सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक विस्तृत फैसले में गुरुवार को पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस, बीडीएस और सभी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक तौर पर सही ठहराया है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ‘आरक्षण और मेरिट एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं’।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में नीट (एनईईटी) पीजी दाखिले में ओबीसी आरक्षण की अनुमति देने के कारण भी बताया है। सर्वोच्च अदालत ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर रोक नहीं लगाने का कारण बताते हुए कहा कि एनईईटी पीजी और यूजी प्रवेश के लिए ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण मान्य है।
अदालत ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता और पात्रता की स्थिति के मुद्दे पर मार्च के तीसरे सप्ताह सुनवाई करेगी। अदालत ने आज कहा कि ‘आज हम सभी एक महामारी के बीच में हैं। डॉक्टरों की भर्ती में देरी से स्थिति प्रभावित होती। आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है, लेकिन सामाजिक न्याय के लिए यह जरूरी है। साल 1984 में प्रदीप जैन के फैसले को यह नहीं पढ़ा जा सकता कि एआईक्यू सीटों पर कोई आरक्षण संभव नहीं है।’
सर्वोच्च अदालत ने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) हर देशवासी को बराबरी मौलिक अधिकार देते हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘प्रतियोगी परीक्षाएं उत्कृष्टता, व्यक्तियों की क्षमताओं को नहीं दर्शाती हैं। ऐसे में कुछ वर्गों को मिलने वाले सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ को प्रतिबिंबित नहीं किया जा सकता’।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘सामाजिक न्याय की उपलब्धता के लिए आरक्षण आवश्यक है। मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस, बीडीएस और सभी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण संवैधानिक तौर पर सही है।’ कोर्ट ने कहा कि ‘उच्च स्कोर योग्यता के लिए एकमात्र मानदंड नहीं है। सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के संबंध में योग्यता को प्रासंगिक बनाने की जरूरत है।’
सर्वोच्च अदालत ने साफ़ किया है कि ‘पहले के फैसलों ने यूजी और पीजी एडमिशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि आरक्षण और सीटों की संख्या की जानकारी परीक्षा होने के बाद तक नहीं की जाती है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सीटों के गोलपोस्ट को बदल दिया गया है। इस स्तर पर न्यायिक हस्तक्षेप से इस वर्ष के लिए प्रवेश में देरी होती इसलिए 2021-22 बैच के लिए रेंज क्राइटेरिया पर कोई रोक नहीं है।’