सीबीआई मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। गुरूवार को इस मामले में सुनवाई हुई। अब सीबीआई के एक अन्य अधिकारी बसी के मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है।
इससे पहले सुबह सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई में मचे घमासान पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई में बहस की शुरूआत करते हुए महाधिवक्ता ने कहा कि निदेशक होने के बाद भी व्यक्ति अखिल भारतीय सेवा का हिस्सा होता है। मुख्या न्यायाधीश रंजग गोगोई ने पूछा कि सीबीआई निदेशक के अधिकार वापस लेने पहले सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या मुश्किल थी? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता फाली नरीमन ने कहा कि किसी भी परिस्थिती में उन्हें समीति की सलाह लेनी चाहिए। इस मामले में तबादले का मतलब सेवा के न्यायक्षेत्र में तबादला नहीं है। तबादले का मतलब सिर्फ एक स्थान के दूसरे स्थान पर स्थानांतरण नहीं होता। केंद्र सरकार के आदेश के मुताबिक वर्मा के अधिकारों को वापस ले लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे सर्वोच्च न्यायालय में दो मुख्य न्यायाधीश नहीं हो सकते वैसे ही सीबीआई के दो निदेशक नहीं हो सकते।
सुबह बहस के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि नियम के अनुसार सीबीआई डायरेक्टर को दो साल तक के लिए पद पर बने रहना चाहिए. जस्टिस जोसेफ ने सीनियर वकील दुष्यंत दवे से कहा कि वह सीवीसी एक्ट के बारे में पढ़ें, जिसमें कमिश्नर के हटाने की बात है लेकिन कभी सीबीआई डायरेक्टर को हटाने की बात नहीं है। दरअसल, दवे दलील दे रहे हैं कि सीवीसी को सीबीआई की जांच करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार ने सीबीआई की स्वायत्ता का ध्यान नहीं रखा है।
मुख्या न्यायाधीश ने कहा कि जब इतने महीने से यह सारा विवाद चल रहा था तो सरकार ने इतना इन्तजार क्यों किया। और आधी रात को वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला क्यों करना पड़ा।