सुना है कि आप को राज्य सरकार में किसी मंत्री ने चुनौती देते हुए कहा था कि क्या आप उनके साथ मामले में चर्चा करें…
हां सुना है लेकिन ऐसे छोटे-मोटे लोगों से मैं चर्चा नहीं करना चाहता जिनकी इस बारे में समझ सीमित है उनसे क्या चर्चा करना… चर्चा करनी है तो उन इलाकों में जाएं… सूखाग्रस्त इलाकों में… जहां पर लोग परेशान हैं पानी के लिए तरस रहे हैैं। उन किसानों से मिलें जिनकी फसलें खत्म हो गई हैं। जिनके परिजन पानी के लिए रो रहे हैं ।चारा छावनियों में जाकर देखें जहां पर चारा की कमी है …पानी की कमी है…जिन लोगों के फलों के बाग जल गए हैं उन लोगों से चर्चा जाकर करना सार्थक है । मैं महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में घूम आया हूं ।मैंने जो कुछ देखा वाकई बहुत ही गंभीर है ।मुझे लगता है कि 1972 के बाद बहुत ही गंभीर समस्या है। महाराष्ट्र में मैं उन लोगों से मिला जो चारा छावनी में हैं , जो चारा छावनियां चला रहे हैं । जिन लोगों के जानवर हैं छावनियों में उनसे मिला।तब मैं समझ पाया… उन्हें प्रतिदिन ₹90 मिलते हैं ।₹90 प्रति दिन में प्रति जानवर में चारा पानी आदि कैसे संभव है? यह बढ़ा कर 115 120 तक कर देना चाहिए । कुछ लोगों ने यहां तक कह दिया कि कम पैसों में वह चारा छावणी नहीं चला सकते और बंद कर देंगे …अगर वह चारा छावनियों बंद कर देंगे तो स्थिति बहुत ही खराब हो जाएगी लोग परेशान है ।
सरकार का दावा है कि टैंकरों से पानी सप्लाई की जा रही है…
हां सरकार ने टैंकरों की व्यवस्था की है लेकिन टैंकर से पानी की आपूर्ति काफी कम है …जरूरत बहुत है और आपूर्ति बहुत कम …स्थिति बदतर है। कभी कभी कहीं कहीं दो-तीन दिन में एक बार पहुंचता है टैंकर ।अब जिन दिनों टैंकर्स नहीं पहुंचते उन दिनों के लिए लोग क्या करें ? कहां से पानी लाएं ? कहीं कहीं सरकारी टैंकर दिन में सिर्फ एक दफा ही आता है …एक बार में एक टैंकर से कितनी जलापूर्ति होगी ?गांव के कितने लोगों को पानी मिलेगा ?कितने परिवार की प्यास बुझेगी… जानवरों की भी तकरीबन यही दशा है ।एक टैंकर पानी में कितने जनों की प्यास बुझेगी ?जानवरों के साथ साथ लोग भी है जहां काम करते हैं ।लोगों की अपेक्षा है कि टैंकर रोज़ रोज़ आए और ज्यादा से ज्यादा चक्कर मारे ताकि लोगों को नियमित पानी मिले प्यास बुझाने के लिए।
सब से अधिक परेशान वह बहने हैं जिनके कंधों पर घर परिवार की जिम्मेदारी है ।पीने के लिए तो पानी चाहिए ही लेकिन घर के अन्य कामों के लिए भी पानी की जरूरत होती है। खाना बनाने के लिए ,बर्तन धोने , कपड़े धोने के लिए भी पानी चाहिए चाहिए ।कई बहनों की शिकायत है कि टैंकर से जो पानी आता है वह स्वच्छ नहीं है… पीने लायक नहीं है। इस मामले में विशेष ध्यान देना चाहिए। यह बिल्कुल जरूरी भी है कि कम से कम पीने का पानी साफ स्वच्छ हो ताकि लोग बीमार ना पड़े। सूखे की मार झेल रहे लोग इलाज कहां कैसे करा पाएंगे? कहां से पैसे लाएंगे?
सूखाग्रस्त इलाकों में जल संकट के साथ साथ और भी परेशानियां हैं…
खेती के बगीचे खत्म हो गए पानी की समस्या चारे की समस्या रोजगार की समस्या मुंह बाए खड़ी है। गांव से 50 फीसदी से अधिक लोग रोजगार के लिए गांव छोड़कर माइग्रेट कर चुके हैं ।रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है ।हताश निराश लोग पुणे, मुंबई जा रहे हैं ।रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं।परैशान गांव वाले छोटे-मोटे शहरों की तरफ नहीं जाएंगे तो क्या करेंगे ?लोग सब लोग रोजगार की मांग कर रहे हैं और रोजगार देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है । नौकरी और रोजगार के साथ ही पानी की व्यवस्था हो ,जानवरों के लिए चारा की व्यवस्था हो तो शायद कुछ दिशा दशा बदल सकती है इस संकट से । पशुधन को भी बचाना जरूरी है मैं कोई राजनीति नहीं कर रहा हूं। इस तकलीफ की घड़ी मे कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करना हम सब की जिम्मेदारी नहीं है?
फसलों के साथ साथ फल बागानों के भी खत्म हो जाने से लोगों की मुश्किलात बढ गई हैं ंं। हलांकि फसलों का खत्म होना भी तकलीफदेह हैं लेकिन फल बागानों की स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है। क्योंकि लगभग 5 वर्ष लग जाते हैं बागानों को फलदार बनने में। आने वाले 20 साल तक उत्पादन का जो संसाधन होता है इन किसानों का ,वह बागानों के खत्म होने से खत्म हो जाता है । हमारी सरकार ने जिस तरह से बागान वालों को पानी के टैंकरों के पैसे दिए थे इस सरकार को इसी तरह कुछ उपाय योजना करनी चाहिए ।सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है लोगों को । एक बात अच्छी है कि कुछ लोग निजी रूप से व निजी संस्थाए ,एन जी ओ दिल खोलकर सहयोग करने की कोशिश कर रहे हैं सूखे की मार झेल रहे लोगों की। लेकिन इन लोगों के भरोसे छोड़ कर सरकार अपने हाथ खड़े नहीं कर सकती।यह सरकार की अपनी नैतिक जिम्मेदारी है जिसे सरकार को पूरी तरह से निभाना ही होगा।
फिलहाल सीएम टेली कांफ्रेंस के जरिए स्थिति पर नजर रखे हुए हैं…
चीफ मिनिस्टर टेलीकॉम टेली कांफ्रेंस के जरिए स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। मैं जानता हूं।वह ठीक कर रहे हैं अपने संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं और डिस्ट्रिक्ट के सभी अधिकारियों से चर्चा कर रहे हैं लेकिन बेहतर यह है सीएम महोदय वहां जाकर चारा छावनियों की जानकारी लें। जानवरों की क्या दशा है वह देखें। चारा छावनी चलाने चलाने वालों की क्या हालत है उसे देखें। जल शिविरों की क्या स्थिति है उसका पता लगाएं ।जानवर और उनके मालिकों से बातचीत करें और फल बगानों की स्थिति पता लगाएं। लोगों तक पानी पहुंचाए।