किसान आंदोलन पर सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक बड़े अंतरिम फैसले में मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। साथ ही इस मसले पर चर्चा के लिए सर्वोच्च अदालत ने चार सदस्यीय कमिटी का गठन कर दिया है जिसमें भूपेंद्र सिंह मान, प्रमोद जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल धनवंत को शामिल किया है।
किसान दोपहर बाद इस मसले पर बैठक करके अपनी राय रखेंगे। हालांकि, अब लग रहा है कि वे अपना आंदोलन स्थगित कर सकते हैं। उधर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, जो भोपाल में हैं, इस फैसले के बाद दिल्ली वापस लौट रहे हैं। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है।
सर्वोच्च अदालत ने आज कहा कि किन प्रावधानों को हटाया जाए, इसपर कमिटी काम करेगी। शक्तियों का इस्तेमाल करके हमें कानूनों को निलंबित करना होगा।अभी तक सरकार का यही रुख रहा है कि वह कानूनों को किसी भी सूरत में वापस नहीं लेगी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने मंगलवार को कहा कि कमिटी अपने लिए बना रहे हैं।
यह कमिटी यह तय करेगी कि कानूनों में से क्या चीजें हटाई जानी चाहियें। कमिटी की रिपोर्ट के बाद इसपर आदेश देंगे। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कमिटी के समक्ष कोई भी जा सकता है। समस्या को बेहतर तरीके से हल करने की हम कोशिश कर रहे हैं।
कल ही ऐसा माना जा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर एक कमिटी बना सकता है जो इसका हल तलाशने की कोशिश करेगी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने यह अंतरिम फैसला सुनाया।
प्रधान न्यायधीश ने कहा कि हम आंदोलन से प्रभावित लोगों के जीवन, संपत्ति से चिंतित हैं। हम चाहते हैं कि ज़मीनी हकीकत जानने के लिए कमिटी बने। अदालत ने कहा कमिटी बनाने से हमें कोई नहीं रोक सकता।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन पर कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि आपने इस मामले को सही से हैंडल नहीं किया। कोर्ट ने सरकार से कहा था कि आप कानून के अमल पर रोक लगाइए अन्यथा हम लगा देंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध का शीघ्र हल निकलना चाहिए। कोर्ट ने सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत को प्रोत्साहित भी किया था। ऐसे में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आज सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में एक कमिटी बनाने का निर्देश दे सकता है जो इस मसले का हल निकाल सके।
इस बीच केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। सरकार ने इसमें कहा है कि कृषि कानूनों को जल्दी में पास नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह जाहिर करने की कोशिश की गई कि कानून जल्दी में पास किया गया है, जबकि ऐसा नहीं है। सरकार ने कहा कि इन कानूनों के लिए दो दशक से बात चल रही थी। ये ‘किसान मित्र’ कानून हैं। केंद्र ने कहा कि देश भर के किसान इस कानून से खुश हैं, क्योंकि उन्हें ज्यादा विकल्प दिया गया है और उनका कोई अधिकार नहीं लिया गया है। किसानों के साथ लगातार गतिरोध खत्म करने की कोशिश की गई है।
उधर दिल्ली के सिंघु बॉर्डर सहित अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को 48वां दिन है। किसानों का रुख बेहद साफ है, वे किसी भी हालत में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। किसान अब भी तीनों नए कृषि कानून को वापस कराने पर अड़े हुए हैं। किसान नेताओं का कहना है कि जब तक कानून वापस नहीं होता, वे मुड़कर पीछे नहीं देखेंगे।
सातवें दौर की बातचीत के समय भी किसानों के इस रुख के कारण सरकार और किसान संगठनों के बीच नोकझोंक की भी बात सामने आई थी। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने हमसे बातचीत में आरोप लगाया कि सरकार इस आंदोलन को कमजोर करने के अलग-अलग हथकंडे अपना रही है, लेकिन हम उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। हम यहां शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन कर रहे हैं। अपनी लड़ाई जीतकर आगे जाएंगे। किसान पूरी तरह एकजुट हो चुके हैं और उनका आंदोलन यहीं नहीं रुकेगा।