सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। सर्वोच्च अदालत ने बिना कोइ अंतरिम आदेश जारी करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके आदेश दिया है कि वह चार हफ्ते में अपना जवाब दायर करे। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने आज इस मामले पर अब और याचिकाएं स्वीकार करने से इंकार कर दिया है।
इस मसले पर करीब १६० याचिकाएं सर्वोच्च अदालत में दाखिल की गयी हैं जिनमें ज्यादातर क़ानून लागू करने के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब माँगा है।
अदालत ने आज सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि अदालत एक तरफ़ा फैसला नहीं दे सकती और सबकी बात सुननी होगी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। आज सुनवाई शुरू होने के बाद विरोध पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह क़ानून गैर संवैधानिक है लिहाजा इसे संवैधानिक पीठ को देखने दिया जाये।
सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया कि संवैधानिक पीठ का गठन कर दिया जाये। साथ ही उन्होंने मांग की कि कमसे कम इस क़ानून को दो महीने के लिए निलंबित कर दिया जाए ताकि उस समय तक हम अपना पक्ष रख सकें। हालांकि, अटार्नी जनरल ने इसका विरोध किया। अदालत ने भी कहा ऐसा करना एक तरह से इस पर रोक लगाना होगा।
सिब्बल ने कहा कि अभी तक इस क़ानून के नियम तक नहीं बने हैं लेकिन उत्तर प्रदेश या कुछ जगह नागरिकता देने का प्रोसेस भी शुरू कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे लोगों में भय है।
नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया है कि सीएए संविधान के मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ करता है और मनमाना है साथ ही समानता के अधिकार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है कि मोदी सरकार नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर अधिसूचना जारी कर चुकी है और इस पर उसने काम करना शुरू कर दिया है। सर्वोच्च अदालत इस मामले में पहले ही केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर चुकी है।