सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मंगलवार को भोपाल गैस त्रासदी, जिसमें 5,200 से ज्यादा लोगों की मौत और लाखों बुरी तरह प्रभावित (घायल) हुए थे, के मामले में केंद्र सरकार से पूछा है कि पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने पर आपका क्या स्टैंड है ? सर्वोच्च अदालत का यह निर्देश 2011 में तब की मनमोहन सिंह सरकार की भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए दाखिल की गयी क्यूरेटिव याचिका पर आया है।
तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी, जो अब डॉव केमिकल्स के स्वामित्व में है, को 7413 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने के निर्देश दिए जाएं। इस क्यूरेटिव पिटीशन पर सर्वोच्च न्यायालय में पांच जजों की जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने अब केंद्र से पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने पर उसके स्टैंड की जानकारी चाही है।
याद रहे केंद्र सरकार की 2011 की सर्वोच्च अदालत में दायर इस याचिका में शीर्ष अदालत के 14 फरवरी, 1989 के फैसले की फिर से जांच करने की मांग की गई है, जिसमें 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) का मुआवजा तय किया गया था।
केंद्र सरकार का कहना था कि पहले का समझौता मृत्यु, चोटों और नुकसान की संख्या पर गलत धारणाओं पर आधारित था, और इसके बाद के पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया था। ये मुआवजा 3,000 मौतों और 70,000 घायलों के मामलों के पहले के आंकड़े पर आधारित था जबकि बाद में दायर क्यूरेटिव पिटीशन में मौतों की संख्या 5,295 और घायलों का आंकड़ा 527,894 बताया गया है।