चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि, न्यायाधीश के पद से हटने के बाद वे जो कुछ भी कहते हैं वह सिर्फ राय होती है और बाध्यकारी नहीं होती है।
बता दें, संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की टिप्पणी का उच्चतम न्यायालय में जिक्र किये जाने के बाद सीबीआई चंद्रचूड़ का यह बयान आया है।
राज्यसभा में सोमवार को मनोनीत सदस्य और पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने दिल्ली सेवा बिल पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा था कि, “केशवानंद भारती मामले में पूर्व सॉलिसिटर जनरल (टीआर) अंध्यारूजिना की एक किताब है। पुस्तक पढ़ने के बाद मेरा विचार है कि संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का एक चर्चा किए जाने योग्य न्याय शास्त्रीय आधार है। इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कहूंगा।”
आपको बता दें, सन् 1973 में केशवानंद भारती मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिया था और कहा था कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून के शासन जैसी कुछ मौलिक विशेषताओं में संसद संशोधन नहीं कर सकती है।
वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से शीर्ष अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दिए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के बयान का जिक्र किया।
मोहम्मद अकबर ने जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त विशेष दर्जे को निरस्त किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सिब्बल ने दलील दी कि जिस तरह से केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द किया है वह किसी तरह से न्यायोचित नहीं है, जब तक कि कोई नया न्यायशास्त्र नहीं लाया जाता। ताकि वे अपने पास बहुमत रहने तक जो चाहें कर सकें।
कपिल सिब्बल ने कहा, “अब आपके एक सम्मानित सहयोगी ने कहा है कि ‘वास्तव में बुनियादी ढांचे का सिद्धांत भी संदिग्ध है।’ इसपर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि, श्री सिब्बल जब आप किसी सहकर्मी का जिक्र करते हैं, तो आपको मौजूदा सहकर्मी का जिक्र करना होगा। जब हम न्यायाधीश के पद से हट जाते हैं तब हम जो भी कहते हैं वे केवल राय होती है और बाध्यकारी नहीं होती है।”
दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, संसद की कार्यवाही की चर्चा संसद में नहीं की जाती है उन्होंने कहा कि श्री सिब्बल यहां भाषण दे रहे हैं, क्योंकि वह कल संसद में नहीं थे। उन्हें संसद में जवाब देना चाहिए था।”