सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र के आरे जंगल में और पेड़ काटने पर पाबंदी लगाते हुए यथास्थिति रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा जब तक इस मामले में फॉरेस्ट (एन्वायरन्मेंट) बेंच का फैसला नहीं आता, तब तक आरे में यथास्थिति रखी जाए। इस मामले में अगली सुनवाई अब २१ अक्टूबर को होगी।
पेड़ों को काटने के विरोध में लिखे पत्र को जनहित याचिका मानते हुए सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए रविवार को स्पेशल बेंच का गठन भी कर दिया था। अदालत ने लॉ स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को पेड़ों की कटाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया और अगली सुनवाई तक वहां यथास्थिति बहाल रखने को कहा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जब तक फॉरेस्ट यानी एन्वायरन्मेंट बेंच का फैसला नहीं आ जाता, तब तक आरे में यथास्थिति बहाल रखी जाए।
वैसे तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब १२०० पेड़ों की कटाई रुक गई है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि जितने पेड़ काटने थे कटे जा चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक अभी तक वहां २००० के करीब पेड़ काटे जा चुके हैं। आरे में मेट्रो शेड बनाने के लिए कुल २७०० पेड़ों की बलि देने की योजना है।
अदालत ने सरकार से इस मामले में साड़ी जानकारी माँगी है और कहा है कि उसे (अदालत को) यह बताया जाये कि कितने पेड़ कटे हैं और कितने पौधे अब तक रोपे गए हैं। सरकार ने अदालत में अंडरटेकिंग दी है कि और पेड़ नहीं काटे जाएंगे। सरकार अदालत के इस आदेश के बाद वहां अब कोइ दूसरी गतिविधि नहीं कर सकेगी। जो पेड़ काट कर वहां रखे गए हैं उन्हें भी वहीं रखे रहना होगा।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने सोमवार को सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि हम जो समझ रहे हैं, उसके मुताबिक आरे इलाका नॉन डिवेलपमेंट एरिया है लेकिन इको सेंसटिव इलाका नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र सरकार की ओर से जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण की स्पेशल बेंच के सामने पेश हुए। उन्होंने बेंच को बताया कि जरूरत के पेड़ काटे जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से पूछा था कि वहां कितने पेड़ काटे जा चुके हैं, बताएं?
अदालत ने कहा कि वहां ज़मीन का लैंड यूज दो साल पहले ही बदला गया है। सरकार ने दो अधिसूचनाएं जारी कर एक में आरे एरिया को ”इको सेंसटिव जोन” से अलग कर दिया गया था। अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप हमें वह नोटिफिकेशन दिखाइए जिसमें आरे एरिया को इको सेंसेटिव जोन से बाहर किया गया था।
मेट्रो शेड के लिए आरे कॉलोनी के पेड़ों की कटाई का विरोध सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता के साथ कई जानी-मानी हस्तियां कर रही हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि पूरे आरे एरिया को जंगल घोषित किया जाए। इस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में मैटर लंबित है इसलिए वह इसपर सुनवाई नहीं कर सकता।