भारत में सुरक्षाबलों के विद्रोह की घटनाएं गिनती की ही हुई हैं. इनमें सीआईएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल) में विद्रोह की घटना काफी चर्चित रही है. इस बल का गठन 1968 में केंद्रीय प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए किया गया था. उस समय तक सरकारी कारखानों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग आधा योगदान था और इनकी सुरक्षा के लिए एक प्रशिक्षित बल की जरूरत थी. यही दौर मजदूर आंदोलन के उभार का भी रहा है. सीआईएसफ के गठन का एक उद्देश्य हिंसक मजदूर आंदोलनों से सरकारी संपत्ति को बचाना भी था. इस बल के गठन के बाद कुछ ही सालों में लगभग सभी सार्वजनिक उपक्रमों की सुरक्षा इसको सौंप दी गई.
सीआईएसएफ के विद्रोह की घटना बोकारो (झारखंड) स्थित स्टील प्लांट में तैनात यूनिट से जुड़ी है. 1979 में यहां तकरीबन 2000 जवान तैनात थे. चूंकि इन जवानों की तैनाती हमेशा सार्वजनिक उपक्रमों में होती थी इसलिए वहां के मजदूर आंदोलनों से वे भी अछूते नहीं थे. ऐसे में जब यहां तैनात जवानों ने अपने काम करने की बुरी स्थितियों और मासिक वेतन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा शुरू की तो जल्दी ही बल के भीतर इन मसलों पर एक राय बन गई और सीआईएसएफ के भीतर ही जवानों ने अपना एक संगठन बना लिया.
कहा जाता है कि बल के भीतर विद्रोह की घटना का शुरुआती बिंदु वह था जब रांची में कथिततौर पर एक कमांडेंट की प्रताड़ना से एक जवान की मौत हो गई थी. इसके बाद बोकारो में सीआईएसएफ कर्मियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. देशभर से बल के कुछ चुने हुए प्रतिनिधि दिल्ली में अपनी मांगों को लेकर दिल्ली भी गए. लेकिन यहां उन्हें विरोध प्रदर्शन करने पर हिरासत में ले लिया गया. इन दोनों घटनाओं ने बोकारो के जवानों को पूरी तरह आंदोलित कर दिया.
जून के महीने में इन जवानों ने अपने वरिष्ठों के आदेश मानने से पूरी तरह इनकार कर दिया. आखिरकार इनको नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार को सेना भेजनी पड़ी. 25, जून को जब सेना यहां पहुंची उसके पहले ही सीआईएसफ के विद्राेही जवान अपने आवासीय परिसरों के आसपास सशस्त्र संघर्ष की तैयारी कर चुके थे. उन्होंने सेना से मुठभेड़ के लिए रेत की बोरियां जमा करके बैरकें बना ली थीं. सेना जब इस क्षेत्र में आगे बढ़ी तो इन जवानों ने फायरिंग कर दी. दोनों पक्षों में मुठभेड़ शुरू हो गई और तीन घंटों की मुठभेड़ के बाद आखिरकार विद्रोही जवानों ने आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन इस पूरी घटना का सबसे दुखद पक्ष यह रहा कि सेना की कार्रवाई में दर्जनों जवानों की मौत हो गई. सेना को अपने तीन जवान खोने पड़े तो सीआईएसएफ के तकरीबन 60 जवान मारे गए. इस घटना के बाद स्टील प्लांट से सीआईएसएफ हटा ली गई. इस यूनिट के तकरीबन 500 जवानों को बर्खास्त कर दिया गया और उनपर मुकदमा चलाया गया.