सिनेमाई समझ वाला रॉकस्टार

रॉकस्टार के शुरुआती दृश्य में रणबीर कपूर रोम की गलियों में भटकते हुए कुछ लोगों से पिटते दिखते हैं. फिर वे बचकर भागते हैं और जल्दी में एक बस की सवारी लेकर अपने कंसर्ट में पहुंचते हैं. वहां पहुंचकर वे आयोजनस्थल पर लगे बैरीकेडों को लात मार कर भीतर घुसते हैं, प्रशंसकों के गगनभेदी शोर के बीच अपने आपको कामचलाऊ तरीके से व्यवस्थित करते हैं और गुस्से में भरा चेहरा ताने माइक की तरफ बढ़ आते हैं. इस एक सीन में आप रणबीर कपूर को एक बेचैन एंग्री यंग मैन के किरदार को आत्मसात करते हुए देख सकते हैं.

‘ मैं आदर्श फिल्मी हीरो जैसे रोल नहीं कर सकता क्योंकि वे मेरे लिए स्वाभाविक नहीं हैं. मुझे राज कपूर की श्री 420 जैसी फिल्में ही पसंद आती हैं. मुझे किरदार का फालतू रहना और व्यर्थ समय गंवाना अच्छा लगता है ‘

रॉकस्टार उस विचार को फिल्माती है जो कहता है कि टूटे हुए दिल से ही संगीत निकलता है. नायक जनार्दन जाखड़ (या जार्डन) के पास सृजनात्मकता भी इसी फलसफे से आती है जिसके बाद वह अकसर बेचैनी में स्टेज पर जोर-जोर से तब तक चिल्लाता है जब तक वह थक कर चूर नहीं हो जाता. जार्डन के इस बेचैन और उग्र किरदार के ठीक विपरीत 29 साल का यह अभिनेता अपने गुस्से और बेचैनी को दरकिनार करके अपना पूरा ध्यान अभिनय पर केंद्रित करना चाहता है. मुंबई के चांदीवली स्टूडियो में अपनी अगली फिल्म बर्फी की शूटिंग में व्यस्त रणबीर कपूर पक्के पेशेवर की तरह पेश आते हैं जो मृदुभाषी और शिष्ट होने के साथ ही सहज भी है. एक मुश्किल सीन को आसानी से सिर्फ एक बार में ओके करने के बाद भी 20वें शॉट तक लगातार बिना विचलित हुए रीटेक देना, सिर्फ इसलिए कि दूसरे को-स्टार भी अपना बेहतर दे सकें, एक पेशेवर अभिनेता होने की ही निशानी है.

रणबीर कपूर के पास ऐसा आकर्षक व्यक्तित्व है जो लोगों को अपनी तरफ खींचता है और साथ ही एक ऐसा चेहरा भी जो अलग-अलग हाव-भावों को आसानी से पर्दे पर उकेर सकता है. शॉट खत्म होने के बाद रणबीर  अपने में व्यस्त हो जाते हैं. कभी ब्लैकबेरी के साथ तो कभी आई-पैड पर पसंदीदा गेम के साथ. रणबीर से मिलने पर आपको दो चीजें चकित करती हैं. एक उनका कुछ ज्यादा ही सपाट शरीर और दूसरा उनके सुर्ख लाल होंठ जो उनके अंकल शम्मी कपूर की याद दिलाते हैं.

2007 में आई सांवरिया और 2008 की बचना ऐ हसीनों की साधारण शुरुआत के बाद रणबीर ने 2009 में तीन अलग-अलग तरह की फिल्मों से अपनी पहचान मजबूत की थी. शहरी युवाओं की समस्याएं दिखाती वेक अप सिड हो या अनोखी अजब प्रेम की गजब कहानी या फिर सच्चाई दर्शाती राकेट सिंह, सभी में रणबीर ने जमीन से जुड़े किरदार निभा कर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इन सभी फिल्मों में वे अपनी दिलचस्प कॉमिक टाइमिंग और नाटकीयता के लिए तारीफें बटोर ले गए. इसके बाद आई फिल्म राजनीति में उनके निर्जीव चेहरे ने उनके प्रशंसकों के एक वर्ग को निराश किया मगर रॉकस्टार में अपनी पीढ़ी का यह सबसे बेहतरीन अभिनेता यह दिखा जाता है कि वह गंभीर सिनेमा भी कर सकता है.

‘मैं कभी किसी शादी में नहीं नाचूंगा. किसी समारोह में जाकर फीता नहीं काटूंगा. कभी फेयरनेस क्रीम, सिगरेट या शराब का एड नहीं करूंगा’

अभी तक की अपनी आठ फिल्मों में रणबीर ने पढ़े-लिखे युवा की भूमिका ही निभाई है. कारण बताते हुए रणबीर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि मेरा व्यक्तित्व सुपरहीरो वाला है. मैं आदर्श फिल्मी हीरो जैसे रोल नहीं कर सकता क्योंकि वे मेरे लिए स्वाभाविक नहीं हैं. मुझे राज कपूर की श्री 420 जैसी फिल्में पसंद आती हैं. मुझे किरदार का फालतू रहना और व्यर्थ समय गंवाना पसंद आता है. अगर मैं कसरत करने के लिए वजन उठाने वाले सीन में कुछ नया नहीं कर पाता तो उसमें हास्य जोड़ देता हूं, थोड़ा अनाड़ीपन ले आता हूं, वही मुझे बचा ले जाता है.’

फिल्मी परिवार में पले-बढ़े होने के कारण रणबीर फिल्मों की रिलीज के वक्त चिंतित नहीं होते लेकिन जब पिता ऋषि कपूर उनकी फिल्म देखते हैं तब रणबीर जरूर बेचैन होते हैं. वे बताते हैं, ‘मुझे सबसे ज्यादा घबराहट तब होती है जब मेरे पिता मेरी फिल्म देखते हैं. अभी तक उन्होंने सिर्फ दो फिल्में देखी हैं. हाल ही में मैंने उनके साथ एक ऐड फिल्म की थी और मैं बहुत डरा हुआ था क्योंकि मैं जानता था कि अगर मैंने खराब अभिनय किया तो वे इकलौते इंसान हैं जो यह बात आसानी से पकड़ लेंगे और फिर शायद वह यह मान कर चलंे कि मैं हमेशा से ही बुरा अभिनेता था.’ जब रणबीर का जन्म हुआ था तो पंजाब के एक फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर ने उनके दादा राजकपूर को एक टेलीग्राम भेजा था. इसमें लिखा था कि इंडस्ट्री में एक नये हीरो का स्वागत है. पिछले कुछ सालों से रणबीर कपूर को अगले सुपरस्टार की तरह पेश किया जा रहा है. और इस बात से रणबीर वाकिफ भी हैं और सीधे तौर पर स्वीकार भी करते हैं कि ऐसा वे हमेशा से चाहते थे. वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि मैं प्रतिभाशाली हूं. मुझमें वह प्रतिभा है जो मुझे इस देश का सबसे बेहतरीन अभिनेता बना सके. और मैं यह भी जानता हूं कि इसके लिए मेरे पास काफी सारा अच्छा काम होना चाहिए, ढेरों साल होने चाहिए और इस दौरान मुझे कई तरह के त्याग भी करने होंगे, मगर मैं इन सबके लिए तैयार हूं. मैंने अपने आपको इसके लिए ही तैयार किया है. मेरे आदर्श राज कपूर हैं लेकिन मैं उनसे भी बेहतर करना चाहता हूं. वे मेरे दादा थे और सभी अभिनेताओं में सर्वश्रेष्ठ थे, लेकिन अब वक्त है कि कोई उनसे भी बड़ा अभिनेता और बड़ा निर्देशक आए. यही मेरी महत्वाकांक्षा है.’

रॉकस्टार इसी महत्वाकांक्षा का परिणाम है. चाॅकलेटी हीरो का किरदार करते-करते रणबीर यहां तक तो आ गए लेकिन अब वे बदलाव चाहते हैं. अपनी इस अभिलाषा को बताते हुए रणबीर कहते हैं, ‘अंजाना-अंजानी करने के बाद मैं उस छवि से उकता गया था. अब रॉकस्टार और बर्फी के साथ मैं एक युवा लड़के से युवा आदमी के किरदार की तरफ बढ़ रहा हूं.’ न्यूयॉर्क से फिल्म और ऐक्टिंग स्कूल से पढ़ाई करके लौटने के बाद रणबीर ने परंपरा का सम्मान करते हुए घुड़सवारी, डांस, ऐक्शन और उच्चारण की क्लास ली. लेकिन आज अभिनय की परिभाषा के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘ज्यादातर लोगों को यह गलतफहमी होती है कि अभिनय का मतलब बॉडी बनाना और डांस क्लास में जाना होता है यानी अगर आप दिखने में अच्छे हैं तो आप हीरो बन जाएंगे. मगर अभिनेता बनना उसके आगे की चीज है. आप अपनी जिंदगी में जो कुछ इकट्ठा करते हैं, कभी समझदार बनकर, कभी भावुक होकर और कभी संवेदना के साथ…वह सब एक कलाकार का खजाना होता है. क्योंकि इसके बाद जब आप सेट पर अभिनय करने जाते हैं तो आपके पास देने के लिए बहुत कुछ होता है. अगर आप सिर्फ ऊपर-ऊपर से अभिनय करेंगे तो अभिनेता के तौर पर आपकी उम्र लंबी नहीं हो पाएगी क्योंकि लोग आपका बनावटी अभिनय पकड़ लेंगे.’

रणबीर की शैली देखकर आप समझ सकते हैं कि वे अमेरिकी कला से किस कदर प्रभावित हैं. वे इस बात पर जोर देते हैं कि एक निर्देशक की अपने अभिनेता के साथ बढ़िया छननी चाहिए. इम्तियाज अली के साथ उनकी निकटता इसका ताजा उदाहरण है. फिल्म के लिए उनकी तैयारियां भी उनके इस अमेरिकी प्रभाव को जाहिर करती है. वे कहते हैं, ‘रॉकस्टार के लिए हमलोगों ने जनार्दन को तंग जींस और स्वेटर दिए ताकि उसे एक खास चाल दी जा सके. अपने किरदारों के लिए मैं जूतों का काफी उपयोग करता हूं. वेक अप सिड के लिए मैंने ढीले जूते पहने जिससे यह लगे कि यह आलसी बंदा है जो जूते जमीन से रगड़-रगड़ के चलता है. राजनीति के लिए मैंने तंग जूते पहने. यहां तक कि उसमें पत्थर तक डाले ताकि किरदार को असुविधा का अनुभव हो. साथ ही मैं हर फिल्म में अलग-अलग परफ्यूम का उपयोग करता हूं क्योंकि पुरानी खुशबू आपको पुराने वक्त के किरदार में ले जाती है जिससे आज ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होती है.’

एक तरफ जहां रणबीर अपने अभिनय को जीवंत करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं वहीं वे मेथड ऐक्टिंग और विस्तृत स्क्रिप्ट के पक्ष में नहीं हैं. वजह बताते हुए कहते हैं, ‘राॅकस्टार में एक अभिनेता के तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं नौसिखिए की तरह गिटार न बजाऊं, ताकि दर्शक मेरे किरदार के साथ खुद को जोड़ पाएं और बेवजह उनका ध्यान मेरे गिटार बजाने की तरफ न जाए. इस तरह की तैयारी आपका काम है और इसमें बहुत समझदार होने की जरूरत नहीं है. किरदार को जानने के लिए मैं उसका इतिहास वगैरह जानना जरूरी नहीं समझता. किरदार की आत्मा, सतहीपन, गहराई जैसी चीजों को समझने के लिए उस किरदार को जान लेना भर काफी होता है.’

रणबीर की इन स्पष्ट और समझदारी भरी बातों के पीछे यह व्यावहारिक ज्ञान भी छिपा है कि अभिनय दूसरों की बातों को समझना और उसे परदे पर उतारना है. वे कहते हैं, ‘आपके अंदर समर्पण का भाव होना चाहिए. मेरे खयाल से यह सबसे ज्यादा जरूरी है. अपने काम के प्रति समर्पण. टैलेंट का यही मतलब होता है शायद. मुझे समर्पण करने से डर नहीं लगता. मुझे इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि लोग मुझे बेवकूफ समझें, मेरे निर्देशक मुझ पर चिल्लाएं या लोग मुझ पर हंसें. क्योंकि मेरे काम का यही तकाजा है. मैं शारीरिक और मानसिक तौर पर बेशर्म हूं. मैंने अपनी पहली ही फिल्म में तौलिया गिराने वाला सीन दिया था, कहा जाए तो मैं पूरी तरह से नंगा था, लेकिन मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं हुई. मानसिक तौर पर अगर कोई मुझे ऐसी जगह ले जाना चाहता है जहां बेइंतहा दर्द हो तो मैं उसका अनुभव करने के लिए एकदम से तैयार हो जाऊंगा.’

रणबीर के आत्मविश्वास और अभिनय का संबंध कुछ हद तक अपने शरीर को लेकर उनकी सोच से भी है. गठीले शरीर वाले स्टारों से अलग सोचने वाले रणबीर कहते हैं, ‘अगर मैं बॉडी बनाऊंगा तो मैं हर किरदार में रणबीर रहूंगा, किरदार नहीं. मुझे पूर्णता पसंद नहीं है क्योंकि यह आपको अवास्तविक बना देती है. मुझे त्रुटियां पसंद हैं न कि खूबसूरत चेहरे या गठीला शरीर.’ रणबीर ने अपने गाल पर मौजूद निशान मिटाने से मना कर दिया था जबकि मीडिया अभी भी उस निशान को फोटो पर से हटा देता है. रणबीर को डेविएटेड सेप्टम नाम की तकलीफ है जिसके चलते उन्हें मुंह से सांस लेनी पड़ती है. लेकिन रणबीर ने उसका आॅपरेशन कराने से भी मना कर दिया क्योंकि वे इस स्थिति के साथ सहज हैं. इस दिक्कत की वजह से रणबीर तेज सांसें लेते हैं और जल्दी खाना खाते हैं. और शायद इसीलिए वे हमेशा गतिमान भी रहते हैं.

अपने रिश्तों को लेकर भी रणबीर सुर्खियों में रहते हैं. दीपिका पादुकोण के साथ उनके रिश्ते की काफी चर्चा हुई. इसके खत्म होने के बाद भी उन्हें लेकर अटकलें लगती रहती हैं. सवाल उछलते रहते हैं. जैसे कि, क्या रणबीर ने सोनम कपूर को डेट किया? या नरगिस फाखरी को? मीडिया और पीआर ने रणबीर की एक ऐसी छवि बनाई है जिसमें वे एक साथ दिलफेंक आशिक और मां के लाडले जैसे नजर आते हैं. वैसे जब रणबीर से यह सवाल किया गया कि हीरोइनों के साथ उनके रिश्तों को लेकर उड़ती अफवाहों, लोगों का उन्हें दिलफेंक आशिक बताना और उनका नई हीरोइनों के प्रति आकर्षित होना जैसे आरोपों से वे परेशान नहीं होते, तो उनका जवाब लाजवाब करने वाला था, ‘इनमें से ज्यादातर बातें सच हैं. मैं यह नहीं कहूंगा कि सभी झूठ हैं. मगर लोग इन बातों को बढ़ा-चढ़ा कर और ग्लैमर के साथ बताते हंै. मैं हमेशा इन बातों का बुरा नहीं मान सकता क्योंकि मैं जानता हूं कि यह सच है.’ वे आगे कहते हैं, ‘यह एक गलत धारणा है कि ऐक्टर कुछ ज्यादा ही डेट करते हैं. असल में उन्हें जो महिलाएं मिलती हैं वे फिल्म सेटों पर ही मिलती हैं. अभिनेत्रियां, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, स्टाफ वगैरह-वगैरह. शायद इसीलिए ज्यादातर अभिनेताओं की शादी अभिनेत्रियों से ही होती है.’ बहुत-से बड़े ब्रांडों का विज्ञापन करने वाले रणबीर इस बात को लेकर कतई असमंजस में नहीं हैं कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वे कहते हैं, ‘मैं कभी किसी शादी में नहीं नाचूंगा. किसी समारोह में जाकर फीता नहीं काटूंगा. मैं नहीं चाहता कि मैं अपने बच्चों के लिए करोड़ों का बैंक बैलेंस इकट्ठा करूं जिसे वे लॉस वेगस के जुआघरों में उड़ाएं.’ वे यह भी बताते हैं कि वे कभी फेयरनेस क्रीम, सिगरेट और शराब के विज्ञापन नहीं करेंगे. साथ ही रणबीर को लगता है कि अभिनेताओं को अपना सेलिब्रिटी स्टेटस चैरिटी या कहें तो परोपकार के कामों में इस्तेमाल करना चाहिए.

मगर आखिर में रणबीर के लिए सब कुछ फिल्मों पर आकर ही रुकता है. वे कहते हैं कि वे एक दिन में दो फिल्में देखते हैं. क्रिस्टोफर नोलन की इन्सेप्शन जहां रणबीर को खास प्रभावित नहीं कर पाई वहीं जिंदगी न मिलेगी दोबारा उन्हें काफी अच्छी लगी. फिलहाल उन्होंने तय किया है कि वे साल में सिर्फ दो फिल्मों तक ही सीमित रहेंगे. रणबीर का यह भी मानना है कि उनकी सफलता का कुछ लेना-देना इस बात से भी है कि वे सही वक्त पर सही जगह पर थे. वे कहते हैं, ‘मेरा आना ऐसे वक्त पर हुआ जब आगे की पांत वाले कुछ हीरो एक उम्र के आगे निकल गए थे. इसलिए नौजवानों वाली कई भूमिकाएं मेरे खाते में आ गईं.’
स्टारडम की इस चमक के आगे क्या जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियां मिस नहीं करते, मसलन अपनी कार से कहीं घूमने जाना या फिर दोस्तों के साथ वक्त बिताना? इस सवाल पर रणबीर कहते हैं कि उन्हें समझ में नहीं आता दोनों जिंदगियों में कैसे संतुलन बैठाया जाए. वे कहते हैं, ‘चाहता तो हूं यह सब करना लेकिन अभी इतना फंसा हूं कि निकल नहीं सकता.’