मुट्ठी से रेत की तरह विधायक कैप्टेन अमरिंदर सिंह के पाले से फिसल गए। दो हफ्ते पहले तक सर्वशक्तिमान कैप्टेन कांग्रेस आलाकमान के एक ही फैसले से चित दिख रहे हैं। उन्होंने अपनी यह हालत खुद कर ली है। अमृतसर में पंजाब के नए अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के साथ आज (बुधवार) के ‘शक्तिप्रदर्शन’ में 65 विधायक रहे। कुल मिलाकर 80 विधायकों में से सिर्फ 15 आज की तारीख में कैप्टेन के साथ खड़े हैं, लेकिन पंजाब में सांझ ढलने जैसी स्थिति में पहुँच चुकी कैप्टेन की राजनीति में कल का सूरज उगने तक इनमें से कितने और उनके साथ रहेंगे, कहना कठिन है।
स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने पहुंचे सिद्धू पंजाब जैसे मुश्किल राज्य में इतनी जल्दी और इतने बड़े स्तर पर कांग्रेस विधायकों का समर्थन जीत लेंगे, इसकी उम्मीद कैप्टेन तो कैप्टेन, खुद सिद्धू समर्थकों को भी शायद नहीं रही होगी। माहौल साफ़ बता रहा है कि सिद्धू समझदारी से खेले और कम बोले तो कांग्रेस ही नहीं पंजाब की राजनीति में वे आने वाले सालों में एक बड़े नेता के रूप में उभर जाएंगे। कांग्रेस आलाकमान के पीछे खड़े होने की ताकत ने सिद्धू को रातों-रात कैप्टेन को टक्कर दे सकने वाला नेता बना दिया है। पंजाब की सड़कों पर सिद्धू के होर्डिंग बताते हैं कि कांग्रेस में एक नए नेता का उदय हो गया है और कांग्रेस के बड़े वर्ग ने उन्हें स्वीकार कर लिया है।
सिद्धू के पीछे विधायकों की लम्बी कतार बता रही है कि कांग्रेस आलाकमान चाहे तो राज्यों में उसके इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। पंजाब के बहाने कांग्रेस की आलाकमान अपनी ताकत के साथ सामने आई है, जो हाल के सालों में कमजोर दिख रही थी। अब अन्य राज्यों में भी इसका असर दिखेगा और जो वेवजह आँखें दिखाने की कोशिश करेगा, उसका हाल ‘सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेवार है’ जैसा हो जाएगा। सिद्धू की तैयारी अब कांग्रेस आलाकमान के 18 सूत्रीय ‘पंजाब मॉडल’ को ताकत देने की है ताकि सभी पंजाबियों को सूबे के विकास में साझीदार बनाया जा सके।
कैप्टेन को अब जाकर एहसास हो रहा है कि खुद पर ज़रुरत से ज्यादा भरोसा करके उन्होंने जिस तरह कांग्रेस आलाकमान को हलके में लेने की भूल की, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। आलाकमान के नियुक्त किये सिद्धू ने एक हफ्ते में ही कैप्टेन को पानी पिलाने जैसे हालत में पहुंचा दिया। विधायकों की शक्ति के बिना कैप्टेन शून्य हैं और अब अलगे कुछ दिनों में उन्हें आलाकमान की मर्जी से अपने मंत्रिमंडल का भी विस्तार करना पड़ सकता है।
अध्यक्ष बनने के बाद आज नवजोत सिंह सिद्धू के आवास पर पंजाब कांग्रेस के 62 विधायक जुटे। सिद्धू के साथियों के दावे के मुताबिक सिद्धू के साथ जुटने वाले हैं। इसके बाद सिद्धू श्री स्वर्ण मंदिर साहिब में माथा टेकने पहुंचे। दुर्गियाना मंदिर और राम तीरथ स्थल भी सिद्धू गए हैं। साफ़ है अमृतसर जैसे पंजाब के सबसे मजबूत राजनीतिक केंद्र अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए चुनकर सिद्धू ने कैप्टेन को सन्देश दे दिया है।
राजा वडिंग, राज कुमार वेरका, इंदरबीर बोलारिया, बरिंदर ढिल्लों, मदन लाल जलालपुर, हरमिंदर गिल, हरजोत कमल, हरमिंदर जस्सी, जोगिंदर पाल, परगट सिंह और सुखजिंदर रंधावा जैसे बड़े विधायक सिद्धू के साथ जा खड़े हुए हैं। परगट तो खैर पहले से ही सिद्धू के साथ हैं। कांग्रेस में अब यह आरोप लगाया जा रहा है कि मंगलवार को सिद्धू के सामने किसानों का जो प्रदर्शन हुआ था, उसके पीछे कथित तौर पर कैप्टेन के ही लोग थे।
कैप्टेन जिस तरह सिद्धू से ‘माफी मंगवाने’ पर अड़े हैं, उससे खुद कैप्टेन जैसे अनुभवी नेता की छवि को ही बट्टा लग रहा है। माफी मांगने के सवाल पर विधायक और पूर्व हॉकी दिग्गज परगट सिंह ने कहा – ‘प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू को सीएम से माफी क्यों मांगनी चाहिए ? माफी मांगना कोई सार्वजनिक मुद्दा नहीं है। ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका समाधान सीएम ने नहीं किया है, लिहाज माफी तो जनता से उन्हें मांगनी चाहिए’।
राजकुमार वेरका जैसे मजबूत समर्थक के छिटकने से निश्चित ही कैप्टेन दुखी होंगे। लेकिन राजनीति में यही होता है। सब चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं। ऊपर से सिद्धू के साथ आलाकमान का हाथ है। भला कौन कैप्टेन के पीछे लगा रहेगा। कैप्टन टकसाली नेताओं को साथ रखने की कमजोर सी कोशिश कर रहे हैं। वरिष्ठ नेता ब्रह्म मोहिंद्रा ने सिद्धू को अध्यक्ष बनाने का स्वागत कर दिया है। वे कैप्टेन सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं।
कैप्टेन की आँख-कान माने जाने वाले उनके मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने आज एक ट्वीट किया है जिससे लगता है कि कैप्टेन अभी भी ‘आर-पार की लड़ाई’ में खुद को खड़ा दिखाना चाहते हैं। वे सिद्धू को कुछ भी मानने के लिए तैयार नहीं। निश्चित ही कैप्टेन के सलाहकार उन्हें राजनीतिक रिस्क में डाल रहे हैं। ठुकराल का आज का ट्वीट कहता है – ‘ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात का समय मांगा है, जो पूरी तरह गलत है। किसी भी तरह का कोई समय नहीं मांगा गया है और न ही मुख्यमंत्री नवजोत सिंह सिद्धू से तब तक मुलाकात करेंगे जब तक वह सार्वजनिक तौर पर उनसे माफी नहीं मांग लेते हैं’।
अब अमरिंदर का अगला कदम क्या हो सकता है। कांग्रेस आलाकमान ने तो उनके ही नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन यह कैप्टेन थे जिन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बनाने के आलाकमान के अधिकार को भी अपने हाथ में रखने की कोशिश की। यदि कैप्टेन भाजपा में होते तो क्या ऐसा कर सकते थे? बिलकुल नहीं। कांग्रेस में विधायकों की शक्ति के बूते उन्होंने आलाकमान को ही हांकने की कोशिश की जो उन्हें उल्टी पड़ गयी।
दो – वे भाजपा में जाएं, जो उन्हें साथ लेने की बहुत इच्छुक रहेगी क्योंकि कैप्टेन का साथ मिलना तो उसके लिए लाटरी हाथ लगने जैसा होगा। लेकिन किसान जिस स्तर पर भाजपा से नाराज हैं उसे देखते हुए कैप्टेन वहां क्या कर सकेंगे, यह समझा जा सकता है। विचारधारा के स्तर पर भी कैप्टेन के विचार भाजपा से मेल नहीं खाते।
तीन – वे अपना ही कोई क्षेत्रीय राजनीतिक दल खड़ा कर लें। उनके साथ आप, अकाली दल और कांग्रेस के अलावा भाजपा के कुछ नेता आ सकते हैं। लेकिन बिना संसाधन वे एक मजबूत संगठन खड़ा कर लेंगे, इसे लेकर कोई दावा आज की तारीख में नहीं किया जा सकता है।
चार – अमरिंदर कांग्रेस में ही बने रहें और विधानसभा चुनाव तक अपनी लड़ाई लड़ें। सिद्धू अब अध्यक्ष बनकर चुनाव में टिकटों की बड़ी संख्या पर हाथ साफ़ कर जाएंगे, इसकी पक्की संभावना है, फिर भी अमरिंदर कोशिश तो कर ही सकते हैं। यदि चुनाव के बाद वे सीएम नहीं भी बनते हैं तो भी तमाम वर्तमान तल्खियों के बावजूद कांग्रेस संगठन में कोई सम्मानजनक पद उन्हें मिल जाएगा।