नही रोका जा सकता। अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल को बाधक नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिल्ली के लोगों के लिए एक बड़ी जीत है। अरविंद केजरीवाल की सरकार के दिल्ली में तीन साल सिर्फ विरोधों और धरनों मे ही गुजरे। अभी पिछले महीने भी वे उपराज्यपाल अनिल बैजल के विजिटर्स रूम में सोफों पर अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ धरने पर ही थे। अदालत ने कहा कि पूर्णता और अधिनायकवाद अराजकतावाद के लिए कोई जगह नहीं हैं
अदालत के अनुसार
- मंत्रिमंडल को सारे फैसलों की जानकारी उपराज्यपाल को ज़रूर देनी चाहिए। लेकिन हर मामले में उनकी सहमति होनी अनिवार्य नहीं है। अदालत ने यह साफ किया कि उपराज्यपाल ‘बासÓ नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि भूमि, पुलिस और जनादेश में उपराज्यपाल की स्वतंत्र फैसला लेने की भूमिका संविधान में भी नहीं है।
- उपराज्यपाल सिर्फ एक प्रशासक हैं। उनकी भूमिका भी बहुत सीमित है वे राज्यपाल भी नहीं हैं। मंत्रिमंडल के ज़्यादातर परामर्श से वे बंधे हुए हैं।
- फैसला पढ़ते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ शांति के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
- आप सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ जिसके तहत उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासनिक बॉस का दर्जा मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश से असहमत होते हुए कहा कि उपराज्यपाल को मशीनी तरीके से काम नहीं करना चाहिए और दिल्ली मंत्रिमंडल के फैसलों पर रोक नहीं लगानी चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला तब आया है जब पिछले ही महीने केजरीवाल ने उपराज्यपाल के घर के अतिथिगृह में नौ दिन विरोध करते हुए गुजारे थे।
- आप ने बैजल से अनुरोध किया था कि वे अधिकारियों का बॉयकॉट रद्द कराने के लिए उचित कदम उठाएं। यह बॉयकॉट तब शुरू हुआ जब मुख्य सचिव अंशुप्रकाश ने फरवरी में आप के दो विधायकों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में कथित हाथापाई का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि आप विधायकों ने केजरीवाल के घर पर उनके साथ हाथापाई की।
- जब अधिकारियों ने काम करने का फैसला लिया तो केजरीवाल ने आंदोलन खत्म किया लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को फिर ताजा कर दिया। मांग का विरोध भाजपा तब से कर रही है जब से यह केंद्र में आई है।
- मतभेदों की शुरूआत तो तब से ही हो गई जब से आप 2015 में दिल्ली में सत्ता में आई। इसे 70 में से 67 सीटें मिली थीं। विपक्ष में भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिली थी। आप का आारोप है कि केंद्र सरकार तब से ही बदले की भावना से काम करती रही है, और इसके लिए उपराज्यपाल का सहयोग लेकर केजरीवाल सरकार के हर फैसले पर रोकथाम लगा देती रही है।
- आप जब सत्ता में आई तो केंद्र ने एक नियम निकाला जिसके तहत चुनी हुई सराकर के हर फैसले चाहे वह पुलिस, जनादेश या नौकरशाही की नियुक्तियों का हो उस पर चुनी हुई सरकार से बातचीत करे।