सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन करने वाले लोगों को वसूली नोटिस भेजने वाली उत्तर प्रदेश की सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए शनिवार को उसे सख्त निर्देश दिए कि वह अपनी यह कार्रवाई निरस्त करे। सर्वोच्च अदालत ने यूपी सरकार को इसके लिए आखिरी मौका दिया है और चेताया है कि यदि उसने ऐसा नहीं किया तो अदालत कानून का उल्लंघन करने वाले इस फैसले को अपनी तरफ से रद्द कर देगी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक सर्वोच्च अदालत ने साफ़ कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की यह कार्रवाई कानून के खिलाफ है और इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश सरकार आरोपियों की सम्पति जब्त करने की कार्रवाई के लिए खुद ही शिकायतकर्ता, न्यायकर्ता और अभियोजक बन बैठी। पीठ ने कहा कि सरकार को कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा। कृपया इसकी जांच करें, हम 18 फरवरी तक एक मौका दे रहे हैं।
सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता परवेज आरिफ टीटू की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि यह कार्रवाई तुरंत वापस लें या यह अदालत कानून का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर देगी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नोटिस मनमाने तरीके से भेजे गए हैं। एक ऐसे व्यक्ति को भी नोटिस भेज दिया गया जिसकी मौत 6 साल पहले 94 साल की उम्र में हो चुकी थी। ऐसे नोटिस 90 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों के अलावा कई अन्य को भेजे गए।
यूपी सरकार ने यह नोटिस यह कहकर भेजे थे कि राज्य में सीएए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को जो नुकसान हुआ यह उसकी भरपाई के लिए कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए थे। याचिका में यह नोटिस रद्द करने की अपील की गई है। यूपी सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य में 833 दंगाइयों के खिलाफ 106 प्राथमिकी दर्ज की गईं और उनके खिलाफ 274 वसूली नोटिस जारी किए गए। उन्होंने कहा कि 274 नोटिस में से, 236 में वसूली के आदेश पारित किए गए थे, जबकि 38 मामले बंद कर दिए गए थे।