सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े फैसले में बुधवार को कहा कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) का दफ्तर भी आरटीआई के दायरे में आएगा। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सीजेआई दफ्तर सार्वजनिक आफिस है लिहाजा इसे भी आरटीआई के दायरे में होना चाहिए।
इस फैसले के बाद देश के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आ जाएगा। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। इस मामले में ४ अप्रैल को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली संविधान बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब सीजेआई रंजन गोगोई की आगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच फैसला सुनाया है। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं।
गौरतलब है कि मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का दफ्तर आरटीआई के दायरे में होगा। इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया था। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने २०१० में चुनौती दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर ”स्टे” लगा दिया था। इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया गया था। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं।
याद रहे प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने इस मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि कोई भी अपारदर्शिता की व्यवस्था नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा था कि कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता। आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते।